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कुछ कहता है विजयदशमी का त्यौहार


जितने भी त्यौहार होते हैं वे सभी हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं। हम उनसे कुछ न कुछ पाजिटिव ले सकते हैं। ये त्यौहार तो बने ही हैं एक-दूसरे के साथ मिलने-जुलने और भाईचारा बढ़ाने के लिए। सब त्यौहार हमें मेहनत करना सिखाते हैं और कहते हैं न कि मेहनत का फल मीठा होता है पर इस मीठे स्वाद को प्राप्त करने के लिए तुम्हें सब त्यौहारों को मनाते हुए उनकी अच्छी बातों को अपने अंदर लाने की जरूरत है। ऐसा करके तुम बहुत अच्छा महसूस करोगे।
विजयदशमी की सीख : इसी प्रकार विजयदशमी या दशहरा केवल एक पर्व मात्र नहीं है, यह प्रतीक है कई सारी बातों का- सच, साहस, अच्छाई, बुराई, नि:स्वार्थ सहायता, मित्रता, वीरता और सबसे बढ़कर अहंकार जैसे अलग-अलग भले-बुरे तत्वों का। जहां अच्छे प्रतीकों की बुरे प्रतीकों पर विजय हुई। अच्छाई की बुराई पर जीत का वाक्य हर वक्त लागू होता है और प्रतिभाशाली होते हुए भी अहंकार के कारण बुराई के रास्ते पर जा निकले रावण का प्रतीकात्मक नाश आज भी किया जाता है। इस मूल वाक्य के अलावा इस पर्व को सामाजिक रूप से मेल-जोल का तथा विजय की खुशी मनाने का प्रतीक भी बना लिया गया।
रामायण से यह सीख भी मिलती है कि जीवन में एकता और प्रबंधन कितना जरूरी है। रामायण से यह पता चलता है कि भगवान राम ने सबके साथ मिलकर लंका पर जीत हासिल की थी। यहां तक कि पुल बनाने में एक छोटी गिलहरी ने भी सहयोग किया था। रामकथा गलत आदतों से दूर रहने की प्रेरणा भी देती है और राम तथा उनके भाइयों के बीच प्यार जैसे अच्छे गुणों के बारे कर उनसे हम प्रेरणा ले सकते हैं।
राम-सुग्रीव की दोस्ती के जरिए आपको मित्रता का महत्व समझना चाहिए। भगवान राम ने सुग्रीव से मित्रता करके रावण जैसे आततायी पर विजय पाई थी जबकि बुराई के कारण रावण को उसके ही भाई ने छोड़ दिया था। इससे यह सीख मिलती है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो वह अच्छाई से हारती ही है। घमंड और आक्रामकता से बचने की प्रेरणा मिलती है। श्री राम के जीवन से दूसरों को खुशी देने की प्रेरणा मिलती है।