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बाज़ार बनते त्योहार

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आज यदि हमारे सामने कोई सबसे बड़ी चुनौती है त्योहारों को लेकर तो वह है त्योहारों का बाज़ारीकरण । आज संचार का कोई भी माध्यम आप देखें चाहे प्रिंट मीडिया हो , टीवी हो या फिर आजका सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया, सबका समवेत स्वर यही प्रतीत होता है कि व्यक्ति का एकमात्र गुण उसकी ख़रीदारी क्षमता पर निर्भर है… यदि करवाचौथ पर आप अपनी पत्नी को हीरा ख़रीद कर देते हैं तो ही आप अच्छे पति हैं .. एक टीवी एड का स्लोगन ही है ‘diamonds are the best translation of ur emotions’ रक्षा बंधन पर हमारा मीडिया हमें यह समझाने में लगा रहता है कि अच्छा भाई वही है जो बहनों को मंहगे तोहफ़े ला कर देता है,धनतेरस पर यदि हम चाँदी सोना नहीं ख़रीदते हैं तो हम एलियन जैसे लगने लगते हैं , दीवाली पर हम एक लिस्ट बनाते हैं कि किस किस को क्या गिफ़्ट देने हैं फिर तय होती है हैसियत के हिसाब से डिब्बे की क़ीमत … इनको तो इससे कम का दे नहीं सकते … पिछले साल बड़ा गिफ़्ट आया था वहाँ से… इनको इस बार रहने देते हैं हम ही दिये जा रहे हैं दो साल से वो तो आते नहीं है … फिर सब निकल पड़ते हैं गाड़ियों में रिश्तों की सजावटी पैकिंग लेकर … पंच-पर्व समाप्त होते होते ढेर सारे डिब्बे हमारे घर की शोभा बढ़ा रहे होते हैं किसी कोने में पड़े हुऐ…. इस पूरी क़वायद में हम रिश्तों को लेकर कितने समृद्ध हुऐ ये तो विचार का विषय हो सकता है लेकिन एक बात तय है कि बाज़ार की कुछ कंपनियों के बैंक बैलेंस ज़रूर समृद्ध हुए….एक बात यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि बाज़ार से मेरा कोई विरोध नहीं है लेकिन रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं का यह बाज़ारीकरण न केवल विचारणीय है अपितु चिंतनीय भी है ….
हम अपनी नयी पीढ़ी को त्योहार किस रूप में सौंप रहे है थोडा रुक कर सोचना पड़ेगा अाज किसी नवयुवक या नवयुवती से पूछिये कि दीपावली पर पंच-पर्व ( धनतेरस, नरक- चतुर्दशी,दीपावली,गोवर्धन एवं भैया-दूज )को मनाने के पीछे क्या कारण निहित हैं तो शायद ही आपको उत्तर मिले…
तो आइये एक नयी शुरुआत करते हैं ,हम इन पर्वों की सनातन परंपरा को पुनर्जीवन देने का एक प्रयास करते हैं , जेन-नेक्स्ट को मानवीय संवेदनाओं का वाहक बनाते हैं … उन्हे यह संदेश देते हैं कि अच्छा मनुष्य होने के लिये हमारे ह्रदय में प्रेम , सौहार्द और साहचर्य होना ज़रूरी है ना कि उनका अच्छा ख़रीदार होना….
तोहफ़े ज़रूर दें किंतु बिना प्राइस-टैग के… एक फूल दें, पौधा दे, एक स्वीट सी मुस्कुराहट दें और सबसे ज़रूरी ..अपना समय दें .. व्हाट्सअप या फ़ेसबुक के मैसेज कट पेस्ट फारवर्ड करने से बेहतर है किसी मित्र के साथ थोडा समय साझा करें
और अंत में एक और बेहद ज़रूरी बात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जब संसार के सबसे शक्तिशाली , समृद्धिशाली,ज्ञानी , किंतु अहंकारी लंकाघिपति रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे तो पुरवासियों ने उनका स्वागत मिष्ठान व दीपों से किया था … बारूदी पटाखों से नहीं कालांतर में यह कुरीति कब दीवाली के साथ जुड़ गयी पता नहीं … तो दीवाली की ख़ुशियाँ मनाइये मिष्ठानों से,दीपों से , मित्रता से ,प्रेम से , सौहार्द से .. किंतु पटाखों से बिल्कुल नहीं …आइये शपथ लें कि इस दीवाली एक पौधा ज़रूर रोपेंगे .. चाहे गमले में ही सही.. पटाखों को हाथ नहीं लगाएँगे … अपने पर्यावरण की रक्षा में हाथ बंटाऐंगे…
?????पंच-पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित

डॉक्टरविमल त्यागी