हम में से बहुत से लोग होंगे जो हनुमान जी से संबंधित बहुत सी बातों के बारे में जानते होंगे। जिसमें इनके जन्म से संबंधित भी बहुत सी कथाएं हैं। लेकिन हम आज आपको इनके जन्म से जुड़ी एक एेसी कथा के बारे में बताएंगे जिसके बारे में जानना तो दूर किसी ने सुना भी नहीं होगा। तो आइए आज जानते हैं बजरंगबली के जन्म से जुड़ी एक अनकही और अनसुनी गाथा।
श्री व्यास जी ने राजा परीक्षित से कहा:-
परीक्षित होनी तो होके रहती है, इसे कोई बदल नही सकता। आज मैं तुम्हें इससे जुड़ा एक रहस्य बताता हूं, जो बहुत दुर्लभ है।
प्राचीन समय की बात है सृष्टि से जल तत्व अदृश्य हो गया। सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई और जीवन का अंत होने लगा तब ब्रह्मा जी विष्णु जी सभी ऋषि गण और देवता मिलकर भगवान शंकर की शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि और अब आप ही इस समस्या से ही निपटें और हल निकालें कि श्रृष्टि में पुन: जल तत्व कैसे आए।
देवों की विनती सुनने के बाद भोलेनाथ ने ग्यारहों रुद्रों को बुलाकर पूछा आप में से कोई ऐसा है जो सृष्टि को पुनः जल तत्व प्रदान कर सके। दस रूदों ने इनकार कर दिया। लेकिन ग्यारहवां रुद्र जिसका नाम हर था उसने कहा मेरे करतल में जल तत्व का पूर्ण निवास है।
मैं श्रृष्टि को पुन: जल तत्व प्रदान करूंगा लेकिन इसके लिए मूझे अपना शरीर गलाना पड़ेगा और शरीर गलने के बाद इस श्रृष्टि से मेरा नामो निशान मिट जाएगा। तब भगवान शिव ने हर रूपी रूद्र को वरदान दिया और कहा, कि तुम्हारे इस रूद्र रूपी शरीर के गलने के बाद तुम्हें नया शरीर और नया नाम प्राप्त होगा और मैं सम्पूर्ण रूप से तुम्हारे उस नए तन में निवास करूंगा जो श्रृष्टि के कल्याण के लिए होगा।
जिसके बाद हर नामक रूद्र ने अपने शरीर को गलाकर श्रृष्टि को जल तत्व प्रदान किया और उसी जल से एक महाबली वानर की उत्पत्ति हुई। जिसे हम हनुमान जी के नाम से जानते हैं।
कहा जाता है कि यह घटना सतयुग के चौथे चरण में घटी। शिवजी ने हनुमान जी को राम नाम का रसायन प्रदान किया। हनुमान जी ने राम नाम का जप प्रारम्भ किया। त्रेतायुग में अन्जना और केशरी के यहां पुत्र रूप में अवतरित हुए। इसलिए तुलसी दास जी ने हनुमान चालीसा में कहा है-
शंकर स्वयं केशरी नन्दन
तेज प्रताप महा जग बन्दन
दोहा-
तीन लोक चौदह भुवन कर धारे बलवान ।
राम काज हित प्रगट भे बीर बली हनुमान।
चौपाई-
अजय शरण तुम्हरे हनुमंता ।
नहि देखा तुम सम कोउ संता ।।
कृपा करहु मो पर बलधारी ।
भवं भवानी हर तिरपुरारी ।।
दोहा-
राम नाम की है सपथ ये श्रृष्टी के नाथ ।
परम् ज्ञान मोहि दीजिए साक्षी श्री रघुनाथ