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जमात का सहारा! 40 दिन ट्रेनिंग और ब्रेनवॉश के बाद खास मिशन, ISI कैसे तैयार करती है स्लीपर सेल, खुफिया खुलासा


स्लीपर सेल कैसे तैयार किए जाते हैं और ट्रेनिंग के बाद ये आम लोगों के बीच किस तरह छिपकर रहते हैं। सुरक्षा और खुफिया विभाग से जुड़े सूत्रों ने इसे लेकर एक हैरान करने वाली रिपोर्ट दी है।
दिल्ली। पहले हरियाणा के फरीदाबाद से सैकड़ों किलो विस्फोटक सामान की बरामदगी और इसके बाद दिल्ली में लाल किले के पास कार में धमाका। धमाका भी इतना भयानक कि करीब 10 जिंदगियां मौत के मुंह में समा गई। सड़कों पर लाश के टुकड़े बिखर गए और दूर तक इस धमाके की आवाज सुनाई दी। 24 घंटे के भीतर हुई इन दो घटनाओं ने पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को दहलाकर रख दिया है। सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं और हर एंगल पर इन घटनाओं के सुराग तलाशे जा रहे हैं।
इस बीच यूपी के मेरठ में सुरक्षा और खुफिया विभाग से जुड़े सूत्रों ने एक बेहद खतरनाक साजिश की तरफ इशारा किया है। ये साजिश है विदेशी खुफिया एजेंसी ISI के जरिए धार्मिक जमातों का इस्तेमाल कर, कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले आम युवाओं को आतंकी घटनाओं के लिए भर्ती करना। खुफिया इनपुट के मुताबिक, शातिर तरीके से चिन्हित किए गए इन युवाओं का पहले धार्मिक ढांचे में विश्वास बढ़ाकर, मनोवैज्ञानिक तौर पर प्रभावित किया जाता है। इसके बाद आर्थिक लालच और भविष्य के वादों के दम पर उन्हें देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल कर लिया जाता है।
सूत्रों के अनुसार, ISI की रणनीति काफी चालाकी से तैयार होती है। सबसे पहले ऐसी जमातों का सहारा लिया जाता है, जहां कमजोर परिवारों के सीधे-सादे युवा शामिल होते हैं। इनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता, लेकिन आर्थिक या सामाजिक दबाव की स्थिति में वे आसानी से झुक जाते हैं। 40 दिन की कथित ट्रेनिंग अवधि के दौरान नई-नई तकनीकें अपनाकर युवाओं का नजरिया बदला जाता है। इसके बाद उन्हें ‘विशेष मिशन’ और धार्मिक कर्तव्य जैसे नारों और कट्टरपंथ से जुड़े वीडियो के जरिए वैचारिक तौर पर बांधा जाता है।
ब्रेनवॉश के अलग-अलग तरीके – खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया में ब्रेनवॉश के लिए गंभीर उपाय अपनाए जाते हैं। इनमें लगातार मानसिक स्थिति को प्रभावित करने वाली बातचीत, खास ट्रेनिंग और गोपनीयता पर जोर दिया जाता है। इसके बाद प्रशिक्षित युवाओं को स्लीपर सेल के रूप में तैनात किया जाता है। ये ऐसे तैयार किए जाते हैं कि परिवार और समाज को भी इनसे कोई संकेत नहीं मिलता। जब कोई युवक शक की वजह से पकड़ा जाता है, तब जाकर परिवार को असलियत पता चलती है और गहरा झटका लगता है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि पकड़े गए मामलों में परिवारों की सामाजिक और आर्थिक हालत ने एक पैटर्न दर्शाया है। अधिकतर परिवार सीमित साधनों के साथ ग्रामीण या छोटे शहरों से संबंध रखते हैं। यही कमजोर पड़ाव एजेंसियों के लिए एक हथियार बन जाता है। सुरक्षा एजेंसियां लोगों को आगाह कर रही हैं कि ऐसी किसी भी संदिग्ध भर्ती या अचानक धन-लालच की पेशकश पर सतर्क रहें और स्थानीय पुलिस या खुफिया इकाइयों को सूचित करें।