– ओशो
मैं कौन हूं?’ इसका कोई उत्तर नहीं है; यह उत्तर के पार है। तुम्हारा मन बहुत सारे उत्तर देगा। तुम्हारा मन कहेगा, तुम जीवन का सार हो। तुम अनंत आत्मा हो। तुम दिव्य हो,’ और इसी तरह के बहुत सारे उत्तर। इन सभी उत्तरों को अस्वीकृत कर देनाहै ः नेति नेति–तुम्हें कहे जानाहै, “न तो यह, न ही वह।’
जब तुम उन सभी संभव उत्तरों को नकार देते हो, जो मन देताहै ,सोचताहै, जब प्रश्न पूरी तरह से अनुत्तरीय बच जाताहै, चमत्कार घटताहै । अचानक प्रश्न भी गिर जाताहै। जब सभी उत्तर अस्वीकृत हो जाते हैं, प्रश्न को कोई सहारा नहीं बचता, खड़े होने के लिए भीतर कोई सहारा नहीं बचता। यह एकाएक गिर पड़ताहै, यह समाप्त हो जाताहै, यह विदा हो जाताहै।
जब प्रश्न भी गिर जाताहै, तब तुम जानते हो। लेकिन वह जानना उत्तर नहीं है , यह अस्तित्वगत अनुभव है।
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