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क्यों हंस पर सवारी करती हैं देवी सरस्वती


हमारे हिंदू धर्म में प्रत्येक भगवान का अपना अलग-अलग स्वरूप है। हर देवी-देवता का स्वरूप उनके व्यवहार के अनुरूप हिंदू धर्म के शास्त्रों में वर्णित है। अपने विभिन्न स्वरूप के साथ-साथ इनके वाहनों में भिन्नता देखने को मिलती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अधिकतर देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षी ही होते हैं।
तो आईए बात करते हैं देवी सरस्वती के वाहन के बारे में-
देवी सरस्वती साहित्य, कला एवं संगीत की देवी हैं। जिस तरह भगवान शंकर का वाहन नंदी, विष्णु का गरुड़, कार्तिकेय का मोर, दुर्गा का सिंह और श्रीगणेश का वाहन चूहा है, उसी तरह देवी सरस्वती का वाहन हंस है। लेकिन देवी सरस्वती का वाहन हंस ही क्यों है? इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा। इस बात का उल्लेख देवी की द्वादश नामावली में मिलता है-
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥
अर्थात सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है। यानी हंस उनका वाहन है।
आखिर हंस सरस्वती का वाहन क्यों है? इसे जानने के लिए सबसे पहले तो यह बात समझनी होगी कि यहां वाहन का अर्थ है क्या। वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं। यह एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात कर अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जा सकते हैं।
हंस को विवेक का प्रतीक कहा गया है। संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है। इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना। यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है-
नीरक्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्। – भामिनीविलास 1/13

इसका अर्थ है कि हंस में ऐसा विवेक होता है कि वह दूध और पानी पहचान लेता है।

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पवित्रता और शांति का प्रतीक है श्वेत रंग
हंस का रंग शुभ्र (श्वेत) होता है। यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है। पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है। शिक्षा की परिणति ज्ञान है। ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है। यही विवेक कहलाता है। मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परंपरा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा गया है। जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी।

सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत: करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है। हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते। सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो। सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं।

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एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक
हंस एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक है। शास्त्रों में वर्णित हंस-हंसनी के प्रेम की कथाओं को आज विज्ञान ने भी सहमति दी है। हंस अपना जोड़ा एक ही बार बनाते हैं। यदि उनमें से किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा उसके प्रेम में अपना जीवन बिता देता है, पर दूसरे को अपना जीवन साथी नहीं बनाता। हमारी परंपरा में भी हंस के इस प्रेम को मनुष्य के लिए आदर्श माना गया है।