Friday , December 26 2025 7:07 PM
Home / Spirituality / ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’

‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’


गणपति की आराधना में उनके हर भक्त की जुबान से ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’ यही जयकारा सुनने को मिलता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि कहां से हुई इस जयकारे की उत्पत्ति? इसकी एक रोचक कहानी है। यह कहानी है एक भक्त और भगवान की, जहां भक्त की भक्ति और आस्था के कारण भक्त के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया भगवान का नाम। गणपति की आराधना के लिए बप्पा के भक्तों की जुबान से ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’ का जयकारा हमेशा ही सुनाई देता है। कई बार आपने भी यह जयकारा लगाया होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर यह जयकारा क्यों लगाते हैं? कहां से इस जयकारे की उत्पत्ति हुई?
गणपति के इस जयकारे की जड़ें महाराष्ट्र के पुणे से 21 कि.मी. दूर बसे चिंचवाड़ गांव में हैं। चिंचवाड़ जन्मस्थली है एक ऐसे संत की जिसकी भक्ति और आस्था ने लिख दी एक ऐसी कहानी जिसके बाद उनके नाम के साथ ही जुड़ गया गणपति का भी नाम। पंद्रहवीं शताब्दी में एक संत हुए, जिनका नाम था मोरया गोसावी। कहते हैं भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही मोरया गोसावी का जन्म हुआ था और मोरया गोसावी भी अपने माता-पिता की तरह भगवान गणेश की पूजा आराधना करते थे।

हर साल गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर मोरया चिंचवाड़ से मोरगांव गणेश की पूजा करने के लिए पैदल जाया करते थे। कहा जाता है कि बढ़ती उम्र की वजह से एक दिन खुद भगवान गणेश उनके सपने में आए और उनसे कहा कि उनकी मूर्त उन्हें नदी में मिलेगी और ठीक वैसा ही हुआ, नदी में स्नान के दौरान उन्हें गणेश जी की मूर्त मिली।

इस घटना के बाद लोग यह मानने लगे कि गणपति बप्पा का कोई भक्त है तो वह सिर्फ और सिर्फ मोरया गोसावी। तभी से भक्त चिंचवाड़ गांव में मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे। कहते हैं जब भक्त गोसावी जी के पैर छूकर मोरया कहते और संत मोरया अपने भक्तों से मंगलमूर्ति कहते थे और फिर ऐसे शुरूआत हुई मंगलमूर्ति मोरया की। जो जयकारा पुणे के पास चिंचवाड़ गांव से शुरू हुआ वह जयकारा आज गणपति बप्पा के हर भक्त की जुबान पर है लेकिन जहां तक गणपति पूजा के सार्वजनिक आयोजन का सवाल है तो इसकी शुरूआत स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर लोकमान्य तिलक ने की थी।
मोरया गोसावी मंदिर में साल में दो बार विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है। एक तो भाद्रपद महीने व दूसरा माघ महीने में जब मंदिर से पालकी निकलती है, जो मोरगांव के गणपति मंदिर में दर्शनों के लिए ले जाई जाती है। उसी तरह दूसरा उत्सव दिसम्बर महीने में चिंचवाड़ गांव में ही मनाया जाता है, जब बड़ी संख्या में देश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और दिन भर चलने वाले धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं।
मान्यता है कि मोरया गोसावी मंदिर में आने से अष्टविनायक के दर्शन-पूजन के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में न केवल बप्पा का अद्भुत रूप विराजमान है बल्कि बप्पा के परम भक्त मोरया गोसावी के साथ-साथ उनके आठ वंशजों की समाधि भी है जो गणपति के प्रति इनकी आस्था की कहानी सुनाती है।
क्या आम और क्या खास मोरया गोसावी मंदिर में हर भक्त की आस्था है, तभी तो देश भर से श्रद्धालु यहां बप्पा संग उनके परम भक्त गोसावी जी के दर्शनों के लिए आते हैं। पुणे के चिंचवाड़ गांव के मोरया गोसावी मंदिर में हर रोज हजारों भक्त गणेश जी और मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आते हैं। मोरया गोसावी मंदिर में गणपति के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के मुताबिक यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है।

भक्तों का कहना है कि गणपति बप्पा ने मोरया गोसावी को वरदान दिया था कि अनंत काल तक मोरया का नाम गणपति के साथ जुड़ा रहेगा और शायद यही वजह है कि लोग गणपति के साथ मोरया का नाम भी जोड़कर जयकारा लगाते हैं। पूरे महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों से भक्त पुणे के चिंचवाड़ में मोरया गोसावी मंदिर में माथा टेकने आते हैं। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले हर भक्त की यही चाहत है कि उसे मनवांछित फल की प्राप्ति हो। तभी तो यहां साल में दो बार गणेश पूजा के लिए भारी संख्या में भीड़ इकट्ठी होती है।