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एक टीचर से कभी न सीखें ये 4 आदतें, करियर में सफल होने के बाद भी जिंदगी में हो जाओगे फेल


टीचर को हमेशा शिक्षा देने वाला और जिंदगी के उसूल सिखाने वाला माना गया है। लेकिन कुछ शिक्षक जाने अनजाने या कहें लापरवाही में गलत शिक्षा भी दे देते हैं। ऐसे में स्टूडेंट पढ़कर काबिल इंसान तो बन जाता है लेकिन गलत आदतें उसे जिंदगी में फेल कर देती हैं। आज शिक्षक दिवस पर हम ऐसी ही आदतों के बारे में बात कर रहें, जिन्हें नहीं सीखना चाहिए।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: इस मंत्र का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। इसलिए गुरु या कहें शिक्षक का बहुत सम्मान किया जाता है, उनकी अहमियत हर किसी की जिंदगी में अलग-अलग होती है। शिक्षक की हर बात मानने पर जोर भी दिया जाता है।
लेकिन टीचर जो सिखाए वो आपको सीखना होगा, ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। दरअसल कुछ शिक्षकों का गलत व्यवहार स्टूडेंट के दिमाग पर भी गलत असर करता है। शिक्षक की बुरी आदतों को सीखकर अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेता है। ऐसे में शिक्षक दिवस पर टीचर की ऐसी ही 4 आदतें बता रहें हैं जिन्हें गलती से भी नहीं सीखना चाहिए।
भेदभाव करना – कुछ शिक्षकों का क्लास में अलग-अलग बच्चों से अलग-अलग व्यवहार देखने को मिलता है। जो बच्चा पढ़ाई में ज्यादा अच्छा होता है वो उनका चहीता बन जाता है। ऐसे में बच्चों के दिमाग में भेदभाव की भावना आने लग जाती हैं क्योंकि टीचर के लिए सभी बच्चे बराबर होना चाहिए। ऐसे में शिक्षक के भेदभाव वाले व्यवहार को जब बच्चे सिखते हैं तो जिंदगी में काबिल बनने के बाद भी अच्छा इंसान नहीं बन जाते हैं।
किसी को नीचा दिखाना – टीचर्स बच्चों को डांटते वक्त कभी-कभी अपने शब्दों का चयन गलत कर लेते हैं। पूरी क्लास के सामने एक बच्चे को नीचा तक दिखा देते हैं। इस दौरान खुद को अपमानित महसूस कर रहे बच्चे के दिमाग पर गलत असर पड़ता है। बड़े होकर उसकी पर्सनालिटी भी इस तरह की हो जाती है। वह किसी को सम्मान देना भी जरूरी नहीं समझता है।
हमेशा गुस्सा करना – कहा जाता है कि बच्चों को प्यार की भाषा समझ आती है, लेकिन ये बात कुछ शिक्षकों को समझ ही नहीं आती। अपनी बात समझाने के लिए टीचर बार-बार गुस्सा करते रहते है। इसकी वजह से एक टॉक्सिक माहौल बनता है, इससे बच्चा भी इस तरह का व्यवहार करना सिखता है। भले फिर किसी कंपनी का CEO बन जाए, लेकिन उसमें बात करने का सलीका नहीं होता है।
भावनाओं की कदर ना करना – जब कोई बच्चा अपनी पर्सनल प्रॉब्लम या उसके साथ हुई किसी घटना के बारे में बताता है तो टीचर विश्वास नहीं करते हैं। इतना ही नहीं कई दफा तो मजाक भी उड़ा देते हैं। ऐसे में बच्चे को बहुत बुरा फील होता है। इस तरह किसी की फीलिंग की कदर ना करके टीचर अनजाने में बच्चों को यही सिखा देते हैं।