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टीका लगाने वालों पर ज्यादा अटैक करता है कोरोना का द. अफ्रीकी वेरियंट, इजरायल की स्टडी से हड़कंप

इजरायल के वैज्ञानिकों की स्टडी में दावा किया गया है कि जिन्होंने वैक्सीन की डोज ले ली है, उन्हें कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी वेरियंट से संक्रमण का खतरा उन लोगों के मुकाबले आठ गुना हो सकता है जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है। इस दावे ने दुनियाभर में हड़कंप मचा दिया है। हालांकि, भारत के प्रमुख विषाणु विशेषज्ञों (Viroloists) में शुमार डॉ. गगनदीप कांग का कहना है कि स्थिति इतनी भयावह नहीं है जितना कि स्टडी में दावा किया गया है।
क्या कहती है इजरायली स्टडी?: उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि इजरायली स्टडी में उन्हीं लोगों को शामिल किया गया था जिन्होंने टीके लगवा लिए थे। फिर उनकी तुलना वैसे संक्रमित लोगों से की जिन्होंने टीके नहीं लगवाए थे। ज्यादातर लोग कोरोना वायरस के यूके वेरियंट B.1.1.7 से संक्रमित थे। स्टडी में पता चला कि जिन लोगों ने कोरोना वैक्सीन की एक ही डोज ली थी या फिर उन्हें दूसरी डोज लिए एक हफ्ता से भी कम हुआ था, वो इस वेरियंट की चपेट में कम ही आए थे।
लेकिन दक्षिण अफ्रीकी वेरियेंट B1.351 ने ऐसे आठ लोगों को संक्रमित किया तो यह ऐसा सिर्फ एक व्यक्ति ही इसे वेरियेंट से संक्रमित मिला जिसने वैक्सीन नहीं ली थी। यानी, साउथ अफ्रीकी वेरियेंट से संक्रमित होने वाले टीका ले चुके और नहीं लेने वाले लोगों का अनुपात 8:1 है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वैक्सीन का साउथ अफ्रीकी वेरियेंट B1.351 पर असर नहीं पड़ रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि 14 दिन पहले वैक्सीन की दूसरी डोज लेने वाले किसी भी व्यक्ति में इस वेरियेंट का संक्रमण नहीं पाया गया।
सिर्फ फाइजर वैक्सीन के असर पर ही हुई स्टडी : इसका मतलब है कि वैक्सीन की पहली डोज लेने के दो हफ्ते बाद से दूसरी डोज लेने के एक हफ्ते के अंदर की श्रेणी में आने वाले लोगों पर ही दक्षिणी अफ्रीकी वेरियेंट हावी होता है, वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के बाद 14 दिनों की अवधि खत्म हो जाने पर यह वेरियंट लोगों को संक्रमित नहीं कर पाता है। डॉ. कांग कहती हैं कि इजरायली वैज्ञानिकों के दावे का परीक्षण करने की जरूरत है। ध्यान रहे कि इजरायल में यह स्टडी सिर्फ फाइजर वैक्सीन (Pfizer Vaccine) पर ही की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दूसरी वैक्सीन के लिए भी यही दावा सही है?
क्या भारत को चिंता करने की जरूरत है? : इस सवाल पर डॉ. कांग कहती हैं कि स्पाइक प्रोटीन पर आधारित सभी वैक्सीन के साथ इस तरह की समस्या हो सकती है। हमें दुनियाभर की वैक्सीन के असर को लेकर स्टडी करनी होगी। चूंकि भारत में फाइजर वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है और न ही यहां साउथ अफ्रीकन वेरियेंट के ज्यादा केस हैं तो क्या इजरायल की स्टडी से हमें चिंतित नहीं होना चाहिए?
इसके जवाब में वो कहती हैं कि मूल सवाल कोरोना वायरस के अलग-अलग वेरियेंट्स और उन पर अलग-अलग वैक्सीन के असर की है। इजरायल में फाइजर वैक्सीन के असर की स्टडी हुई है। अगर दूसरे टीकों के असर के अध्ययन किए जाएं तो हमें इस बात का अंदाजा हो सकता है कि आखिर कौन सी वैक्सीन, किस वेरियेंट के लिए ज्यादा कारगह है। उन्होंने कहा कि इजरायल की स्टडी के रिजल्ट से चिंतित होने की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें तैयारी जरूरी करनी होगी।