Saturday , April 27 2024 12:57 AM
Home / News / India / भविष्‍य की जंग के लिए भारत की तैयारी, बनाएगा ऐसे घातक हथियार जो अबतक फिल्‍मों में ही देखे होंगे

भविष्‍य की जंग के लिए भारत की तैयारी, बनाएगा ऐसे घातक हथियार जो अबतक फिल्‍मों में ही देखे होंगे

 

डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की तैयारी डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस (DEWs) के लिए एक नैशनल प्रोग्राम चलाने की है। पूरी दुनिया में ऐसे हथियारों की पूछ बढ़ रही है ताकि आमना-सामना हुए बिना ही युद्ध लड़े जा सकें।  ये हथियार कुछ-कुछ वैसे ही होंगे जैसे फैंटेसी मूवी सीरीज ‘स्‍टार वार्स’ में दिखाए गए हैं। DRDO के इस नैशनल प्‍लान में शॉर्ट, मीडियम और लॉन्‍ग टर्म के लिए लक्ष्‍य तय किए जाएंगे। कोशिश होगी कि घरेलू इंडस्‍ट्री के साथ मिलकर 100 किलोवाट क्षमता तक के DEWs डेवलप किए जा सकें। DRDO पहले से ही कई DEW प्रोजेक्‍ट्स पर काम कर रहा है। इसमें ‘केमिकनल ऑक्सिजन आयोडीन’ से लेकर ‘हाई पावर फाइबर’ लेसर तक शामिल हैं। DRDO एक पार्टिकल बीम वेपन ‘काली’ पर भी काम कर रहा है। हालांकि इनमें से कोई भी ऑपरेशनल होने के करीब नहीं है।
क्‍या होते हैं डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस?
परंपरागत हथियारों में काइनेटिक/केमिकल एनर्जी का इस्‍तेमाल होता है। मिसाइलों व अन्‍य प्रक्षेपास्‍त्रों की मदद से टारगेट को उड़ाया जाता है। डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस में टारगेट पर इलेक्‍ट्रॉनिक/मैग्‍नेटिक एनर्जी या सबएटॉमिक पार्टिकल्‍स की बौछार की जाती है। इनके दो मेजर सब-सिस्‍टम होते हैं- लेसर सोर्स और पार्टिकल बीम कंट्रोल सिस्‍टम। पावर की बात करें तो एक मिसाइल को उड़ाने के लिए किसी लेसर वेपन को 500 किलोवॉट की बीम की जरूरत पड़ेगी।
क्‍या हैं ऐसे हथियारों के फायदे?
– प्रकाश की गति से लगते हैं, निशाना एकदम सटीक।
– एक शॉट पर कम खर्च आता है, मिसाइलों के मुकाबले फ्लेक्सिबल।
– रैपिड री-टारगेटिंग के साथ कई टारगेट्स को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है।
– अगर पावर सप्‍लाई पर्याप्‍त हो तो इनका जब तक चाहें, इस्‍तेमाल जारी रख सकते हैं।

दो फेज में डेवलप होंगे ऐसे हथियार
अगले दशक के लिए DRDO का रोडमैप कहता है कि फेज 1 में सेना और वायुसेना को कम से कम 20 ‘टैक्टिकल हाई एनर्जी लेसर सिस्‍टम्‍स’ की जरूरत होगी। इस चरण में डेवलप हथियारों की रेंज 6 से 8 किलोमीटर होगी। फेज 2 में ऐसे लेसर सिस्‍टम तैयार किए जाएंगे जिनकी रेंज 20 किलोमीटर से ज्‍यादा है। सेना को 20 हाई पावर इलेक्‍ट्रोमैग्‍नेटिक वेपन सिस्‍टम की भी जरूरत है जिनकी फेज 1 में रेंज 6 से 8 किलोमीटर तथा फेज 2 में रेंज 15 किलोमीटर से ज्‍यादा होगी।

दो DEW ऐंटी-ड्रोन सिस्‍टम बेहद शुरुआती
DRDO ने अबतक दो ऐंटी-ड्रोन DEW सिस्‍टम बनाए हैं जिनका बड़े पैमाने पर उत्‍पादन शुरू होना है। इनमें से एक ट्रेलर माउंटेड DEW है जो 10 किलोवाट के लेसर से हवा में 1 किलोमीटर की रेंज में टारगेट को उड़ा सकता है। दूसरा काम्‍पैक्‍ट ट्राइपॉड-माउंटेड है जो 1 किलोमीटर रेंज के लिए 2 किलोवाट लेसर यूज करता है। यह सिस्‍टम सेनाओं, इंटेलिजेंस एजेंसियों और पुलिस फोर्सज के सामने रखे जा चुके हैं। इनकी मदद से माइक्रो ड्रोन्‍स को जैम करने के अलावा उनके इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स को भी डैमेज किया जा सकता है।

अभी बहुत रिसर्च-डेवलपमेंट की होगी जरूरत
हालांकि स्‍वदेशी DEW सिस्‍टम अभी बाकी देशों के मुकाबले शुरुआती स्‍तर में ही हैं। अमेरिका, रूस, चीन, जर्मनी और इजरायल के पास काफी शक्तिशाली DEWs हैं। अमेरिका ने कई साल पहले एक जंगी जहाज से 33 किलोवाट लेसर के जरिए ड्रोन्‍स को टारगेट किया था। मई 2020 में अमेरिकी नौसेना ने एक ड्रोन एयरक्राफ्ट को हवा में ही अपंग कर दिया था। अमेरिका अगले चार-पांच साल में 300 से 500 किलोवाट के DEWs तैनात कर सकता है जो क्रूज मिसाइलों को उड़ाने में सक्षम होंगे।