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धृतराष्‍ट्र के वे 8 पाप ज‍िनके कारण हुई उनकी जलकर मृत्‍यु, भूलकर भी ऐसा करने से बचें


धृतराष्‍ट्र के 8 पाप ज‍िनके कारण हुई उनकी जलकर मृत्‍यु : महाभारत युद्ध के सबसे बड़े खलनायक धृतराष्‍ट्र ज‍िन्‍होंने पुत्र मोह में पड़कर अपने ही समूचे वंश का नाश कर द‍िया। लेक‍िन क्‍या आप जानते हैं क‍ि धृतराष्‍ट्र का जन्‍म से अंधा होना या उनकी जलकर मृत्‍यु होना स्‍वाभाव‍िक नहीं था बल्कि ये उनके पाप कर्मों का फल था। उन्‍होंने ऐसे 8 पाप क‍िये थे ज‍िनकी वजह से ही उन्‍हें यह सबकुछ झेलना पड़ा। तो आइए जानते हैं क‍ि वे कौन से पापकर्म थे ज‍िसके कारण समूचे कौरव वंश का नाश हो गया और धृतराष्‍ट्र स्‍वयं जलकर मृत्‍यु को प्राप्‍त हुए।
पहला और दूसरा पाप : गांधारी के साथ धोखा धृतराष्‍ट्र का पहला पाप कर्म था क्‍योंक‍ि गांधारी को व‍िवाह के समय यह नहीं बताया गया क‍ि धृतराष्‍ट्र जन्‍मांध हैं। भीष्‍म प‍ितामह ने धृतराष्‍ट्र का व‍िवाह गांधारी के साथ कर द‍िया और धृतराष्‍ट्र के जन्‍मांध होने का पता चलते ही पत्‍नी धर्म का पालन करते हुए गांधारी ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। धृतराष्‍ट्र का दूसरा पाप गांधारी के पर‍िवार को बंदी बनाकर मृत्‍यु समान कष्‍ट देना था। धृतराष्‍ट्र को जब यह पता चला क‍ि गांधारी तो व‍िधवा थीं और उनके साथ तो यह छल हो गया। जबकि विद्वानों के अनुसार गांधारी के पहले व‍िवाह से उन्‍हें गंभीर प्रकोप का सामना करने का योग था। ज‍िसे दूर करने के ल‍िए उनका व‍िवाह एक बकरे से कराया गया। इसके बाद धृतराष्‍ट्र से उनका व‍िवाह हुआ। ताकि वह क‍िसी भी तरह के प्रकोप से बच सकें। लेक‍िन धृतराष्‍ट्र ने इसका दोष गांधारी के प‍िता राजा सुबाल को देते हुए उन्‍हें और उनके पूरे पर‍िवार को कारागार में डाल द‍िया। उन्‍हें कारागार में भोजन भी केवल एक व्‍यक्ति के पेट भरने का देते। तब राजा सुबाल वह सारा भोजन अपने सबसे छोटे पुत्र शकुन‍ि को दे देते ताक‍ि उनके वंश में कोई तो जीव‍ित बचे और धृतराष्‍ट्र से प्रत‍िशोध ले सके।
तीसरा और चौथा पाप : धृतराष्‍ट्र का तीसरा पाप दासी के साथ सहवास करना था। गांधारी के पुत्रों ज‍िन्‍हें क‍ि कौरव कहा गया उनमें से एक भी कौरव वंशी नहीं थे। गांधारी ने महर्षि वेदव्‍यास से पुत्रवती होने का आशीर्वाद प्राप्‍त क‍िया। तब उन्‍हें दो वर्ष बाद 99 पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। उधर गांधारी जब गर्भवती थीं तो धृतराष्‍ट्र ने अपनी दासी के साथ सहवास क‍िया। उनसे उन्‍हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई ज‍िनका नाम युयुत्‍सू था। तब कौरवों की संख्‍या 99 से 100 हो गई। धृतराष्‍ट्र का चौथा पाप पांडवों के साथ क‍िया गया अन्‍याय था। वह जानते थे क‍ि पुत्र मोह में पड़कर वह पांडवों के साथ जो अधर्म कर रहे हैं वह उच‍ित नहीं है। लेक‍िन उन्‍होंने फ‍िर भी वही क‍िया और सारे वंश का सर्वनाश कर द‍िया। महाभारत युद्ध रोकने के ल‍िए महात्‍मा व‍िदुर ने उन्‍हें कई बार समझाया और युद्ध के पर‍िणामों के बारे में बताया लेक‍िन सबकुछ जानते-समझते हुए भी धृतराष्‍ट्र चुप ही रहे और केवल दुर्योधन और शकुनि की ही बात मानते रहे।
