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ज्ञानवापी व्यासजी तहखाना पूजा मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में आज अहम सुनवाई, मुस्लिम पक्ष ने दायर की है याचिका


उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हलचल तेज है। ज्ञानवापी व्यासजी तहखाना में पूजा के मामले को लेकर हलचल बढ़ी हुई है। आज हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई होनी है। मुस्लिम पक्ष की ओर से हाई कोर्ट में गुरुवार को याचिका दायर की गई। ज्ञानवापी व्यासजी तहखाना मामले में जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई है। इसमें व्यासजी तहखाने में पूजा की अनुमति के जिला जज के आदेश को चुनौती दी गई है। दूसरी तरफ, मंदिर पक्ष के शैलेंद्र पाठक ने कैविएट दाखिल कर उन्हें भी सुनवाई का अवसर देने की मांग की है।
वाराणसी जिला जज ने 31 जनवरी को व्यासजी तहखाने में पूजा कराने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को पुजारी की नियुक्ति का आदेश दिया। ज्ञानवापी के तहखाना स्थित मूर्ति की पूजा की व्यवस्था करने का डीएम को निर्देश दिया। मसाजिद कमिटी इस आदेश के खिलाफ गुरुवार की भोर में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को हाई कोर्ट जाने को कहा। मुस्लिम पक्ष ने आनन-फानन में इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की। मस्जिद पक्ष ने व्यासजी तहखाने में पूजा के जिला जज के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है।
याचिका में आदेश पर सवाल – याचिका में कहा गया है कि अब तक सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत वाद की पोषणीयता अर्जी निस्तारित नहीं हुई है। इसलिए पूजा का अधिकार देने का आदेश सही नहीं है। वहीं हिंदू पक्ष के वादी शैलेंद्र कुमार पाठक ने कैविएट दाखिल की है। इसमें मांग की गई है कि अगर इंतेजामिया कमिटी कोई याचिका दाखिल करती है तो कोई भी आदेश करने से पहले कोर्ट में उनका भी पक्ष सुना जाए।
सुप्रीम कोर्ट में लगा झटका – अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमिटी की ओर से इससे पहले वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि स्थानीय जिला प्रशासन के पास रात के अंधेरे में इतनी जल्दबाजी में पूजा शुरू करा रही है। इसका कोई कारण नहीं है। अदालत की ओर जारी आदेश में उन्हें एक सप्ताह का समय दिया गया है। इस अवधि में जरूरी इंतजाम किए जाने हैं। जिला अदालत ने बुधवार को व्यासजी खाने में हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार देने का आदेश दिया। साथ ही जिला प्रशासन को 7 दिन के भीतर मूर्तियों की पूजा और राग-भोग कराए जाने का प्रबंध करने का आदेश दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को कोई राहत नहीं दी।