श्राद्ध पक्ष का संदेश देते हुए भगवान कहते हैं, ‘‘वैदिक रीति से अगर आप मेरे स्वरूप को नहीं जानते हैं तो श्रद्धा के बल से जिस-जिस देवता के, पितर के निमित्त जो भी कर्म करते हैं। उन-उनके द्वारा मेरी ही सत्ता-स्फूर्ति से तुम्हारा कल्याण होता है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।’’
भगवान श्रीराम चंद्र जी वनवास के समय पुष्कर में ठहरे थे। दशरथ जी स्वर्गवासी हो गए और श्राद्ध की तिथियां आईं। राम जी ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों को आमंत्रण दे आए। जो कुछ कंदमूल भाई लक्ष्मण को लाना था, लाया और सीताजी ने संवारा। सीता जी ब्राह्मणों को भोजन परोसने लगीं और राम जी भी देने लगे तो अचानक भयभीत हो सीता जी झाडिय़ों में चली गईं। राम जी ने लक्ष्मण की मदद ली, सीता की जगह परोस कर ब्राह्मणों को भोजन कराया। जब वे सब चले गए तो डरी-डरी सीता जी आईं।
‘‘सीते! आज का तेरा व्यवहार मुझे आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहता है।’’
सीता जी बोलीं, ‘‘नाथ! क्या कहूं जिनको श्राद्ध के निमित्त बुलाया था वे बैठे, इतने में आपके पिता जी, मेरे ससुर जी मुझे उनमें दिखाई दिए। अब ससुर जी के आगे मैं कैसे घूमूंगी इसलिए मैं शर्म के मारे भाग गई।’’ ऐसी कथा आती है।
श्राद्ध में रखें ये सावधानियां
* श्राद्धकर्ता श्राद्ध पक्ष में पान खाना, तेल मालिश, स्त्री सम्भोग, संग्रह आदि न करें।
* श्राद्ध का भोक्ता दोबारा भोजन तथा यात्रा आदि न करे।
* श्राद्ध खाने के बाद परिश्रम और प्रतिग्रह से बचें।
* श्राद्ध करने वाला व्यक्ति 3 से ज्यादा ब्राह्मणों तथा ज्यादा रिश्तेदारों को न बुलाए।
* श्राद्ध के दिनों में ब्रह्मचर्य व सत्य का पालन करें और ब्राह्मण भी ब्रह्मचर्य का पालन करके श्राद्ध ग्रहण करने आए।