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चीन-पाकिस्तान ने CPEC पर चली चाल, भारत का कड़ा जवाब


पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर बन रहे चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के काम में चीन और पाकिस्तान की ओर से किसी तीसरे देश को शामिल करने की कोशिशों पर भारत ने सख्त ऐतराज जताया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सीपीईसी के तहत ऐसी गतिविधि अवैध और अस्वीकार्य है। भारत ने ऐसी किसी भी गतिविधि का विरोध करते हुए कहा कि यह उसकी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन होगा। नई दिल्ली ने कहा कि भारत इसका वाजिब ढंग से जवाब देगा। गौरतलब है कि पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने तुर्की को इस प्रोजेक्ट में शामिल होने का न्योता दिया था। माना जा रहा है कि गर्दन तक कर्ज में डूबे पाकिस्तान बुरी स्थिति में फंस चुका है।
क्यों अहम है : चीन पाक आर्थिक गलियारे में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत तक सड़कों, रेलवे आदि का आधारभूत ढांचा तैयार किया जाना है। इस कॉरिडोर में जम्मू-कश्मीर का वह हिस्सा भी पड़ रहा है जो पाकिस्तान के कब्जे में है। ऐसे में इस प्रॉजेक्ट में किसी भी तीसरे देश की एंट्री भारत की चिंता बढ़ा सकती है।
कितना बड़ा है सीपीईसी : चीन पाक आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) चीन की ‘बेल्ट ऐंड रोड’ पहल का हिस्सा है। यह अरबों डॉलर की योजना है, जिसे 2013 में शुरू किया गया था। इसमें रेल, रोड और बिजली परियोजनाओं पर काम हो रहा है। 30 से ज्यादा चाइनीज कंपनियां इस पर काम कर रही हैं।
चीन की ओर से सीपीईसी पर भारी निवेश किया गया है। हालांकि कर्ज अदायगी में पाकिस्तान की धीमी चाल से चीन परेशान है। ग्वादर में सिर्फ तीन प्रॉजेक्ट पूरे हुए हैं और दो अरब डॉलर की लागत के करीब एक दर्जन प्रॉजेक्ट्स अधूरे पड़े हैं। करीब दो दर्जन चीनी कंपनियों ने बीते मई माह में पाकिस्तान सरकार को धमकी तक दी थी कि वे बिजली बनाने का काम बंद कर देंगे, अगर 300 अरब पाकिस्तानी रुपये का तुरंत भुगतान न किया गया। इसके बाद पाकिस्तान सरकार के मंत्री तक को आगे आकर कहना पड़ा था कि पैसे का भुगतान किया जाएगा। इस पर चीनी नागरिकों पर पाकिस्तान में हमले होने से भी सीपीईसी को झटका लगा है।
भारत की चिंताएं : भारत सीपीईसी की हमेशा से आलोचना करता रहा है क्योंकि इसके तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन निर्माण कार्य करवा रहा है। वहीं बीते शुक्रवार को जब सीपीईसी जॉइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में पाक और चीन ने सीपीईसी से जुड़ने के लिए बाकी देशों का भी आह्वान किया तो भारत की चिंता और बढ़ गई।
भारत की दो टूक : भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने मंगलवार को कहा कि तथाकथित सीपीईसी प्रॉजेक्ट्स में तीसरे देश की भागीदारी के आह्वान की खबरें हमने देखी हैं। ऐसा कोई भी कदम सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता में दखल होगा। भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले अपने इलाके में किसी भी सीपीईसी प्रॉजेक्ट का सख्त विरोध करता है।
भारत ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में ऐसी कोई भी गतिविधि गैरकानूनी होगी। गौरतलब है कि पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने मई में त्रिपक्षीय CPEC समझौता करने की मंशा जताई थी। पाकिस्तान का तुर्की के साथ गहरे संबंध हैं।
कर्ज में डूबे पाकिस्तान ने चली चाल : मई में कराची शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग वर्क्स को संबोधित करते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि CPEC के जरिए वित्तीय और औद्योगिक गतिविधियों के विकसित होने से व्यापार में कई गुना बढ़ोत्तरी की संभावना है। उन्होंने कहा था कि मैं इस अवसर का उपयोग सीपीईसी को चीन, पाकिस्तान और तुर्की के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता में तब्दील करने का प्रस्ताव करने के लिए करना चाहूंगा।
गर्दन तक कर्ज में डूब चुका है पाकिस्तान : सीपीईसी प्रोजेक्ट के कारण पाकिस्तान गर्दन तक कर्ज में डूब चुका है। पाकिस्तान ने दिसंबर, 2019 तक चीन से करीब 21.7 अरब डॉलर कर्ज ले चुका था। इनमें से 15 अरब डॉलर का कर्ज चीन की सरकार ने और बाकी का 6.7 अरब डॉलर वहां के वित्तीय संस्थानों से लिया गया है। अब पाकिस्तान के सामने इस कर्ज को वापस लौटाना बड़ी समस्या बन गया है। पाक के पास महज 10 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार ही है और वह इतनी बड़ी धनराशि चीन को वापस नहीं कर सकता।

सीपीईसी बना चीन के गले की फांस : चीन पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर अब ड्रैगन के गले की फांस बन गया है। अरबों का पैसा लगाने के बाद भी चीन को वह फायदा नहीं मिल रहा है जिसके लिए उसने 60 अरब डॉलर का निवेश किया था। पाकिस्तान में इसे लेकर राजनीति भी चरम पर है। वहीं भ्रष्टाचार में डूबे पाकिस्तानी नेता सड़क निर्माण कार्य में कोताही भी बरत रहे हैं। सीपीईसी में 60 अरब डॉलर का निवेश करने के बाद चीन को पूरी योजना पर पानी फिरता दिख रहा है। गिलगित बाल्टिस्तान और पीओके के स्थानीय लोग भी इस प्रोजक्ट के खिलाफ हैं। पाकिस्तान की राजनीति भी चीन के लिए समस्या बनी हुई है। कबायली इलाकों में काम कर रहे चीनी नागरिकों पर हमले भी बढ़े हैं।