
भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक का विशेष महत्व प्राप्त है। विष्णु पुराण में स्वास्तिक को भगवान विष्णु का प्रतीक बताया गया है। वहीं वास्तु विज्ञान के अनुसार, घर आदि में वास्तु के कुछ उपाय अपनाने से आ रही नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और वास्तु दोष भी हटता है। आईए जानें वह उपाय क्या है।
पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करके चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष व लक्ष्मी प्राप्त होती है।
वास्तु दोष दूर करने के लिये 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देता है।
धार्मिक कार्यो में रोली, हल्दी,या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्टि देता है।
गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।
स्वस्तिक में अगर पंद्रह या बीस का यंत्र बनाकर लोकेट या अंगूठी में पहना जाए तो विघ्नों का नाश होकर सफलता मिलती है।
त्यौहारों में द्वार पर कुमकुम सिंदूर अथवा रंगोली से स्वस्तिक बनाना मंगलकारी होता है। ऐसी मान्यता है की देवी-देवता घर में प्रवेश करते हैं इसलिए उनके स्वागत के लिए द्वार पर इसे बनाया जाता है।
अगर कोई 7 गुरुवार को ईशान कोण में गंगाजल से धोकर सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाए और उसकी पंचोपचार पूजा करें साथ ही आधा तोला गुड़ का भोग भी लगाएं तो बिक्री बढ़ती है।
स्वस्तिक बनवाकर उसके ऊपर जिस भी देवता को बिठा के पूजा करे तो वो शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
देव स्थान में स्वस्तिक बनाकर उस पर पंच धान्य का दीपक जलाकर रखने से कुछ समय में इच्छित कार्य पूर्ण होते हैं।
भजन करने से पहले आसन के नीचे पानी, हल्दी अथवा चंदन से स्वास्तिक बनाकर उस स्वस्तिक पर आसन बिछाकर बैठकर भजन करने से सिद्धी शीघ्र प्राप्त होती है।
सोने से पूर्व स्वस्तिक को अगर तर्जनी से बनाया जाए तो सुख पूर्वक नींद आती है, बुरे सपने नहीं आते हैं।
मनोकामना सिद्धिहेतु मंदिरों में गोबर और कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है।
होली के कोयले से भोजपत्र पर स्वास्तिक बनाकर धारण करने से बुरी नजर से बचाव होता है और शुभता आती है।
पितृ पक्ष में बालिकाए संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक भी बनाती है शुभता के लिए और पितरो का आशीर्वाद लेने के लिए।
वास्तु दोष दूर करने के लिए पिरामिड में भी स्वस्तिक बनाकर रखने की सलाह दी जाती है।
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