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स्कंदपुराण में मिलता है पीपल से जुड़ा ये अनसुना रहस्य


पीपल के पेड़ को हिंदू धर्म में कितना महत्वपूर्ण माना गया है। इस बारे में लगभग लोगों को जानकारी है। परंतु इस बाते से आज भी बहुत से लोग अंजान होंगे कि पीपल को आख़िर क्यों इतना पूजनीय माना जाता है। जी हा, ऐसे बहुत से लोग हैं जो पूर्णिमा, अमावस्या तथा नियमित तौर पर इसकी पूजा करना तो नहीं भूलते परंतु इसके पूजनीय होने के पीछे का ग्रंथों में दिया असल कारण या कहें तथ्यों से आज भी रूबरू नही हो पाए।
चलिए आज जानते हैं इससे जुड़ी खास बात जिनका हमारे हिंदू धर्म में प्रमुख शास्त्रों में बहुत सही से वर्णन किया गया है।
समाज में प्रचलित मान्यताओं के आधार पर पीपल को देव वृक्ष कहा जाता है। श्री कृष्ण ने भगवद्गीता में पीपल के वृक्ष को स्वयं यानि अपना ही स्वरूप बताया है।

श्री कृष्ण कहते हैं ‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां’ अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं। संपूर्ण श्लोक कुछ इस प्रकार है कि ‘अश्वत्थ: पूजितोयत्र पूजिता:सर्व देवता:।’
अर्थात- पीपल की पूजा करने से एक साथ सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है।

तो वहीं स्कन्दपुराण में कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत भगवान निवास करते हैं। व्रतराज नामक ग्रंथ में कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाकर तीन बार परिक्रमा करता है उसके जीवन में से आर्थिक समस्या दूर हो जाती है। तथा भाग्य में आने वाली बाधा भी दूर होती है।
नित यानि रोज़ाना पीपल की पूजा एवं दर्शन करने से आयु के साथ सुख समृद्धि बढ़ती है। तो वहीं घर की स्त्री नियमित पीपल की पूजा करती हैं तो उसका सौभाग्य बढ़ता है। शनिवार के दिन पड़ रही अमावस्या तिथि हो सरसों के तेल का दीपक जलाकर काले तिल से पीपल वृक्ष की पूजा करने और सात बार परिक्रमा करने से शनि दोष के करण प्राप्त होने वाले कष्ट समाप्त होते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें इसके अनुसार भी पीपल पूजनीय माना जाता है क्योंकि यह एक ऐसा वृक्ष है जो गर्मी में शीतलता और सर्दी में उष्णता प्रदान करता है। इससे हमेशा प्राण वायु यानि ऑक्सीजन का संचार होता है। इनसे कई गंभीर रोगों का भी इलाज संभव है।