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खनिजों पर रॉयल्टी कर नहीं है, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, केंद्र को बड़ा झटका


सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को खनिज-युक्त जमीनों पर टैक्स लगाने का अधिकार दिया। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली 9 जजों की बेंच ने दिया। 9 में से 8 जजों ने फैसले पर सहमति जताई। इस फैसले का लाभ ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, और राजस्थान जैसे खनिज-समृद्ध राज्यों को मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खनन पर लगने वाले रॉयल्टी को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि इस पर कोई रॉयल्टी टैक्स नहीं है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 8-1 बहुमत से अपने ही कई पुराने फैसलों को रद्द कर दिया, जिससे इन राज्यों को राहत मिली है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संसद के पास निकाले गए खनिजों पर कर लगाने की सीमाएं, प्रतिबंध और यहां तक कि रोक लगाने की शक्ति है। जस्टिस बी वी नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई।
1989 के फैसले को पलटा – सुप्रीम कोर्ट खनन और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुनवाई कर रहा था। मामला यह था कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी एक टैक्स है और क्या सिर्फ केंद्र सरकार के पास ही इस तरह का टैक्स लगाने का अधिकार है या राज्य सरकारें भी अपने क्षेत्र में खनिज भूमि पर लेवी लगा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सात जजों की संविधान पीठ का 1989 का फैसला गलत था, जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी एक टैक्स है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के तहत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है।
फैसले के बाद इन राज्यों को मिलेगी राहत – CJI चंद्रचूड़ द्वारा लिखित और जस्टिस हृषिकेश रॉय, ए एस ओका, जे बी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जवल भुयान, एस सी शर्मा और ए जी मसीह द्वारा सहमति व्यक्त की गई, इस फैसले में कहा गया है कि निकाले गए खनिजों पर रॉयल्टी कर नहीं है। इस फैसले से ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे खनिज संपन्न राज्यों को फायदा होगा। अब नौ-जजों की पीठ बुधवार को फिर से विचार करेगी कि उनका फैसला पूर्वव्यापी होगा या नहीं। अगर यह फैसला पूर्वव्यापी लागू होता है तो राज्यों को भारी कर बकाया देना पड़ सकता है। राज्य चाहते हैं कि यह फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू हो, जबकि केंद्र सरकार इसे भविष्य के लिए लागू करना चाहती है।