पांचवां और छठवां : पांचवां और जघन्‍य पाप द्रोपदी चीरहरण के समय धृतराष्‍ट्र का चुप रहना। यह एक ऐसी घटना थी ज‍िसने महाभारत युद्ध की नींव डाली यह कहना ब‍िल्‍कुल भी गलत नहीं था। द्रोपदी का चीरहरण एक ऐसी घटना थी ज‍िसने प्रत‍िशोध की अग्नि को जन्‍म द‍िया और फ‍िर उसका पर‍िणाम इत‍िहास का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत देखने को म‍िला। धृतराष्‍ट्र का छठवां पाप अपने भाई के बच्‍चों का हक छीनना भी था। हालांक‍ि यह उन्‍होंने स्‍वयं नहीं क‍िया। लेक‍िन जब भगवान श्रीकृष्‍ण ने पांडवों के ल‍िए केवल 5 गांव मांगे तब दुर्योधन के इंकार करने पर धृतराष्‍ट्र का चुप रहना भी पुत्र मोह में पड़कर अधर्म का साथ देना ही था।
सातवां और आठवां : भीम को मारने की इच्‍छा धृतराष्‍ट्र का सातवां पाप था। जब महाभारत समाप्‍त हो चुका था तब सभी पांडव धृतराष्‍ट्र से म‍िलने पहुंचे। वहां भीम के अलावा सभी ने धृतराष्‍ट्र को प्रणाम क‍िया। जब भीम की बारी आई तो भगवान श्रीकृष्‍ण ने भीम को रोका और भीम की जगह उनके ही आकार की बनीं एक लोहे की मूर्ति आगे बढ़ा दी। धृतराष्‍ट्र पुत्रों के वध से अत्‍यंत क्रोध में थे, उन्‍होंने समझा क‍ि उनके सामने भीम हैं तो उन्‍होंने उसे कसकर पकड़ा और तोड़ द‍िया। लेक‍िन जब उनका क्रोध शांत हुआ तो भीम को मृत समझकर रोने लगे। उसी समय भगवान श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें बताया क‍ि वह उनके क्रोध की अग्नि को जानते थे इसलिए भीम की जगह उनके आकार की मूर्ति आगे कर दी थी। इस तरह श्रीकृष्‍णजी ने भीम को धृतराष्‍ट्र के क्रोध से बचाया। आठवां पाप धृतराष्‍ट्र के पूर्व जन्‍म का था। उस समय वह अत्‍यंत न‍िर्दयी राजा थे। एक द‍िन वह व‍िहार पर न‍िकले और देखा क‍ि सरोवर में एक हंस अपने बच्‍चों के साथ व‍िहार कर रहा है। तब उन्‍होंने अपने सैन‍िकों को आदेश द‍िया क‍ि वह उस हंस की आंखें न‍िकाल लें। सैन‍िकों ने वैसा ही क‍िया। हंस की दुर्दशा और उसकी मौत के साथ ही उसके बच्‍चों की भी मौत हो गई। हंस ने भी मरते समय धृतराष्‍ट्र को शाप द‍िया क‍ि ज‍िस तरह उसे अपनी आंखें और पुत्र व‍ियोग का कष्‍ट म‍िला ठीक वैसा ही हश्र धृतराष्‍ट्र का भी होगा।
तब ऐसे हुई धृतराष्‍ट्र की जलकर मृत्‍यु : महाभारत का युद्ध समाप्‍त हुए 15 वर्ष बीत गए थे। धृतराष्‍ट्र, कुंती, गांधारी और संजय वन चले गए। एक द‍िन धृतराष्‍ट्र गंगा में स्‍नान करने के ल‍िये गए तो अचानक ही जंगल में आग लग गई। इसकी जानकारी म‍िलती ही गांधारी, कुंती और संजय वन की ओर गए। जहां सभी ने धृतराष्‍ट्र से बाहर आने के ल‍िए कहा लेक‍िन शारीर‍िक रूप से कमजोर होने के कारण वह बाहर नहीं न‍िकल सके। तब संजय ने गांधारी और कुंती से कहा क‍ि वह जंगल से प्रस्‍थान करें। लेक‍िन धृतराष्‍ट्र को आग में देखकर गांधारी और कुंती ने भी वहां से नहीं जाने का न‍िर्णय ल‍िया। इस तरह धृतराष्‍ट्र के साथ ही गांधारी और कुंती की भी मृत्‍यु हो गई।