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भक्तों को कर्जे से मुक्त करने वाले बजरंगबली भी थे ऋणी जानें, कैसे पाई उन्होंने मुक्ति


कर्ज़े कई प्रकार के होते हैं इससे आदमी तो क्या स्वयं भागवान भी प्रभावित होते हैं व उन्हें भी कर्ज़ों को चुकाना ही पड़ता है । इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बता रहे हैं “अद्भुत रामायण” के इस प्रसंग के बारे में जहां रुद्रावतार हनुमानजी को भी चुकाना पड़ा था कर्ज़ा।
कथा अनुसार संजीवनी बूटी लाने के समय भगवान शंकर के उपदेश सुनने के बाद हनुमानजी जब थोड़ा सुभ्यस्त हुए तो उन्हें मधुर स्वर सुनाई दिया, “हे मारुती! अब अवसर आ गया है, जब तुम्हें अपने कर्ज़ों से मुक्ति पानी चाहिए ।”
हनुमान ने नेत्र उठाए तो देखा कि माता अंजनी सामने थीं। माता ने स्नेह से उनके माथे पर तीन बार हाथ फिराया जिससे हनुमान जी के तीन बाल माता के हाथ में आ गए तथा माता ने यत्नपूर्वक उनके बाल संभाले। संजीवनी पवर्त पर रंग-बिरंगे सुगंधित व दिव्य पुष्पों की वर्षा हुई तब हनुमान जी ने अंजलि भर फूल माता के चरणों में तीन बार अर्पित किए।
माता अंजनी बोलीं, “बस पुत्र! मुझे और नहीं चाहिए। तुम मातृ ऋण से मुक्त हुए। इन तीनों पुष्पांजलियों के फूलों को, जिनमें से प्रत्येक में तुम्हारा एक-एक बाल भी रहेगा, मैं तीन अलग-अलग स्थानों श्री सालासर बाला जी, श्री महंदीपुर बालाजी व वड़ाला बाला जी पर स्थापित करूंगी ।
इन तीनों ही स्थानों पर तुम्हें अनंत काल तक विद्यमान रहकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करनी होंगी । अब एक आदेश है वत्स!”
हनुमानजी ने नतमस्तक होकर कहा, “आज्ञा माते! आपके आदेश की पालना होगी।”
“माता बोलीं, “वत्स! अब इन फूलों से अपने पिता के उनचास स्वरूपों, ग्रहों, सभी देवी देवताओं, यक्ष-गंधर्व-किन्नरों, सभी शक्तियों, सभी ऋषि-मुनियों, दसों महाविद्याओं और शास्त्रों, सभी इंद्रियों व सभी आत्मस्वरूपों को पुष्पांजलि अर्पित करों । इस सत्कर्म से तुम्हें सभी के कर्ज़ा से मुक्ति मिल जाएगी ओर तुम सर्व शक्ति संपन्न, बन जाओगे।
हनुमानजी ने पुनः माता को प्रणाम किया व स्नेहमई माता अंजना अंतर्ध्यान हो गईं। फिर हनुमान जी ने आदेशानुसार पिता के उनचास रूपों अर्थात मरुतों को फूल अर्पित किए जिन्हें उन्होंने सहर्ष अपने अपने उत्तरीय पट में ग्रहण कर लिया। पुनः उसी श्रद्धाभाव से तीनों लोकों के सभी प्राणियों, प्रकृति तत्वों तथा सभी महाविद्याओं और शास्त्रों को पुष्पांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि क्रिया समाप्त होते ही दिव्य वाद्य-ध्वनि के साथ संजीवनी पर्वत के एक भाग में राम, सीता, लक्ष्मण प्रकट हुए ।
हनुमानजी ने श्री राम से पूछा, “प्रभु! अब मेरे लिए क्या आदेश है?”
मारुती के प्रश्न का कोई उत्तर श्रीराम ने नहीं दिया । किंतु उन चारों के स्थान पर एक अद्भुत विग्रह प्रकट हुआ । हनुमान जी ने देखा कि अपने चतुर्भुज रूप में स्वयं भगवान नारायण सामने खड़े हैं ।
श्री भगवान बोले “हे हनुमान! मैं ही राम हूं। हनुमान जी ने श्रीहरी के चरणों में दिव्य पुष्पों की अंजलि अर्पित की । श्रीहरी ने हनुमानजी को शास्त्रीय सिद्धांतों से अवगत करते हुए कहा, ‘‘हे हनुमान ! यह संपूर्ण विश्व प्रकृति-पुरुषात्मक है । शब्द, रूप, रस, गंध व गुण सृष्टि के पांच तत्वों में समा जाते हैं । हम सभी पर जन्म से कई ऋण होते हैं जिन्हें हमें चुकाना ही पड़ता है। जीव अपने जीवन काल में कई ऋण अपने स्वयं पर ले लेता है, जैसे की पितृ ऋण, मातृ ऋण, देव ऋण, गुरु ऋण, संतान ऋण, पृथ्वी ऋण, राज्य ऋण, प्रकृति ऋण इत्यादि। हे हनुमान! तुमने जिन देवगणों को पुष्पांजलि दी है, वे सब तुम्हें आशीर्वाद दे रहे हैं। इन्हें विदा करो। तुम्हारा सैदेव मंगल होगा।’’
यह कहकर हरी अंतर्धान हो गए। तब हनुमान जी ने हाथ जोड़कर सबको विदा किया। सूर्यदेव ने हनुमान जी से अत्यंत प्रभावित होकर आशीर्वाद देकर कहा, ‘‘हे हनुमान! जिस प्राणी पर तुम्हारी कृपा दृष्टि होगी, कोई भी ग्रह उसके प्रतिकूल नहीं होगा।’’
तब हनुमान जी ने पवन मार्ग से लंका हेतु प्रस्थान किया।