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अब आर्मेनिया ने किया पलटवार, अजरबैजान के दूसरे सबसे बड़े शहर पर दागीं कई मिसाइलें


अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख पर कब्जे को लेकर शुरू हुई जंग आठवें दिन भी जारी है। इस लड़ाई के दौरान अबतक दोनों पक्षों के 200 से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है। शुरुआत में इस लड़ाई में अजरबैजानी सेना का पड़ला भारी था लेकिन अब बाजी पलटती दिखाई दे रही है। रविवार को अजरबैजान ने दावा किया कि आर्मेनियाई सेना ने उसके दूसरे सबसे बड़े शहर गांजा पर जमकर गोलीबारी की है।
अजरबैजान के राष्ट्रपति ने ट्वीट किया वीडियो
अजरबैजान के राष्ट्रपति हिकमत हाजीयेव ने खुद क्षतिग्रस्त इमारतों को दर्शाते हुए एक वीडियो ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि यह आर्मेनिया के घने आवासीय क्षेत्रों में दागे गए मिसाइलों के कारण हुआ है। उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि अजरबैजान के गांजा और अन्य क्षेत्रों पर हमले आर्मेनिया की जमीन से किए गए हैं। हालांकि इस वीडियो के सत्यता की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो पाई है।

आर्मेनिया ने खारिज किया अजरबैजान का दावा
आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने इसका खंडन करते हुए कहा कि अजरबैजान के शहर पर हमारी जमीन से किसी भी प्रकार की गोलीबारी नहीं की गई है। लेकिन, नागोर्नो-करबाख के नेता आर्येक हरुटुटियन ने फेसबुक पर पुष्टि करते हुए कहा कि उन्होंने गांजा में अजरबैजानी सेना को निशाना बनाने के लिए रॉकेट हमला करने का आदेश दिया था। आर्येक हरुटुटियन को आर्मेनिया का पूरा समर्थन हासिल है।
हमले में एक की मौत का दावा
अजरबैजान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि गांजा शहर पर हुए हमले में एक नागरिक की मौत हुई है जबकि चार अन्य घायल हैं। वहीं, हरुटुटियन ने कहा कि उन्होंने अपने लड़ाकों को आदेश दिया है कि वे नागरिकों को नुकसान से बचाने के लिए गांजा शहर पर हमले करना बंद कर दें। उन्होंने कहा कि अगर अजरबैजान इससे सबक नहीं सीखता है तो वह फिर से अपनी सेना को हमला जारी रखने के लिए कहेंगे।
इस शहर को आर्मेनिया ने बनाया निशाना
330,000 से अधिक की आबादी वाला गांजा शहर नागोर्नो-काराबाख की राजधानी स्टेपानाकर्ट के उत्तर में लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पिछले रविवार को लड़ाई के शुरुआत में ही आर्मेनिया ने आरोप लगाया था कि अजरबैजान की सेना ने स्टेपानाकर्ट पर हमले करने और वहां की नागरिक आबादी को निशाना बनाया है। इसी के बाद नागोर्नो-करबाख के नेता आर्येक हरुटुटियन ने ऐलान किया था कि उनकी सेना भी अजरबैजान के शहरों को निशाना बनाएगी।
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी जंग में तुर्की और पाकिस्तान भी शाामिल हैं। ये दोनों देश अपने यहां से आतंकियों को अरजबैजान की तरफ से लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। वहीं, इजरायल अजरबैजान को हथियारों की सप्लाई कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अजरबैजान के कुल हथियार खरीद का 60 फीसदी हिस्सा इजरायल से आता है। ऐसे में इजरायली हथियारों की बदौलत वह आर्मेनिया की सेना पर भारी पड़ रहा है। उधर, रूस अपने करीबी आर्मेनिया का खुलकर समर्थन करने से कतरा रहा है। ऐसे में एक पक्ष के मजबूत होने से अजरबैजान का पड़ला भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।
इजरायली Harop Kamikaze Drones को कई नाम से जाना जाता है। इसे हीरो-120 या किलर ड्रोन भी कहा जाता है। इसे इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्री के एमबीटी डिविजन ने विकसित किया है। इस ड्रोन का उपयोग अजरबैजान की सेना 2016 की झड़प के दौरान भी कर चुकी है। इस ड्रोन में अलग से कोई मिसाइल नहीं होती है, बल्कि यह ड्रोन खुद में एक मिसाइल है। इसमे लगा हुआ एंटी-रडार होमिंग सिस्टम दुश्मन के रडार को भी जाम कर सकता है। जिससे अगर कोई इस मार नहीं गिराता या अगर इसे अपना लक्ष्य नहीं मिलता है तो यह वापस अपने बेस पर आ जाएगा। लेकिन, अगर इसे अपना लक्ष्य दिख गया तो यह ड्रोन उससे टकराकर खुद को उड़ा लेगा।
इजरायली Harop ड्रोन एक बार में 6 घंटे की उड़ान भर सकता है। इसे बेस स्टेशन से 1000 किलोमीटर की दूरी तक ऑपरेट किया जा सकता है। इसका समुद्र या जमीन पर टोही गतिविधियों या दुश्मन के खिलाफ मिसाइल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह ड्रोन पहले से तय प्रोग्रामिंग के हिसाब से खुद उड़ान भर सकता है या फिर ऑपरेटर भी इसके निर्धारिक रास्ते को बदल सकता है। इसमें मौजूद इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर के जरिए बेस पर मौजूद ऑपरेटर अपने निशाने को चुन सकता है।

भारत की स्पेशल फोर्स पहले से ही इस ड्रोन का उपयोग करती है। जिसमें एनएसजी और दूसरी स्पेशल फोर्सेज शामिल हैं। हालांकि सेना के लिए इसकी खरीद को लेकर अभी भी बातचीत चल रही है। भारत ने इस ड्रोन को लेकर रिकवेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन भी जारी कर चुका है। चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत आने वाले दिनों में इस ड्रोन को इजरायल से खरीद सकता है। यह ड्रोन चीन के खिलाफ भी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बहुत कारगर होगा।

दोनों देश 4400 वर्ग किलोमीटर में फैले नागोर्नो-काराबाख नाम के हिस्से पर कब्जा करना चाहते हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाका अंतरराष्‍ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्‍सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्‍जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।

आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।

1991 में जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ तब अजरबैजान और आर्मेनिया भी स्वतंत्र हो गए। लेकिन, नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने इसी साल खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया में शामिल हो गए। इसी के बाद दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख को सौंपा था।

अजरबैजान के साथ तुर्की और इजरायल
उधर, अजरबैजान के साथ तुर्की और इजरायल खड़े हैं। तुर्की ने एक बयान जारी कहा है कि हम समझते हैं कि इस संकट का शांतिपूर्वक समाधान होगा लेकिन अ‍भी तक आर्मीनियाई पक्ष इसके लिए इच्‍छुक नजर नहीं आ रहा है। तुर्की ने कहा क‍ि हम आर्मेनिया या किसी और देश के आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ अजरबैजान की जनता के साथ आगे भी खड़े रहेंगे। माना जा रहा है कि तुर्की का इशारा रूस की ओर था। वहीं, इजरायल भी अजरबैजान को घातक हथियारों की सप्लाई कर रहा है।