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अमेरिका, चीन को पीछे छोड़ रूस ने जीती कोरोना वैक्सीन की रेस, ‘स्पूतनिक’ को 63 साल बाद फिर सफलता


कोरोना वायरस से जंग के लिए दुनियाभर में जारी वैक्‍सीन बनाने की रेस में अमेरिका, चीन और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई दिग्‍गज देशों को पीछे छोड़ते हुए रूस ने बाजी मारने का दावा किया है। रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को ऐलान किया कि उनके देश ने कोरोना वायरस वैक्‍सीन ‘स्‍पूतनिक वी’ (Sputnik V) को बनाने में सफलता हासिल की है। पुतिन ने अपने दावे को और पुख्‍ता करने के लिए दुनिया को यह भी बताया कि उनकी बेटी को यह टीका लगाया है और वह बिल्‍कुल स्‍वस्‍थ है।
पुतिन के इस ऐलान के बाद पश्चिमी देशों के नेताओं और वैज्ञानिकों ने इस वैक्‍सीन के सुरक्षित होने पर कई सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि रूस ने वैक्सीन की रेस में आगे रहने के लिए जल्दबाजी की है। पश्चिमी देशों के एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह फिलहाल तय नहीं है कि यह वैक्सीन असरदार या सुरक्षित है। हालांकि, खुद पुतिन और रूस के मेडिकल एक्सपर्ट्स दावा कर रहे हैं कि वैक्सीन बनाने वालों ने कोई जल्दबाजी नहीं की है।
रूस ने बताया, कैसे बनी कोरोना के खात्‍मे की वैक्‍सीन
रूसी विशेषज्ञों ने कहा कि रूस ने वैक्‍सीन को बनाने में जो तरीका अपनाया है, वायरल वेक्टर का, वह संस्थान पहले ही बना चुका था और इबोला, MERS जैसे मामलों में वैक्सीन के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है। उनका कहना है कि यह अभी तक कोई और नहीं कर सका है। गामलेया इस तकनीक पर 1980 के दशक से काम कर रहा था। इसलिए उसे शुरुआत शून्य से नहीं करनी पड़ी और कोरोना वायरस के खिलाफ जल्दी वैक्सीन तैयार की जा सकी।
रूसी वैज्ञानिकों ने कहा कि Sputnik V वैक्‍सीन में दो हिस्से हैं- पहला adenovirus है जो ‘रॉकेट कैरियर’ की तरह दूसरे हिस्से, ‘ऑर्बिटल स्टेशन’ COVID-19 जीनोम को शरीर में ले जाता है। इस वजह से इसे Sputnik नाम दिया गया है। Sputnik दुनिया की पहली आर्टिफिशल सैटलाइट थी जिसका मतलब ‘सफर का साथी’ भी होता है। सारेंको ने बताया है कि शरीर में ‘कैरियर’ और ‘स्टेशन’ दोनों के खिलाफ प्रतिक्रिया विकसित होती है लेकिन यह कुछ वक्त के लिए ही होती है और तीन हफ्ते बाद दूसरे इंजेक्शन की जरूरत होती है। रूस के एक्सपर्ट्स का कहना है कि जैसे Sputnik सैटलाइट लॉन्च के वक्त दुनिया हैरान थी, वैसे ही इस बार भी है।
‘भरोसेमंद है ये वैक्सीन’
मॉस्को सिटी अस्पताल 52 के डॉक्टर सर्जेई सारेंको का कहना है कि इन एक्सपर्ट्स के शक जाहिर करने से मेडिकल कम्यूनिटी में ऐसे लोग सवाल कर रहे हैं जो कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे हैं और जिन्हें कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन तैयार होने की बड़ी उम्मीद है। उन्होंने कहा है कि डॉक्टर कोविड के मरीजों का इलाज करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन गंभीर मामलों में कुछ हद तक ही ऐसा किया जा सकता है। इसलिए वैक्सीन सबसे असरदार और भरोसेमंद तरीका है ताकि मौतें होने से बचाई जा सकें। उनका कहना है कि गामलेया रिसर्च इंस्टिट्यूट की तैयार की हुई वैक्सीन पर भरोसा किया जा सकता है।
