
धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, यमद्वितीया आदि सभी पर्वों का अपना वैज्ञानिक महत्व है। इसके पूजन, अर्चन में ही छिपा है ज्योतिषीय तत्व। जो लोग विधि विधान तथा शास्त्रीय ढंगसे इन पर्वों पर पूजन करते हैं, धन धान्य के साथ ही उनकी आयु में वृद्धि होती है।
भारतीय संस्कृति में पर्व न केवल संस्कारों के पोषक रहे हैं अपितु चतुर्षुरुषार्थों के मार्ग को प्रशस्त करते रहे हैं। संस्कार तथा पुरुषार्थ ये दोनों ही भारतीय जीवन की आधारशिला हैं। पर्वों की ही श्रृंखला में हमारे पंचदिवसीय दीपावली महापर्व की विशेष मान्यता है। इस पर्व के साथ भले ही अनेक प्रकार के पौराणिक आख्यान जुड़े हों परंतु यह ज्योतिष पर आधारित हमारे जीवन को सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, समरसता से जोड़ने का पर्व है।
‘पर्व’ शब्द का अर्थ ही ‘गांठ’ है, जिस प्रकार गन्ने के वृक्ष में बीच-बीच में गांठे जोड़कर उसे रसयुक्त बनाती हैं उसी प्रकार से ये पर्व हमें जीवन के विशेष अवसरों पर हमारे साथ जुड़कर जीवन को नयी गति देते हैं। दीपावली में गणेश लक्ष्मी का पूजन, कुबेर पूजन, तुला पूजन, कलम-दवात पूजन विशेष मुहूर्त में विशेष महत्व रखता है। गणेश यक्षों की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। आदि देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। रिद्धि-सिद्धी इनकी शक्तिस्वरूपा हैं। लक्ष्मी-विष्णु की पत्नी होने के साथ-साथ माया के रूप में प्रतिष्ठित है और भौतिक जगत में माया का अपना एक विशेष स्थान है। श्रीसूक्त पर आधारित लक्ष्मी के आवाहन का विश्लेषण करें तो आपको प्रत्येक मंत्र से उसके महत्व का पता चलता है।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।।
अर्थात जो सुवर्ण सी क्रांतिमयी है, जो मन की दरिद्रता हरती है, जो स्वर्ण रजत की मालाओं से सुसज्जित रहती है, आह्लादिनी और हिरण्यमयी है, जो हमेशा दिव्य छटा बिखेरती है, हे अग्नि रूप हरि मेरे घर उन लक्ष्मी को बुलाओ। इस मंत्र से लेकर श्रीसूक्त की पंद्रह ऋचाएं लक्ष्मी की बोधक हैं। इन मंत्रों के आवाहन करने पर लक्ष्मी स्वयं याचक के घर में वास करती है।
अनेक पर्वों को जन्म देता है तुला का सूर्य- – दीपावली को कालरात्रि का भी नाम दिया गया है। इसमें जागरण, पूजन, अर्चन, गणेश लक्ष्मी का आवाह्न, दीपमालिका से घर को सुसज्जित एवं प्रकाशवान करने के साथ-साथ महालक्ष्मी यंत्र तथा श्रीयंत्र पूजन तथा मंत्र जागरण का विधान है। ऊं श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः । इस मंत्र से महालक्ष्मी यंत्र का पूजन विधिवत करना चाहिए। पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्ममहालक्ष्मी नमोस्तुते।।
धनतेरस अर्थात धनवंतरि जयंती, रोग और शोक के निवारक भगवान धनवंतरि के पूजन तथा अर्चन से संबंध रखने के साथ-साथ धनधान्य को घर में लाने, पश्चात उसका पूजन करने की विधान से जुड़ी है। वैदिक देवता यमराज के पूजन के लिए आटे का दीपक जलाकर घर के मुख्य द्वार पर रखने का विधान है। टूटे-फूटे पुराने बर्तनों को बदलने, चांदी-सोने की खरीद-फरोख्त प्रदोषकाल में नदी, गोशाला, बावली, कुआं, मंदिर आदि में दीप जलाने का विधान है।
नरक चतुर्दशी, पवनपुत्र हनुमान के जन्म एवं नरकासुर बध से मुक्ति मिलने पर प्रसन्नता का बोधक है । यह दिन ही स्वच्छता लाने का दिन है, इस दिन स्नान का विशेष महत्व है। स्नान के पश्चात यमराज को तर्पण तथा अंजलि अर्पित करने, सायंकाल दीपक जलाने की. मान्यता है।
दीपावली महापर्व तो अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजन गोवंश की समुन्नति तथा यमद्वितीया भाई और बहन के संबंध के साथ-साथ यम से मृत्युतुल्य कष्टों से छुटकारा दिलाने का बोधक है। वस्तुतः सूर्य के तुला राशि में आ जाने के कारण सूर्य पुत्र यम का भय बढ़ जाता है। इसलिए यम को प्रसन्न करने के लिए पूजन की अनेक पद्धतियां अपनायी गयी हैं, जिसमें तैलयुक्त दीपक प्रज्वलित कर यमराज को प्रसन्न करने की मान्यता है।
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