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South China Sea पर अमेरिका की दो टूक- ‘एक इंच नहीं छोड़ेंगे’, चीन का जवाब- ‘सैनिकों की जान खतरे में डाल रहा


अमेरिका का चीन के साथ बढ़ते टकराव के बीच सैन्य तनाव पर रुख एकदम साफ है तो चीन भी नरम पड़ने के मूड में नहीं है। अमेरिका के डिफेंस विंग चीफ ने साफ-साफ कहा है कि प्रशांत महासागर में अमेरिका एक इंच भी पीछे नहीं हटेगा। वहीं, चीन भी चुप नहीं बैठा है और उसने कह दिया है कि अमेरिका सैनिकों की जान खतरे में डाल रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार से लेकर मानवाधिकार उल्लंघन और सबसे ज्यादा दक्षिण चीन सागर पर बने तनावपूर्ण हालात के बीच ऐसी बयानबाजी पर दोनों ही एक-दूसरे पर उकसाने का आरोप भी लगा रहे हैं।
‘सैन्य कार्रवाई से ताकत बढ़ाने की कोशिश’
वॉशिंगटन ने बुधवार को दक्षिण चीन सागर में निर्माणकार्य और सैन्य कार्रवाई में लगीं चीन की 24 कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। हवाई में अमेरिका के रक्षा सचिव मार्क एस्पर ने कहा है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी आक्रामक सैन्य आधुनिकीकरण प्रोग्राम की मदद से दुनियाभर में ताकत स्थापित करना चाहती है। इसके तहत से PLA (पीपल्स लिबरेशन पार्टी) दक्षिण और पूर्व चीन सागर में और जहां ही सरकार को जरूरत लग रही है, वहां आक्रामक रवैया अपना रही है।
पहले हफ्ते का अभ्यास खत्म होने का बाद अमेरिकी नौसेना ने कहा है कि अगला हफ्ता और भी धमाकेदार होने वाला है। सेना का कहना है कि RIMPAC में हुई ट्रेनिंग ऐसी फोर्स तैयार करती है जो घातक होती है और मुश्किल हालात में खतरनाक जवाब दे सकती है। इससे नई पार्टनरशिप बनती है जिससे शांति की स्थापना में मदद मिलती है और टकराव से बचा जा सकता है। वहीं, इस साल के युद्धाभ्यास के डायरेक्टर कैप्टन जे स्टीनगोल्ड का कहना है कि इस दौरान रूस या चीन का कोई जहाज इस क्षेत्र में दिखाई नहीं दिया।
इस युद्धाभ्‍यास में 10 देशों- ऑस्‍ट्रेलिया, ब्रुनई, कनाडा, फ्रांस, जापान, न्‍यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, फिलीपीन्‍स, सिंगापुर और अमेरिका- के 20 महाविनाशक युद्धपोत और सबमरीन हिस्‍सा ले रहे हैं। यह युद्धाभ्‍यास ऐसे समय पर होने जा रहा है जब अमेरिका, ऑस्‍ट्रेलिया समेत कई देशों के साथ चीन का तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दादागिरी को रोकने के लिए अपने एयरक्राफ्ट कैरियर को तैनात किया है और युद्धाभ्‍यास भी कर रहा है।

आमतौर पर रिमपैक में 30 देशों के 50 युद्धपोत-सबमरीन, 200 फाइटर जेट और 25 हजार जवान हिस्‍सा लेते रहे हैं। हालांकि, कोरोना संकट की वजह से इस बार केवल 5300 जवान ही हिस्‍सा ले रहे हैं। करीब 14 दिन तक क्‍वारंटाइन रहने के बाद ही इस अभ्‍यास में सैनिकों हिस्‍सा लेने दिया जा रहा है। कोरोना के चलते ही इसे इस बार जून-जुलाई में करने की जगह अगस्त के महीने में किया जा रहा है।
इस तनाव को देखते हुए माना जा रहा था कि अमेरिका ताइवान की नौसेना को भी रिमपैक में शामिल होने का न्‍यौता दे सकती है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। माना जा रहा है कि अमेरिका ने चीन के साथ तनाव के चरम पहुंचने से रोकने के लिए ताइवान को इस अभ्‍यास में न्‍योता नहीं दिया। अमेरिका ने कुछ वक्त पहले ही ताइवान के साथ अपने घातक F-16V फाइटर जेट की डील की है।

‘एक इंच क्षेत्र नहीं छोड़ेंगे’
हालांकि, एस्पर ने यह भी कहा है कि अमेरिका चीन के साथ काम करके उन्हें ‘ऐसे रास्ते पर लाएगा जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत आता हो।’ एस्पर ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को चीन के साथ ताकत की लड़ाई का केंद्र बताया। उन्होंने कहा, ‘हम इस क्षेत्र को छोड़ने वाले नहीं हैं, एक इंच को भी, किसी देश के लिए, किसी ऐसे देश के लिए जिसे लगता है कि उसकी सरकार, मानवाधिकार, संप्रभुता, प्रेस की फ्रीडम, धर्म की आजादी, असेंबली की आजादी पर उसके विचार दूसरों से बेहतर हैं।’

