क्रोध, घाव, आग और कर्ज
आज उधार की जिंदगी ने सभी कुछ बेमानी बना दिया है। कल तक जिंदगी ‘मौन’ से चलती थी, आज ‘लोन’ से चल रही है। माल घर ले आओ और किस्तें चुकाते रहो। टी.वी., फ्रिज, वाशिंग मशीन, ए.सी., कार, कम्प्यूटर, सैल-फोन जैसे संसाधनों से देखते ही देखते घर भर गया।
पूछा, ‘‘अब सुख भोग रहे हो?’’ बोले, ‘‘नहीं।’’ ‘‘तो? किस्तें चुका रहा हूं।’’
और किस्तें चुकाते-चुकाते एक दिन आदमी खुद चुक जाता है। मेरा कहा मानो तो सूखी रोटी खा लेना, दो कपड़ों में जिंदगी गुजार लेना, मगर कर्ज लेकर शानो-शौकत मत दिखाना। वरना मूल से ब्याज बढ़ जाएगा।
ध्यान रहे : क्रोध, घाव, आग और कर्ज को कभी कम मत समझना।
कड़वा प्रवचन
पागल का क्या भरोसा पत्नी ने पूछा, ‘‘अगर मैं मर गई तो तुम क्या करोगे?’’
पति ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है, मैं तुम्हें मरने ही नहीं दूंगा।’’
पत्नी ने कहा ‘‘वह तो ठीक है मगर कल्पना करो, मैं मर गई तो तुम क्या करोगे?’’
पति ने कहा ‘‘क्या करूंगा? मैं तो बस पागल ही हो जाऊंगा।’’
पत्नी बोली, ‘‘सच?’’ पति बोला, ‘‘बिल्कुल सच।’’
पत्नी ने खुश होकर पूछा, ‘‘तो इसका मतलब तुम दूसरी शादी नहीं करोगे?’’
पति मुस्कुराया और बोला, ‘‘अब पागल आदमी का क्या भरोसा? वह तो कुछ भी कर सकता है।’’ इसी का नाम संसार है।
– तरुण सागर जी