
प्लेन धधक रहा था। लपटें आसमान तक उठ रही थीं। धमाका ऐसा कि कान सुन्न हो जाएं। और फिर… सन्नाटा। चारों तरफ चीखें, धुआं, भागते लोग, जलते हुए जिस्म… अभी भी सोच रहा हूं तो कांप सा रहा हूं। ये कहना है उस शख्स का जो धमाके के वक्त घर में सोया हुआ था, लेकिन उठकर एकदम घर से भागा। पटनी सुनील कहते हैं, ‘घर से बाहर आया तो धुआं ही धुआं था। आग इतनी थी कि कोई अंदर नहीं जा पा रहा था। कुछ समझ नहीं रहा था किसी को क्या करें। सिर्फ हल्ला था। फिर फायर ब्रिगेड आया तो थोड़ी आग बुझी तो हमें बॉडी दिखने लगी। इतने भयानक हालात मैंने नहीं देखे।’ वो कहते है, ‘मरने वाले तो मर गए… मैं अब भी कांप रहा हूं।’ उनकी आवाज़ में ऐसा कंपन था जैसे मौत अब भी वहीं कहीं आस-पास मंडरा रही हो।
सुनील हॉस्टल के सामने वाली कॉलोनी में रहते हैं। इस तरफ से लोग दीवारें कूद-कूदकर अंदर हॉस्टल के कैंपस में दाखिल हुए। जिसको जैसे लगा वैसे ही मदद करने के लिए दौड़ रहा था। कोई सवारी नहीं मिल रही थी, तो घायलों को ठेले में रखकर हॉस्पिटल की तरफ भाग रहे थे।
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