‘दोहराया गया इतिहास’
Sputnik V में दो हिस्से हैं- पहला adenovirus है जो ‘रॉकेट कैरियर’ की तरह दूसरे हिस्से, ‘ऑर्बिटल स्टेशन’ COVID-19 जीनोम को शरीर में ले जाता है। इस वजह से इसे Sputnik नाम दिया गया है। Sputnik दुनिया की पहली आर्टिफिशल सैटलाइट थी जिसका मतलब ‘सफर का साथी’ भी होता है। सारेंको ने बताया है कि शरीर में ‘कैरियर’ और ‘स्टेशन’ दोनों के खिलाफ प्रतिक्रिया विकसित होती है लेकिन यह कुछ वक्त के लिए ही होती है और तीन हफ्ते बाद दूसरे इंजेक्शन की जरूरत होती है। रूस के एक्सपर्ट्स का कहना है कि जैसे Sputnik सैटलाइट लॉन्च के वक्त दुनिया हैरान थी, वैसे ही इस बार भी है।
इसलिए तेजी से बनी वैक्सीन
पश्चिमी देशों ने सबसे बड़ा सवाल यह उठाया है कि रूस ने इतनी जल्दी वैक्सीन कैसे विकसित कर ली है। इसके बारे में सारेंको बताते हैं कि जो तरीका रूस ने अपनाया है, वायरल वेक्टर का, वह संस्थान पहले ही बना चुका था और इबोला, MERS जैसे मामलों में वैक्सीन के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है। उनका कहना है कि यह अभी तक कोई और नहीं कर सका है। गामलेया इस तकनीक पर 1980 के दशक से काम कर रहा था। इसलिए उसे शुरुआत शून्य से नहीं करनी पड़ी और कोरोना वायरस के खिलाफ जल्दी वैक्सीन तैयार की जा सकी।
‘अंगूर खट्टे हैं’
सारेंको का दावा है कि Sputnik V वैक्सीन सुरक्षित भी है और असरदार भी। इसके साथ ही वह सवाल करते हैं कि आखिर क्यों इसका इतना विरोध हो रहा है। उन्होंने सवाल किया है कि वैक्सीन के खिलाफ बोलने वाले ‘स्वतंत्र एक्सपर्ट्स’ को स्पॉन्सर कौन कर रहा है। कहीं इसके पीछे वैक्सीन के दूसरे निर्माता या कंपनियां तो नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि इस तरह शक करने से ऐसे डॉक्टरों को दुख होता है जो मरीजों को ठीक करने में जुटे हैं। वहीं, ब्रसेल्स के राजनीतिक अनैलिस्ट गिलबर्ट डॉक्ट्रो का कहना है, ‘यह प्रतिक्रिया अंगूर खट्टे हैं जैसी है। उन्हें बुरा लग रहा है और शर्म आ रही है कि रूस ने खुद को अमेरिका और EU से बेहतर साबित किया है।’
‘पूरे नहीं किए गए ट्रायल’
पश्चिम ने आरोप लगाया है कि रूस वैक्सीन विकसित करने की रेस में आगे रहने के लिए साइंस और सुरक्षा को ताक पर रख रहा है। दरअसल, वैक्सीन के पहले क्लिनिकल ट्रायल का साइंटिफिक डेटा प्रकाशित नहीं किया गया है। WHO की लिस्ट के मुताबिक अभी भी गामलेया की वैक्सीन पहले चरण में है और तीसरे या आखिरी चरण की स्टडी बाकी है। इस चरण में हजारों लोगों पर वैक्सीन को टेस्ट किया जाता है जिससे सुनिश्चित किया जाता है कि वैक्सीन कितनी असरदार और सुरक्षित है।
‘रूस ने चुराई रिसर्च’
यही नहीं, पश्चिमी देशों का यह भी आरोप है कि रूस ने उनकी रिसर्च चोरी कर वैक्सीन बनाई है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने बकायदा बयान जारी कर इस बात का आरोप लगाया था कि रूस की खुफिया एजेंसियों से जुड़े हैकिंग ग्रुप APT29 (Cozy Bear) ने अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने दावा किया कि यह ग्रुप रूस की खुफिया एजेंसियों का हिस्सा है और क्रेमलिन के इशारे पर काम करता है।
