जहां अन्य देवी-देवताओं के दो-चार और कुछ के दर्जन एक मंत्र हैं, वहीं मां काली के सौ से भी अधिक विशिष्ट मंत्र हैं। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। जिस प्रकार माता काली के स्वरूप और शक्तियां सभी देवताओं से अधिक हैं, ठीक उसी प्रकार सबसे अधिक है मां काली के मंत्र भी। यहां माता काली के शीघ्र फलदायक और प्रबल शक्तिशाली मंत्रों तथा उनके विभिन्न रूपों के भी मंत्रों का संकलन किया गया है। माता काली के लगभग सभी मंत्रों में ‘क्रीं, हूं, ह्रीं और स्वाहा’ शब्दों का प्रयोग होता है।
इनमें ‘क्रीं’ का तो अत्यंत विशिष्ट महत्व है। इसमें अक्षर ‘क’ जलस्वरूप और मोक्ष प्रदायक माना जाता है। ‘क्र’ में लगा आधा ‘र’ अग्रि का प्रतीक तथा सभी प्रकार के तेजों का प्रदायक है। ‘ई’ की मात्रा मातेश्वरी के तीन कार्यों-सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-धारण और लयकर्ता की प्रतीक है जबकि ‘मात्रा’ के साथ लगा हुआ ‘बिंदू’ उनके ब्रह्मस्वरूप का द्योतक है।
इस प्रकार केवल ‘क्रीं’ शब्द ही मातेश्वरी के एक पूर्ण मंत्र का रूप ले लेता है। ‘हूं’ का प्रयोग अधिकांश मंत्रों में बीजाक्षर के रूप में होता है। इसे ज्ञान प्रदायक माना जाता है।
‘ह्रीं’ शब्द ‘ई’ की मात्रा के समान आद्याशक्ति के सृष्टि-रचयिता, धारणकर्ता और लयकर्ता रूपों का प्रतीक तथा ज्ञान का प्रदायक है। जहां तक मंत्रों के अंत में लगने वाले ‘स्वाहा’ शब्द का प्रश्र है, यह सभी मंत्रों का मातृस्वरूप है तथा सभी पापों का नाशक माना जाता है। मंत्रों में प्रयुक्त होने वाले अन्य अक्षरों के भावार्थ भी इसी प्रकार गूढ़ और रहस्यपूर्ण होते हैं। उन अक्षरों और उनसे प्राप्त ध्वनि का यह रहस्य ही इन मंत्रों को शक्ति प्रदान करता है।
एकाक्षर मंत्र-क्रीं
यह काली का एकाक्षर मंत्र है, परंतु इतना शक्तिशाली है कि शास्त्रों में इसे महामंत्र की संज्ञा दी गई है। इसे मातेश्वरी काली का ‘प्रणव’ कहा जाता है और इसका जप उनके सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। वैसे इसे चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है।
द्विअक्षर मंत्र- क्रीं क्रीं
इस मंत्र का भी स्वतंत्र रूप से जप किया जाता है लेकिन तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु बड़ी संख्या में किसी भी मंत्र का जप करने के पहले और बाद में सात-सात बार इन दोनों बीजाक्षरों के जप का विशिष्ट विधान है।
त्रिअक्षरी मंत्र- क्रीं क्रीं क्रीं
यह काली की तांत्रिक साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मंत्र है। द्विअक्षर मंत्र के समान ही इन दोनों में से किसी एक को मंत्र सिद्धि अथवा मंत्रों का बड़ी संख्या में जप करते समय अनेक तंत्र-साधक प्रारंभ और अंत में सात-सात बार इसका स्तवन करते हैं।
सर्वश्रेष्ठ मंत्र- क्रीं स्वाहा
महामंत्र ‘क्रीं’ में ‘स्वाहा’ से संयुक्त यह मंत्र उपासना अथवा आराधना के अंत में जपने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
ज्ञान प्रदाता मंत्र: ह्रीं
यह भी एकाक्षर मंत्र है। मां काली की आराधना अथवा उपासना करने के पश्चात इस मंत्र के नियमित जप से साधक को सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मंत्र कहा जाता है।