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जोक्स : सुहाग रात और सत्संग और बापू की बिल्ली

सुहाग रात और सत्संग  सुहाग रात के दिन पति दरवाजा बंद कर के अपनी पत्नी के करीब गया। उसका घूंघट उठाकर बोला- आज से हम पति-पत्नी हैं। घर के सभी बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देना। उनका आशीर्वाद पाना। छोटों को प्यार देना। सभी के साथ अच्छा बर्ताव करना। सुबह-शाम भगवान की पूजा पाठ करना। घर में किसी को भी कभी कोई …

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जोक्स : दिमाग का दही और दोस्तों की शादी

दिमाग का दही बेटी– मां मुझे कुछ ताजा हवा चाहिए। क्या मैं बाहर चली जाऊं? मां– हां लेकिन अपनी ‘ताजी हवा’ से कहना 8 बजे से पहले घर छोड़ दे। *** दो दोस्त शादी के सालों बाद मिले। पहला दोस्त – औरभाई कैसी है तेरी बीवी? दूसरा दोस्त – स्वर्ग की अप्सरा, और तेरी? पहला दोस्त (मायूस होते हुए) – मेरी तो अभी …

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व्यंग : कुत्ते भी कभी बाट कर खाते हैं

अन्य मुहल्लों की तरह हमारे मुहल्ले में भी बहुत सारे कुत्ते रहते हैं। पर जिन दो कुत्तों की यह कहानी है, वे अन्य कुत्तों से बिलकुल भिन्न हैं। वे परम मित्र हैं। उनकी मित्रता इतनी प्रगाढ़ है कि मुहल्ले वाले उनकी दोस्ती की कसमें तक खाते हैं। अपने बच्चों को नसीहत देते वक्त उनकी मिसालें देते हैं। आज तक इन …

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टिपण्णी : सांप्रदायिकता से जूझते अफ़सानानिगार मंटो

अरुण प्रसाद रजक सआदत हसन मंटो का पूरा संघर्ष आदमीयत या इंसानियत के लिए था। वे जानते थे कि अहसास के शुरुआती छोर से लेकर आखिरी छोर तक एक इन्सान सिर्फ इन्सान है, उससे बड़ा न कोई धर्म है, न मज़हब, न व्यवस्था। मंटो आदमीयत के इस अहसास से अच्छी तरह वाकिफ़ थे। उनके अफ़सानों का सरोकार न राजनीति से …

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व्यंग : स्वतंत्र हो गऐ हैं

उस दिन मंदिर चैक पर फिर वही घटना घटी। विपरीत दिशा से दो मोटरसायकिले तेज रफ्तार से दौड़ती, लहरातीं-बलखातीं और लोगों के मन में दहशत पैदा करती आईं और बीच चैराहे पर खड़ी हो गईं। दोनों पर दो-दो युवक सवार थे। चारों युवक गप्पबाजी करने लगे। उनके हावभाव से ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता था कि चैराहे से जुड़ने वाली …

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कविता : कोई दीवाना कहता है

डॉ कुमार विश्वास   कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !! मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !! मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है ! कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !! यहाँ सब …

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कविता : अपने आप से लड़ता मैं

मनोज अबोध अपने आप से लड़ता मैं यानी, ख़ुद पर पहरा मैं वो बोला-नादानी थी फिर उसको क्या कहता मैं जाने कैसा जज़्बा था माँ देखी तो मचला मैं साथ उगा था सूरज के साँझ ढली तो लौटा मैं वो भी कुछ अनजाना-सा कुछ था बदला-बदला मैं झूठ का खोल उतारा तो निकला सीधा सच्चा मैं  

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हँसाता हूँ, रूमानी बनाता हूँ, अलख जगाता हूँ , ह्रदय तक जाता हूँ : डॉ कुमार विश्वास

  By- Alok   Indianz X_PRESS ने डॉ कुमार विश्वास से न्यूज़ीलैण्ड आने से पहले बात की , वोह हाल ही में  अमेरिका प्रवास पर थे और एक के बाद अमरीका और कनाडा के  ७ शहरों में ९ दिन के अन्दर लोगो को अपने तेजस्वी व्यक्तित्व और शब्दों के सम्मोहन से आंदोलित कर रहे थे | गूगल ने उन्हें आमंत्रित …

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