जैसे कि सब जानते हैं कि भगवान गणेश बचपन में बहुत नटखट थे। उनकी बाल लीलाओं से मां पार्वती हमेशा परेशान रहती है और कभी-कभी तो क्रोधित होकर उन्हें दंड भी दे देती थी। तो आइए उनके बचपन से जुड़ी एेसी ही एक कथा के बारे में जानते हैं।
एक बार बाल गणेश अपने मित्र मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे। खेलते-खेलते उन्हें भूख लगने लगी। जहां वे सब खेल रहे थे उसके पास ही गौतम ऋषि का आश्रम था। ऋषि गौतम ध्यान में मग्न थे और उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बना रही थीं। गणेश जी आश्रम में गए और अहिल्या का ध्यान बंटते ही रसोई से सारा भोजन चुराकर ले गए और अपने मित्रों के साथ बांट कर खाने लगे। कुछ समय बाद अहिल्या ने देखा कि घर से सारा भोजन गायब है तब उन्होंने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से भोजन गायब हो गया है।
ऋषि गौतम ने जंगल में जाकर देखा तो गणपति जी अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। गौतम उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए और उनकी चोरी की बात बताई। माता पार्वती ने चोरी की बात सुनी तो गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया। उन्हें बांधकर पार्वती कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास होने लगा जैसे गणेश उनकी गोद में हैं, लेकिन जब देखा तो गणेश कुटिया में बंधे दिखे। माता काम में लग गईं, उन्हें थोड़ी देर बाद फिर आभास होने लगा जैसे गणेश शिवगणों के साथ खेल रहे हैं।
उन्होंने कुटिया में जाकर देखा तो गणेश वहीं बंधे दिखे। अब माता को हर जगह गणेश दिखने लगे। कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए और कभी रोते हुए। माता ने परेशान होकर फिर कुटिया में देखा तो गणेश आम बच्चों की तरह रो रहे थे। वे रस्सी से छुटने का प्रयास कर रहे थे। माता को उन पर अधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया।