
इजरायल की तबाही का ख्वाब देखने वाले इस्लामी चरमपंथी समूह हमास ने इस्माइल हनिया को फिर से अपना सर्वोच्च नेता चुना है। हमास में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई शूरा परिषद ने हानिया को चार साल का नया कार्यकाल दिया है। बताया जा रहा है कि इस्माइल हानिया को चुनौती देने के लिए संगठन के अंदर कोई भी दूसरा उम्मीदवार खड़ा नहीं हुआ और उन्हें निर्विरोध चुन लिया गया।
हमास संस्थापक के सहयोगी हैं इस्माइल हानिया : इस्माइल हानिया हमास के संस्थापक अहमद यासीन के पूर्व सहयोगी हैं। यासीन की 2004 में इजराइली हवाई हमले में हत्या कर दी गई थी। 2006 में संसदीय चुनाव जीतने के बाद इस्माइल हानिया को फिलिस्तीनी के प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया था। पर, 14 जून 2007 को फतह और हमास के बीच जारी संघर्ष के कारण राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने हानिया को पद से बर्खास्त कर दिया था।
बर्खास्त होने के बाद भी खुद को प्रधानमंत्री बताते रहे हानिया : हानिया ने उस समय महमूद अब्बास के आदेश को नहीं माना था। वह फिलिस्तीनी सरकार से अलग होकर हमास के गढ़ गाजा पट्टी लौट गए और खुद प्रधानमंत्री के तौर पर काम करना जारी रखा। 6 मई 2017 तक उन्होंने हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख बनने तक आप को फिलिस्तीन का प्रधानमंत्री ही बताया। फतह फिलिस्तीन की सबसे पुरानी पार्टी है और राष्ट्रपति महमूद अब्बास उसी पार्टी के नेता हैं।
शरणार्थी शिविर में हुआ था जन्म : इस्माइल हनिया का जन्म मिस्र के कब्जे वाले गाजा पट्टी में अल-शती शरणार्थी शिविर में हुआ था। उनके माता-पिता 1948 में अरब-इजरायल युद्ध के दौरान अशकोन में स्थित अपने घर से भागकर शरणार्थी बन गए थे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के संचालित स्कूलों से पढ़ाई की और 1989 में अरबी साहित्य में डिग्री के साथ इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ गाजा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान ही हमास से जुड़ गए थे। 1985 से 1986 तक, वह मुस्लिम ब्रदरहुड का प्रतिनिधित्व करने वाली छात्र परिषद के प्रमुख थे।
पढ़ाई के दौरान ही हमास से जुड़े : पढ़ाई के दौरान ही गाजा पट्टी में इजरायल के कब्जे के खिलाफ पहला इंतिफादा शुरू हुआ था। हानिया ने इस दौरान हमास की तरफ से इन विरोध प्रदर्शनों में जमकर हिस्सा लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि वह इजरायली सेना के रडार पर आ गए। 1988 में उन्हें इजरायली सुरक्षा एजेंसी ने पकड़ लिया और छह महीने के लिए जेल भेज दिया। रिहा होने के बाद 1989 में उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई गई।
इजरायली जेल में काट चुके हैं तीन साल की सजा : 1992 में उनकी रिहाई के बाद, इजरायल के कब्जे वाले अधिकारियों ने उन्हें हमास के वरिष्ठ नेताओं अब्देल-अजीज अल-रंतिसी, महमूद जहर, अजीज दुवैक और 400 अन्य कार्यकर्ताओं के साथ लेबनान भेज दिया। इन लोगों को दक्षिणी लेबनान के मरज अल-जहोर में एक साल से अधिक समय तक रखा गया। यहीं से इन सभी नेताओं को वैश्विक मीडिया में एक्सपोजर मिला और दुनियाभर में इन्हें जाना जाने लगा।
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