
आचार्य चाणक्य द्वारा लिखित चाणक्य नीति एक एेसा महान ग्रंथ है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। चाणक्य नीति में कुल सत्रह अध्याय हैं। आज हम आपको चाणक्य के इस ग्रंथ के चौथे अध्याय की कुछ ज़रूरी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें मानव जीवन से संबंधित की बातों का वर्णन किया गया है। इन बातों को अपने जीवन में अपनाने से किसी की भी लाईफ में आ रही परेशानियों का हल निकल सकता है और उनकी लाइफ ईज़ी हो सकती है।
यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है।
साधु महात्माओ के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते हैं, वे संसार-चक्र से छूट जाते हैं और उनके कुल-धर्म से उनका कुल उज्जवल हो जाता है।
जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है।
यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योंकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा।
विद्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विद्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते हैं। परदेस में विद्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानों ने विद्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विद्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है।
सैकड़ो अज्ञानी पुत्रों से एक ही गुणवान पुत्र अच्छा है। रात्रि का अंधकार एक ही चन्द्रमा दूर करता है, न की हजारों तारें।
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