दरअसल, दक्षिण चीन सागर में जिस क्षेत्र पर चीन की नजर है वह खनिज और ऊर्जा संपदाओं का भंडार है। चीन का दूसरे देशों से टकराव भी कभी तेल, कभी गैस तो कभी मछलियों से भरे क्षेत्रों के आसपास होता है। चीन एक ‘U’ शेप की ‘नाइन डैश लाइन’ के आधार पर क्षेत्र में अपना दावा ठोकता है। इसके अंतर्गत वियतनाम का एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन (EEZ), परासल टापू, स्प्रैटली टापू, ब्रूने, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपीन और ताइवान के EEZ भी आते हैं। हेग स्थित एक ट्राइब्यूनल ने फिलिपील द्वारे दर्ज किए गए केस में 2016 में कहा था कि चीन का इस क्षेत्र पर कोई ऐतिहासिक अधिकार नहीं है और 1982 के UN Convention on the Law of the Sea के बाद इस लाइन को खत्म कर दिया गया था। (तस्वीर: 1995 में स्प्रैटली टापू पर चीन का ढांचा)

हालांकि, चीन को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दिया है और उसकी ‘आक्रामक’ गतिविधियां जारी हैं। बीती 13 जुलाई को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने पहली बार चीन के इस क्षेत्र में दावे को कानून-विरोधी बताया था और पेइचिंग पर आरोप लगाया था कि वह दूसरों को डराने-धमकाने का अभियान चला रहा है। अमेरिका का यह भी कहना है कि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और भारत ने साउथ चाइना सी में चीन की गतिविधियों से चिंता जताई है जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कानून खतरे में हैं। (तस्वीर: 2017 में स्प्रैटली टापू पर चीन का ढांचा)

पिछले साल चीन और वियतनाम के जहाज कई महीनों तक वियतनाम के EEZ में आमने-सामने रहे जब चीन के रिसर्च वेसल ने ऐसी जगह का सीस्मिक सर्वे (Sesmic Survey) किया जिसमें वियतनाम के तेल के ब्लॉक भी आते हैं। तनावपूर्ण स्थिति की वजह से वियतनाम के तेल उत्पादन पर असर पड़ा है। साथ ही यहां काम करने वाले रूस के Rosneft और स्पेन के Repsol के ऑपरेशन पर भी असर पड़ा है। कंसल्टंसी फर्म Wood Mackenzie के रिसर्च डायरेक्टर ऐंड्रू हारवुड का कहना है, ‘हम देख रहे हैं कि वियतनाम में तेल और गैस निवेश की दिलचस्पी में कमी आई है। तनाव बढ़ने से हालात सुधरेंगे नहीं।’ (तस्वीर: चीनी जहाजों को देखता वियतनाम का जवान)

मई में चीन के इसी जहाज ने मलेशिया में भी एक महीने तक डेरा डालकर रखा। यहां भी इसका ठिकाना मलेशिया की सरकारी तेल कंपनी Petronas के ड्रिलशिप के पास था। मलेशिया सरकार का कहना है कि 2016-2019 के बीच चीन ने 89 बार ऐसी गतिविधियों को अंजाम दिया है। इंडोनेशिया ने भी चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया है। जनवरी में जब चीन के जहाज इंडोनेशिया के EEZ में नटूना टापू के पास दाखिल हुए तो जकार्ता ने चीन के राजदूत को समन किया और अपने हवाई और समुद्री पट्रोल को तैनात कर दिया। नटूना टापू नैचरल गैस और मछलियों से भरपूर है और यहां के लोगों का कहना है चीन इस पर नजरें गड़ाए है। (तस्वीर: चीनी जहाज में मिला इंडोनेशियाई जहाजकर्मी का शव)
वियतनाम इस साल 10 सदस्यों वाले ASEAN (असोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स) की अध्यक्षता कर रहा है। उसका पहले से ही SCS को लेकर चीन से विवाद चल रहा है। 26 जून को हनोई में हुए समिट में वियतनाम और फिलिपीन ने कोरोना वायरस की महामारी की आढ़ में अपना दबदबा कायम कर रहे चीन को लेकर चिंता जताई कि क्षेत्र में असुरक्षा बढ़ रही है। चीन के इस महीने SCS में सैन्य अभ्यास को वियतनाम ने दक्षिणपूर्वी देशों से संबंधों के लिए खराब बताया। फिलिपीन के विदेश मंत्री तियोडोरो लॉक्सिन ने भी कहा है कि चीन के युद्धाभ्यास का कूटनीतक या कैसे भी, कड़ा जवाब दिया जाएगा। इसके बाद राष्ट्रपति ने अमेरिका के साथ दो दशकों के लिए किए सैन्य समझौते को खत्म करने का फैसला भी टाल दिया। (तस्वीर: ताइवान का युद्धाभ्यास)

‘अमेरिका के दबाव से डरता नहीं है चीन’
वहीं, चीन के रक्षा मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि ‘कुछ अमेरिकी नेता’ चीन-अमेरिका के सैन्य संबंध नवंबर में होने वाले चुनावों से पहले अपने फायदे के लिए खराब करना चाहते हैं और सैन्य टकराव पैदा करना चाहते हैं। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वु सियान ने कहा है, ‘इस तरह के व्यवहार से दोनों ओर के फ्रंटलाइन ऑफिसरों और सैनिकों की जान खतरे में पड़ती है।’ उन्होंने कहा कि चीन अमेरिका के दबाव और उकसावे से डरता नहीं है। वह अपनी रक्षा करेगा और अमेरिका को कोई मुसीबत खड़ी नहीं करने देगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि अमेरिका रणनीतिक विजन अपनाएगा और चीन के विकास को खुले मन से देखेगा और किसी भी तरह की परेशानी को पीछे छोड़ देगा।