आज के समय में हर कोई चाहता है कि भगवान की कृपा को वह पा सके और इसके लिए वह बहुत से प्रयास भी करता है। कई तरह के उपाय व पूजा-पाठ करता है। किंतु भगवान को पाने का केवल एक रास्ता ही है और वो है भक्ति का मार्ग। जो कि आज के समय में किसी को भी बेहद कठिन ही लगता है। क्योंकि इतना समय किसी को पास नहीं होता कि वह अपने भजन को बढ़ा सके। ईश्वर की भक्ति या फिर कहें उसकी साधना का सरल, सुगम और सुंदर माध्यम है कीर्तन। देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले इस कीर्तन से तन-मन और धन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख-सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
कहते हैं कि जब हम अपने आराध्य के नाम का जाप करते हैं तो इसका प्रभाव सामान्य होता है। लेकिन अगर वहीं कीर्तन के दौरान श्रद्धा भक्ति के साथ किए जाने वाले मंत्र या भजन गायन करते हैं तो इससे ईश्वर की अद्भुत कृपा बरसती है। मान्यता है कि जहां कीर्तन होता है वहां भगवान का वास होता है। कीर्तन जितने अधिक लोगों के साथ और जितनी देर तक किया जाए, उतना ही प्रभावशाली होता है। आज हम कीर्तन के फायदों और महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।
कीर्तन को नादयोग का एक अंग माना जाता है, जिसमें ध्वनि तरंगें उत्पन्न कर चेतनतापूर्वक उसका अनुसरण करते हैं। कीर्तन द्वारा आप स्वयं को शरीर तथा बाह्य वातावरण से दूर ले जा सकते हैं। सामान्य तौर पर किसी शब्द को दोहराने से मन की कमजोरी जाहिर होती है पर जब आप कीर्तन करते है तब आपके मन से संघर्ष नहीं होता। कीर्तन की कुछ धुनें सीखकर समूह में उनका अभ्यास कीजिए। कीर्तन को प्रभावी बनाने के लिए हारमोनियम, मृदंग और मंजीरों का उपयोग करना चाहिए।
एक बात हमेशा याद रखिए, कीर्तन कोई बौद्धिक योग नहीं है। कीर्तन में उत्पन्न हर ध्वनि तरंग आपकी चेतना की गहराई में उतरती है। बुद्धिजीवी कीर्तन को यदि बुद्धि के माध्यम से समझने की कोशिश करें तो संभवत: उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा, क्योंकि कीर्तन का प्रयोजन व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को छूना है।
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