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Mushrooms on Mars: ‘स्पेस टाइगर किंग’ का दावा, मंगल ग्रह पर उग रहे हैं मशरूम!


मंगल पर जीवन है या नहीं, अभी इसकी खोज की जा रही है लेकिन ‘स्पेस टाइगर किंग’ कहे जाने वाले वैज्ञानिक ने दावा किया है कि लाल ग्रह पर ‘पफबॉल’ जैसी चट्टानें दरअसल मशरूम हैं। चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज के माइक्रोबायॉलजिस्ट डॉ. शिनली वेई, हार्वर्ड-स्मिथसोनियन के ऐस्ट्रोफिजिसिस्ट डॉ. रुडॉल्फ शिल्ड और ‘स्पेस टाइगर किंग’ डॉ. रॉन गैब्रियाल जोसेफ का दावा है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के Curiosity रोवर और HiRISE क्राफ्ट से मिले डेटा में यह पता चला है। इस स्टडी पर वैज्ञानिक समुदाय ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
मंगल पर उग रहे हैं मशरूम? : इस स्टडी में दावा किया गया है कि NASA जिन्हें चट्टान बता रही है, वे दरअसल फंगस जैसे जीव हैं जो मंगल पर उग रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि ये मशरूम सिकुड़ रहे हैं, कभी दिखते हैं, कभी गायब हो जाते हैं। इन वैज्ञानिकों ने कई साल तक NASA से ली गईं मंगल की तस्वीरों को देखा और कई खोज दुनिया के सामने लेकर आए हैं। इससे पहले अप्रैल 2020 में भी एक स्टडी में मंगल पर मशरूम उगने की बात कही गई थी।
ब्रिटेन और आयरलैंड के वैज्ञानिकों ने ओपन यूनिवर्सिटी मास सिम्यूलेशन चैंबर की मदद से मंगल जैसे हालात बनाए और फिर देखा कि क्या इस प्रक्रिया से ऐसी आकृति बन सकती है। इसके लिए कार्बनडायऑक्साइड की बर्फ के टुकड़ों में छेद किए गए और फिर अलग-अलग आकार के दानों पर उन्हें घुमाया गया। इसके बाद चैंबर में दबाव को मंगल की तरह कम किया गया और ब्लॉक्स को सतह पर रखा गया। इसके बाद कार्बनडायऑक्साइड के टुकड़े सब्लिमेट हो गए और जब इन्हें हटाया गया तो पाया गया कि वैसी ही मकड़ी जैसी आकृति गैस के कारण बन गई थी।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे मंगल पर दिखने वाली आकृति को समझा जा सकता है। इस हाइपोथीसिस को काइफर्स हाइपोथीसिस कहा गया है। बसंत के मौसम में सूरज की रोशनी बर्फ से होकर नीचे की सतह को गर्म करती है जिससे बर्फ सब्लिमेट होती है। इससे नीचे दबाव बनता है जो दरारों के रास्ते निकलता है। गैस के निकलने के साथ पीछे मकड़ी सी आकृति रह जाती है। अभी तक इस थिअरी को दशकों से माना जाता रहा है लेकिन इसका फिजिकल सबूत नहीं पाया गया था।
कुछ दिन पहले ही अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के Curiosity रोवर से ली गईं आठ नई तस्वीरों में नैविगेशन कैमरे की नजर से पांच मिनट के नजारे देखे गए। ये धरती के बादलों की तरह ही चलते हुए दिख रहे हैं। इन्हें उत्तर कैरोलीना स्टेट यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट पॉल ब्राइर्न ने शेयर किया है। ये बादल भले ही धरती जैसे बादलों की तरह दिख रहे हों, मंगल का वायुमंडल बहुत पतला है और इसलिए, ये अलग तरह से बने होंगे। मंगल का सिर्फ यही मौसम धरती जैसा नहीं है लेकिन खास है। 2008 में फीनिक्स लैंडर ने सतह पर बर्फ गिरती थी। यह बर्फ दिखने में धरती जैसी है लेकिन यह असल में कार्बनडायऑक्साइड से बनी है जैसे, ड्राई आइस।
40 तस्वीरों का लिया सहारा : ताजा स्टडी में टीम ने दावा किया है कि उन्हें लाल ग्रह पर जीवन के सबूत मिले हैं। अपने दावे को साबित करने के लिए उन्होंने 40 तस्वीरों का सहारा लिया है। रिसर्चर्स ने araneiforms नाम की काली आकृतियों का सहारा लिया है और उन्हें काला फंगस, काई जैसा जीव बताया है। उनका कहना है कि 980 फीट की ऊंचाई तक ये बढ़ जाएंगे जब 42F तक तापमान पहुंच जाएगा और सर्दियों में तापमान -9F तक गिर जाएगा।
रोवर फिलहाल गेल क्रेटर (Gale Crater) के अंदर Aeolis Mons नाम के एक पहाड़ पर है। यहां मिले डेटा के आधार पर वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि कई सौ फीट तक धूल से बनी लाल ग्रह की चट्टान के तले में बनावट तेजी से बदलती है। Mount Sharp के निचले हिस्से में गीली मिट्टी (Clay) है और ऊपर रेत का टीला जो आंधी के साथ जगह बदलता रहता है। रिसर्चर्स ने संभावना जताई है कि सूखे काल के दौरान इन टीलों ने आकार लिया होगा। वहीं, इनके तले नदियों के किनारे-से लगते हैं।
इससे संकेत मिलते हैं कि यहां कभी गीला मौसम रहा होगा और हो सकता है गेल क्रेटर के अंदर पानी भरा हो। अपने मिशन के दौरान Curiosity को Mount Sharp से डेटा लेना है। यहां मिले बदलावों से पता चल सकेगा कि यहां मौसम कैसे विकसित हुआ। इसके पीछे के कारणों का पता लगाया जाएगा। कुछ दिन पहले Curiosity ने मंगल के बादलों का वीडियो भेजा था। ये नजारे उसके ऊपर लगे कैमरों में कैद हुए थे। आठ नई तस्वीरों में नैविगेशन कैमरे की नजर से पांच मिनट के नजारे देखे गए। ये धरती के बादलों की तरह ही चलते हुए दिखे।
NASA का Perseverance रोवर जहां उतरा है वहां भी इसी कारण जीवन के संकेत मिलने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों का मानना है कि Jezero कभी पानी से भरा हुआ करता था और यहां किसी प्राचीन नदी का डेल्टा था। 3.5 अरब साल पहले नदियों के पानी से ये झील बनी थी। वैज्ञानिकों ने ऐसे सबूत हासिल किए हैं जिनसे पता चलता है कि ये पानी आसपास के इलाके से मिनरल झील में लेकर आता था। हो सकता है कि इस दौरान वहां सूक्ष्मजीवी रहे हों। अगर ऐसा हुआ होगा तो झील के तल में या तट के सेडिमेंट में इसके निशान मिल सकेंगे।
बर्फ से नहीं बनी थीं आकृतियां : स्टडी के रिसर्चर्स का कहना है कि यह पैटर्न हर स्प्रिंग में में उभरता है। NASA ने इससे पहले कहा है कि यह आकृति कार्बन डायऑक्साइड की बर्फ के कारण बनी थी। हालांकि, इस स्टडी के रिसर्चर्स का कहना है कि जमी हुई कार्बन डायऑक्साइड काली नहीं, सेमी-ट्रांसपैरेंट वाइट होती है। उनका कहना है कि ये दरअसल फंगस और दूसरे जीवों से बने हैं। टीम का यह भी दावा है कि Curiosity के ऊपर भी मशरूम उग रहे हैं।