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अब आंखें बताएंगी दिल का हाल, गंभीर रोगों की देगी सटीक जानकारी


कहते हैं आंखें आत्मा की खिड़की होती है लेकिन एक शोध से पता चलता है कि आंखें दिल की भी खिड़की होती हैं। हालिया शोध के अनुसार आंखों से भी दिल की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। डाक्टर दिल की बीमारियों के जोखिम की पहचान करने के लिए कई कारकों जैसे उम्र, धूम्रपान करने के इतिहास और उच्च रक्तचाप पर ध्यान देते हैं लेकिन आंखों के पीछे मौजूद रक्त वाहिकाओं में होने वाले बदलाव से दिल के स्वास्थ्य के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

पूर्व के शोध में आंखों में होने वाले बदलाव और उच्च रक्तचाप के बीच सीधा संबंध है। स्विट्जरलैंड की यूनिवॢसटी आफ बासेल के प्रोफैसर हेनर हानसेन ने कहा कि हमारे पास जो डाटा है उससे स्पष्ट होता है कि बहुत कम उम्र के बच्चों (6 से 8 साल) जो स्वस्थ हैं, में भी उच्च रक्तचाप की वजह से संवहनी में परिवर्तन आ सकता है। हमें यह पता नहीं चला है कि इससे उनके वयस्क होने पर खतरा बढ़ सकता है या नहीं, लेकिन वयस्कों में भी संवहनी में ऐसे ही परिवर्तन देखने को मिलते हैं जो दिल संबंधी बीमारियों का संकेत देते हैं। आंखों में होने वाले परिवर्तन और दिल संबंधी बीमारियों के बीच संबंध को जांचने के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा शोध है। शोध को अमरीकन हार्ट एसोसिएशंस हाईपरटैंशन जनरल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में पता चला है कि आंखों के पीछे मौजूद छोटी रक्त वाहिकाओं में तब परिवर्तन देखने को मिलता है जब दिल की धमनियों में सिकुडऩ होती है या रक्तचाप में बढ़ौतरी होती है।

दृष्टि प्रभावित नहीं होती
शोधकत्र्ता प्रो. रुतनिका ने कहा-रेटिना में होने वाले इन बदलावों से व्यक्ति की दृष्टि प्रभावित नहीं होती लेकिन यह दिल की बीमारियों की सटीकता से पहचान कर सकता है। टीम अब यह अध्ययन करने में जुटी है कि क्या आंखों में होने वाले इन्हीं बदलावों से किसी व्यक्ति में एक दशक बाद भी दिल की बीमारियों के जोखिम के बारे में पता लगाया जा सकता है।

रेटिनल मोर्फोलाजी से पता लगा सकते हैं
लंदन की सेंट जार्ज यूनिवॢसटी की प्रमुख शोधकत्र्ता अलेसिया रुडनिका ने कहा कि अगर शरीर में जो कुछ भी हो रहा है उसकी वजह से आंखों के पीछे भी परिवर्तन होता है तो हम आंखों से बहुत कुछ पता लगा सकते हैं। रेटिनल मोर्फोलाजी को सिर्फ एक शोध उपकरण बनाने की जगह क्लीनिक अभ्यास में भी लाने की जरूरत है। इस शोध में यू.के. बायोबैंक से 55,000 वयस्कों के डाटा पर अध्ययन किया गया। एक आटोमेटेड प्रोग्राम ने हर प्रतिभागी की आंखों के पीछे की रक्त वाहिकाओं की डिजीटल तस्वीर की जांच की।

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