
जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाए जाने का विधान है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करने का विधान है। ब्रजवासीयों के लिए तो आज भी वे छोटे से ल़ड्डू गोपाल ही हैं, वे कभी बड़े हुए ही नहीं। उन्हीं की तर्ज पर चलते बहुत सारे कृष्ण भक्त अपने घर में बाल गोपाल को रखते हैं। उन्हें अपने पुत्र की तरह प्रेम करते हैं। कहते हैं जिस घर में लड्डू गोपाल होते हैं, वहां कभी कोई समस्या अपने पांव नहीं पसार सकती। वैसे तो भगवान भाव के भूखे होते हैं, तभी तो शबरी के झूठे बेर, विदुर जी की पत्नी से छिलके और सुदामा के कंदन प्रेमपूर्वक खा गए।
शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल का विधि-विधान से पूजन करने पर जीवन में कोई भी समस्या शेष नहीं रहती। ब्रह्मवैवर्त पुराण की मान्यता के अनुसार नंद लला के पूजन में अवश्य शामिल करें ये सामान- आसन, झूला, पाद्य, मोर पंख से बना पंखा, पंचामृत, अनुलेपन, आचमनीय, स्नानीय, फूल, धनिए का भोग, धूप और दीप। सभी सामग्रियां शुद्ध होनी चाहिए।
ध्यान रखें
भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप बैठी मुद्रा में रखना शुभ होता है। श्रीराधाकृष्ण का युगल स्वरूप खड़ी मुद्रा में भी रखा जा सकता है।
भोग में अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी रखा जा सकता है लेकिन मक्खन, मिश्री और तुलसी अवश्य शामिल करें।
शास्त्रों में कहा गया है भगवान का स्वरूप घर में स्थापित करने से पहले ध्यान रखें की उनकी पीठ दिखाई न दे। स्वरूप को या तो कपड़े से ढक दें अथवा दीवार के साथ लगा दें।
वैसे तो मंदिर में केवल एक ही भगवान का स्वरूप स्थापित होना चाहिए। एकनिष्ठ होकर की गई भक्ति ही उत्तम फल देती है। आमतौर पर घर में बहुत सारे देवी-देवताओं को स्थान दिया जाता है। वास्तु के अनुसार एक भगवान के दो स्वरूप आस-पास या आमने सामने रखने से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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