चीन की लाख कोशिशों के बावजूद शक्तिशाली देश उसके साथ नहीं आ रहे हैं, जबकि उसके पड़ोसी भारत को हर जगह पूछा जा रहा है। यही वजह है कि चीन भारत के साथ रिश्ते ठीक करने के लिए हर उपाय कर रहा है। अब चीन ने अपने सरकारी भोंपू ग्लोबल टाइम्स के जरिए भारत को चीन के साथ रिश्तों पर ज्ञान दिया है। चीनी सरकार का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स में एक लेख लिखकर भारत और चीन के ऐतिहासिक संबंधों का जमकर गुणगान किया गया है। साथ ही इसमें मोदी सरकार के पिछले एक दशक के कार्यकाल के दौरान चीन के सामने तनकर खड़े होने की तिलमिलाहट भी नजर आई है। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में हिंदू राष्ट्रवादी प्रवृत्ति के उभार ने चीन के साथ संबंधों को खराब किया है। लेख में भारतीय विद्वानों से चीन के प्रति मोदी सरकार की नीति की आलोचना करने की भी अपील की गई है।
लेख में दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र करते हुए कहा गया कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के तुरंत बाद भारत ने के साथ राजनयिक संबंध स्थापित हो गए थे, जो 1954 तक चरम पर पहुंच गए थे। हालांकि, उसके बाद दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उतार-चढ़ाव आया है और पिछले कुछ वर्षों में यह गंभीर रूप से बाधित हुआ है। इसमें कहा गया है कि चीन और भारत के बीच संबंधों में यह खराब स्थिति भारत की घरेलू राजनीति में बदलाव, हिंदू राष्ट्रवाद के उदय और भारत के सामाजिक परिवेश में दक्षिणपंथी प्रवृत्ति की अधिकता के चले आई है। इसके अलावा इस पर अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक परिदृश्य में बदलावों का भी असर पड़ा है।
भारत के विश्वगुरु बनने से टेंशन में चीन – चीनी अखबार ने भारत के विश्वगुरु के रूप में स्थापित होने को लेकर भी अपनी तिलमिलाहट जाहिर की है। चीनी प्रोपेगैंडा लेख में कहा गया है कि सांस्कृतिक रूप से मोदी सरकार खुद को विश्व गुरु के रूप में देखती है, लेकिन इस तरह के आदान-प्रदान दोतरफा होने चाहिए। भारतीय हमेशा यह क्यों सोचते हैं कि भारत शिक्षक है और चीन छात्र है? इसके साथ ही लेख में चीन की तारीफ करते हुए कहा गया है कि वह दूसरी सभ्यताओं से सीखने में विनम्र और अच्छा है। इसमें भारत के बारे में दुष्प्रचार करते हुए कहा गया है कि यहां वास्तविक ऐतिहासिक शोध और गंभीर अभिलेखों की परंपरा का अभाव रहा है।
भारत को लेकर बनाया चीन ने प्लान – इसमें कहा गया है कि चीन और भारत के बीच भविष्य के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए चीनी पक्ष को केवल आदान-प्रदान में शामिल नहीं होना चाहिए, बल्कि चीन के बारे में भारत की धारणा को बदलने का लक्ष्य रखना चाहिए। चीनी विद्वानों को भारत के विभिन्न पहलुओं पर शोध करने और भारत के विचारों और प्रथाओं की आलोचना और विरोध के लिए कहा गया है। इसके साथ ही लेख में भारतीय विद्वानों से अपील की गई है कि वे मोदी सरकार की ‘संकीर्ण’ और ‘अदूरदर्शी नीतियों की आलोचना करनी चाहिए।
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