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चीन की भारत के खिलाफ नई साजिश, उत्तराखंड के नजदीक बना रहा नया बांध


चीन की भारत के खिलाफ नई साजिश का पर्दाफाश हुआ है। चीन द्वारा भारत, नेपाल और तिब्बत के ट्राई-जंक्शन के करीब तिब्बत में माब्जा ज़ांगबो नदी पर नए बांध का निर्माण किया जा रहा है जिससे भारत की टेंशन बढ़ सकती है। यही नहीं वास्तविक नियंत्रण रेखा ( LAC ) के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में सैन्य तैनाती तथा दोहरे उपयोग वाले अवसंरचना के निर्माण में वृद्धि चिंता का विषय बना हुआ है। चीन द्वारा यह कदम वर्ष 2021 में यारलुंग ज़ांगबो के निचले क्षेत्र में 70 गीगावाट बिजली उत्पादन के लिए एक बड़े बांध के निर्माण की योजना की घोषणा के बाद उठाया गया है। यह देश के थ्री गोर्जेज़ बाँध द्वारा उत्पादित विद्युत क्षमता से तीन गुना ज़्यादा है, साथ ही स्थापित क्षमता के मामले में सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र है।
ब्रह्मपुत्र, जिसे चीन में यारलुंग त्संग्पो के नाम से जाना जाता है, मानसरोवर झील से निकलने वाली इस नदी की कुल लंबाई 2,880 किमी. है और इसका वितरण तिब्बत में 1,700 किमी., अरुणाचल प्रदेश और असम में 920 किमी. तथा बांग्लादेश में 260 किमी. है। यह मीठे जल के स्रोत का लगभग 30% और भारत की जलविद्युत क्षमता का 40% हिस्सा है। यह नया बांध ट्राई-जंक्शन से लगभग 16 किमी. उत्तर में स्थित है और उत्तराखंड के कालापानी क्षेत्र के नज़दीक है। यह बाँध गंगा की एक सहायक नदी मब्ज़ा ज़ांगबो पर बना है।
तिब्बत के बुरांग काउंटी में नदी के उत्तरी किनारे पर बांध निर्माण की गतिविधि मई 2021 से देखी गई है। मब्ज़ा ज़ांगबो नदी भारत में गंगा नदी में मिलने से पहले नेपाल के घाघरा या करनाली नदी में मिलती है। यह बांध भविष्य में इस क्षेत्र के जल पर चीन के नियंत्रण को लेकर चिंता बढ़ाता है। जल का उपयोग करने के अलावा ट्राई-जंक्शन के पास चीन द्वारा एक सैन्य प्रतिष्ठान बनाए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि चीन ने पहले भी अरुणाचल प्रदेश के पास यारलुंग ज़ांगबो नदी क्षेत्र में सैन्य प्रतिष्ठान विकसित किया था।
भारत की क्यों बढ़ेगी टेंशन ? – चीन इस बाँध का उपयोग न केवल मार्ग परिवर्तन के लिए कर सकता है, बल्कि जल के संग्रहण हेतु भी कर सकता है जिससे मब्ज़ा ज़ांगबो नदी पर निर्भर क्षेत्रों में जल की कमी हो सकती है और नेपाल में घाघरा एवं करनाली जैसी नदियों में भी जल स्तर घट सकता है।
सीमा के करीब बांधों का निर्माण कर चीन विवादित क्षेत्रों पर अपना दावा मज़बूत कर सकता है। चीन ने सिंधु, ब्रह्मपुत्र और मेकांग पर नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये बड़ी संख्या में बांध और तटबंध बनाए हैं।
तिब्बत पर कब्ज़े के साथ चीन ने 18 देशों से होकर बहने वाली नदियों के उद्गम बिंदुओं पर नियंत्रण कर लिया है। चीन ने हज़ारों बांधों का निर्माण किया है, जो अचानक पानी छोड़े जाने पर बाढ़ या पानी को रोके जाने पर सूखे की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं, साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकते हैं जिससे सामान्य जन-जीवन बाधित हो सकता है।
चीन की ब्रह्मपुत्र नदी पर चार बांध बनाने की योजना है, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह प्रभावित होगा। भारत ने चीन के समक्ष इस बाँध निर्माण पर आपत्ति दर्ज कराई है।
चीन ने बांग्लादेश के साथ हाइड्रोग्राफिक डेटा साझा करते हुए इसे भारत के साथ साझा करने से मना कर दिया, इसके परिणामस्वरूप असम में बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर विनाश हुआ, जिसके लिये भारत तैयार नहीं था। चीन पहले ही मेकांग नदी पर 11 विशाल बाँध बना चुका है, जो दक्षिण-पूर्व-एशियाई देशों के लिये चिंता का विषय है।