Sputnik V से पुतिन ने पश्चिमी देशों को चिढ़ाया
कोरोना वैक्‍सीन की इस रेस में विजय हासिल करने के बाद रूस ने इस वैक्‍सीन का नाम ‘स्‍पूतनिक वी’ रखा है। माना जा रहा है कि वर्ष 1957 में सोवियत संघ के पहले सैटलाइट के नाम पर वैक्‍सीन का नाम ‘स्‍पूतनिक’ नाम दिया गया है। स्‍पूतनिक सैटलाइट के जरिए रूस ने अंतरिक्ष में अपनी बादशाहत साबित की थी। इसके बाद पूरी दुनिया में स्‍पेस रेस शुरू हो गई जो आजतक जारी है। रूस ने अपनी वैक्‍सीन के जरिए भी एक बार फिर से अपनी बादशाहत साबित करने का प्रयास किया है। विश्‍लेषकों के मुताबिक रूस के लिए कोरोना वैक्‍सीन की रेस में आगे निकलना न केवल उसका वैश्विक भूराजनीतिक प्रभाव बढ़ाएगा बल्कि उसकी पश्चिमी देशों पर निर्भरता को खत्‍म करेगा।
​पुतिन की एक बेटी को भी लगी वैक्सीन
पुतिन ने कहा कि इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान उनकी एक बेटी ने भी हिस्सा लिया। पहले चरण के वैक्सीनेशन के बाद उसके शरीर का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था, जबकि अगले दिन यह 37 डिग्री सेल्सियस हो गया था। वैक्सीन ने दूसरे चरण के बाद उसके शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ा लेकिन बाद मे सब ठीक हो गया। वह अब अच्छा महसूस कर रही है।
रहस्यों से भरी है पुतिन की निजी जिंदगी
रूसी राष्ट्रपति पुतिन की निजी जिंदगी रहस्यों से भरी हुई है। ऐसे में उनके परिवार के बारे में बहुत कम जानकारी ही दुनिया के लोगों को पता है। खुद रूसी सरकार ने भी पुतिन की जिंदगी से जुड़ी जानकारियों को छिपाने की खूब कोशिश की है। उन्होंने कभी भी सार्वजनिक रूप से अपने परिवार के सदस्यों को आने नहीं दिया है।
पहली पत्नी से पुतिन की हैं दो बेटियां
रूसी रिपोर्ट्स के अनुसार, पुतिन ने पहली शादी लगभग 35 साल पहले ल्यूडमिला शकरबेनेवा से की थी। वह रूसी एयरलाइन में फ्लाइट अटेंडेंट का काम करती थीं। पुतिन को अपनी पहली पत्नी से दो बेटियां मिलीं, जिनके नाम मारिया और कैटरीना है। कहा यह भी जाता है कि उनकी कथित गर्लफ्रेंड ने भी 2015 में एक बेटी को जन्म दिया था।
पहली बेटी का रूस तो दूसरी का जर्मनी में हुआ था जन्म
मारिया का जन्म लेलिनग्राद में सन 1985 में हुआ था, जबकि कैटरीना का जन्म 1986 में जर्मनी में हुआ था। कैटरीना के जन्म के समय पुतिन रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के लिए काम करते थे। तब उनकी पोस्टिंग जर्मनी में थी। बताया जाता है कि दोनों बेटियों का नामांकरण पुतिन की मां ने किया था।
माशा और कात्या के नाम से बेटियों को बुलाते हैं पुतिन
पुतिन अपनी बड़ी बेटी को माशा जबकि छोटी बेटी को कात्या के नाम से बुलाते हैं। पुतिन 1996 में जर्मनी से अपने परिवार को लेकर रूस आ गए। राष्ट्रपति बनने के बाद से उनकी बेटियों की पढाई लिखाई घर पर ही की गई। बताया जाता है कि रूसी राष्ट्रपति की बेटियों का मीडिया कवरेज भी रूस में बैन है।
इस समय क्या कर रही हैं पुतिन की बेटियां
डेली मेल के अनुसार, पुतिन की बड़ी बेटी मारिया की शादी नीदरलैंड के एक बिजनेसमैन से हुई है। वे मेडिकल और एजुकेशन के क्षेत्र में काम करती हैं। जबकि छोटी बेटी कैटरीना रूस में ही ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

