बेटी बचाओ अभियान की सफलता के लिए चिकित्सा जगत में डर के साथ साथ जन सामान्य में भी पीसीपीएनडीटी क़ानून का किसी न किसी रूप में भय होना अनिवार्य है!! कन्या भ्रूण ह्त्या रोकने के अभियानों में पहले तो मीडिया व अब सरकारी विभागों द्वारा स्टिंग ऑपरेशन द्वारा नाटकीय मरीज बन बन के डॉक्टरों को सबक सिखाने के बावजूद भी …
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कौन कहता है, डॉक्टर संवेदन शील या भावुक नहीं होते ?
Dr. Ashok Mittal Director & Chief Orthopedic Surgeon 21 दिसम्बर, 2015 की शाम को जब मैं मुंबई से लौट रहा था तो प्लेन में बेठने के बाद वो एक घंटे तक रनवे पे ही खड़ा रहा, फिर डेढ़ घंटे की उड़ान. पूरे ढाई घंटे नितांत अकेला रहा. उन तन्हाई के पलों में भागचंद भैया के बारे में ही सोच रहा …
Read More »मुझको भी तरकीब सिखा कोई, यार जुलाहे
• गुलज़ार मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमें आगे बुनने लगते हो तेरे इस ताने में लेकिन इक भी गाँठ गिरह बुनतर की देख नहीं सकता है कोई मैंने तो इक बार बुना था …
Read More »जो जाता है वो यादों को मिटा कर क्यों नहीं जाता
• प्रबुद्ध सौरभ मेरी आँखों से हिजरत का वो मंज़र क्यों नहीं जाता बिछड़ कर भी बिछड़ जाने का ये डर क्यों नहीं जाता अगर यह ज़ख़्म भरना है, तो फिर भर क्यों नहीं जाता अगर यह जानलेवा है, तो मैं मर क्यों नहीं जाता अगर तू दोस्त है तो फिर ये ख़ंज़र क्यों है हाथों में अगर दुश्मन है …
Read More »विलासिता का दुख
• अरविन्द सारस्वत जब कभी भी किसी विकसित देश में उपलब्ध आम जनसुविधओं के बारे में सुनता या पढ़ता हूं तो हृदय से हूक उठ जाती है। अब इसका अर्थ आप यह कदापि ग्रहण न करें कि मैं उनकी सुविधा-सम्पन्नता से जल उठता हूं। बिना किसी आत्म प्रवंचना के कहूं तो मुझे यह उनकी विपन्नता ही नजर आती है। सुख-सुविधाओं …
Read More »पसीने की कीमत
• दीपिका जोशी शहालपुर में नारायण नामका एक अमीर साहूकार रहता था। उसका एक बेटा और एक बेटी थी। लड़की की शादी हुए तीन साल हो गये थे और वह अपने ससुराल में खुश थी। लड़का राजू वैसे तो बुद्वू नहीं था लेकिन गलत संगत में बिगड सा गया था। अपने पिता के पास बहुत पैसा है यह उसे घमंड …
Read More »ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
• कुँअर बेचैन जन्म: 01 जुलाई 1942 ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार क़ंदम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक घर से निकला तो …
Read More »को काहू को भाई
• नानकदेव जन्म: संवत् १५२६,कार्तिक पूर्णिमा निधन: संवत् 15९६ हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥ धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
Read More »त्राहि-त्राहि – इंसान
समूचा जन-समुदाय कलियुग की आपदायें सहता हुआ त्राहि-त्राहि कर रहा था। जन-समुदाय की करुण पुकार पर आसमान में एक छवि अंकित हुई और आकाशवाणी हुई- ‘‘तुम लोग कौन?’’ एक छोटे से समूह से आवाज उभरी-‘‘हिन्दू।’’ और आसमान से एक हाथ ने आकर उस हिन्दू समुदाय को आपदाओं से मुक्त कर दिया। अभी भी कुछ लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। पुनः …
Read More »जय श्री अद्भुत चापलूस चालीसा
• अशोक गौतम भक्तो! सरकारी नौकरी में रहते आज इतने अधिक खतरे बढ़ गए हैं कि अपने को तीस मार खां कहने वाले भी कुर्सी पर बैठने से पहले सौ बार भगवान का नाम लेते हैं। क्या पता कब जनता से कुछ लेते क्राइम ब्रांच वालों के हत्थे चढ़ जाएं। क्या पता कब जैसे तबादला हो जाए! क्या पता कब …
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