रूस को 20 देशों से 1 अरब डोज का ऑर्डर भी म‍िल गया है। दरअसल, अमेर‍िका, यूरोप, चीन और पूरी दुनिया में जब वैक्‍सीन के ल‍िए जीतोड़ मेहनत कर रही है, ऐसे समय में रूस का वैक्‍सीन बनाने का ऐलान पुतिन के लिए वैश्विक प्रतिष्‍ठा की वजह बन गया। अमेरिका के अंतरराष्‍ट्रीय मामलों के व‍िशेषज्ञ जे स्‍टीफन मॉरिसन ने वॉशिंगटन पोस्‍ट से कहा, ‘यह बड़ी घटना है और इसकी शुरुआत पुतिन से हुई है। उन्‍हें जीत की जरूरत है। यह स्‍पूतनिक के समय की याद दिलाता है। यह रूसी विज्ञान के शानदार इतिहा‍स की याद दिलाता है। यह रूस के दुष्‍प्रचार तंत्र को पूरा मौका देता है। मैं समझता हूं कि यह रूस को नुकसान पहुंचा सकता है।’
अक्टूबर में खास लोगों का ही होगा वैक्सीनेशन
रूसी स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको ने कहा है कि रूस में इस साल अक्टूबर से बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस वैक्सीनेशन का कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन के दौरान चिकित्साकर्मियों और शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी। यानी शुरुआत में इसे आम जनता के लिए बहुत कम संख्या में रखा जाएगा। पहले भी ऐसी खबरें आईं थी कि रूस में कोरोना वैक्सीन की डोज को वहां के कुछ अमीर लोगों को दिया गया है।
आम नागरिकों को अगले साल मिलेगी वैक्सीन
रूस की समाचार एजेंसी स्पूतनिक ने इस वैक्सीन के पंजीकरण प्रमाण पत्र के अनुसार बताया है कि यह वैक्सीन 1 जनवरी 2021 से सिविलियन सर्कुलेशन में जाएगी। यानी इस दिन के बाद से ही रूस के आम नागरिकों को इस वैक्सीन का डोज मिल सकेगा। इस वैक्सीन को मॉस्‍को के गामलेया रिसर्च इंस्टिट्यूट ने रूसी रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर एडेनोवायरस को बेस बनाकर तैयार किया है।
रूस का दावा- 20 साल की मेहनत का नतीजा
सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में टॉप साइंटिस्ट वादिम तारासॉव ने दावा किया है कि देश 20 साल से इस क्षेत्र में अपनी क्षमता और काबिलियत को तेज करने के काम में लगा हुआ है। इस बात पर लंबे वक्त से रिसर्च की जा रही है कि वायरस कैसे फैलते हैं। इन्हीं दो दशकों की मेहनत का नतीजा है कि देश को शुरुआत शून्य से नहीं करनी पड़ी और उन्हें वैक्सीन बनाने में एक कदम आगे आकर काम शुरू करने का मौका मिला।
रूस की पहली सैटेलाइट से मिला वैक्सीन को नाम
इस वैक्सीन का नाम रूस की पहली सैटेलाइट स्पूतनिक से मिला है। जिसे रूस ने 1957 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने लॉन्च किया था। उस समय भी रूस और अमेरिका के बीच स्पेस रेस चरम पर थी। कोरोना वायरस वैक्सीन के विकास को लेकर अमेरिका और रूस के बीच प्रतिद्वंदिता चल रही थी। रूस के वेल्थ फंड के मुखिया किरिल दिमित्रीव ने वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया को ‘स्पेस रेस’ जैसा बताया था। उन्होंने US TV को बताया, ‘जब अमेरिका ने Sputnik (सोवियत यूनियन की बनाई दुनिया की पहली सैटलाइट) की आवाज सुनी तो वे हैरान रह गए, यही बात वैक्सीन के साथ है।
कैसे काम करती है वैक्सीन?
रूस की वैक्सीन सामान्य सर्दी जुखाम पैदा करने वाले adenovirus पर आधारित है। इस वैक्सीन को आर्टिफिशल तरीके से बनाया गया है। यह कोरोना वायरस SARS-CoV-2 में पाए जाने वाले स्ट्रक्चरल प्रोटीन की नकल करती है जिससे शरीर में ठीक वैसा इम्यून रिस्पॉन्स पैदा होता है जो कोरोना वायरस इन्फेक्शन से पैदा होता है। यानी कि एक तरीके से इंसान का शरीर ठीक उसी तरीके से प्रतिक्रिया देता है जैसी प्रतिक्रिया वह कोरोना वायरस इन्फेक्शन होने पर देता लेकिन इसमें उसे COVID-19 के जानलेवा नतीजे नहीं भुगतने पड़ते हैं। मॉस्को की सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में 18 जून से क्लिनिकल ट्रायल शुरू हुए थे। 38 लोगों पर की गई स्टडी में यह वैक्सीन सुरक्षित पाई गई है। सभी वॉलंटिअर्स में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी भी पाई गई।
इसलिए पश्चिमी देश जता रहे हैं शक
दूसरी ओर पश्चिमी देशों का आरोप है कि रूस ने उनकी रिसर्च चोरी कर वैक्सीन बनाई है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने बकायदा बयान जारी कर इस बात का आरोप लगाया था कि रूस की खुफिया एजेंसियों से जुड़े हैकिंग ग्रुप APT29 (Cozy Bear) ने अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने दावा किया कि यह ग्रुप रूस की खुफिया एजेंसियों का हिस्सा है और क्रेमलिन के इशारे पर काम करता है। इसके अलावा, रूस की वैक्सीन कितनी सफल और सुरक्षित है, इस सवाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि इससे पहले कि वैज्ञानिक फेज-3 के ट्रायल को पूरा करते, वैक्सीन को अप्रूव कर दिया गया है। वैक्सीन की पुख्ता जांच के लिए इसे हजारों लोगों पर टेस्ट किया जाना जरूरी होता है।
‘वैक्‍सीन को एक झटके में खारिज करना ठीक नहीं’
उधर, ब्रिटिश विशेषज्ञों का मानना है कि रूसी वैक्‍सीन को एक झटके में खारिज नहीं कर देना चाहिए। उनका कहना है कि रूस का शानदार वैज्ञानिक उपलब्धियों वाला इतिहास रहा है। रूस ने सबसे पहले इंसान को स्‍पेस में भेजा था और कई दशकों तक इंजिनियरिंग, गण‍ित और फिजिक्‍स के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्‍व किया है। रूस ने इबोला और यलो फीवर के लिए पहले ही टीका बनाया हुआ है। वे कहते हैं कि रूस में कोरोना वायरस बड़े पैमाने पर फैला हुआ है और अगले दो महीने में यह साबित हो जाएगा कि यह वैक्‍सीन कितना असरदार है।