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इन गुणों के कारण अर्जुन था सबसे श्रेष्ठ


हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ हैं जिनसे व्यक्ति को कई ज्ञान की बातें जानने को मिलती हैं। उन्हीं में से एक है महाभारत और इसी से हमें गीता ज्ञान की प्राप्ति हुई। कहते हैं गीता के श्लोकों को अगर व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले तो उसकी लाइफ में आने वाली हर मुसीबत का हल वह अपने आप ही कर लेता है। भगवान कृष्ण ने महाभारत में ही अर्जुन के बारे में कुछ ऐसी बातों का वर्णन किया है जोकि किसी और योद्धा में नहीं देखने को मिलता। अर्जुन को उसके गुणों के कारण ही श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के लिए उसे चुना था। तो चलिए जानते हैं उन गुणों के बारे में-
श्लोकः
बलं वीर्यं च तेचश्र्च शीघ्रता लघुहस्तता।
अविषादश्र्च धैर्यं च पार्थान्नान्यत्र विद्यते।।
कहते हैं कि अर्जुन के समान कोई और श्रेष्ठ धर्नुधारी कोई नहीं था। एक तरफ वो धर्नु विद्या में निपुण थे तो वहीं मानसिक बल होने के साथ-साथ उनमें शारीरिक बल भी था। जिसकी वजह से वे सबसे श्रेष्ठ योद्धा थे।
धैर्य एक ऐसा गुण है, जो हर व्यक्ति में होना चाहिए। भगवान कृष्ण के अनुसार, जिस मनुष्य में धैर्य होता है, वह अपने आप ही महान बन जाता है। अर्जुन बुद्धिमान, ताकतवर होने के साथ-साथ धैर्यवान भी थे।

पराक्रम होना यानि कि हर काम को करने की क्षमता रखना, जोकि अर्जुन में थी और जो उसे सबसे अलग बनाता था। महाभारत के सभी पात्रों में से केवल अर्जुन ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे, जो कि किसी भी चुनौती या परेशानी का सामना करने में समर्थ थे।
अर्जुन के व्यक्तित्व में एक ऐसा तेज था, जिसे देखकर हर कोई उनसे आकर्षित हो जाता था। भगवान कृष्ण के अनुसार, जितना तेज और प्रभाव अर्जुन के व्यक्तित्व में था, उतना और किसी में नहीं था और यही गुण अर्जुन को दुसरों से अलग और खास बनाता था।
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गीता में दिए गए उपदेशों में ये एक बात भी थी कि मोह-माया को छोड़कर अपने कर्म की ओर ध्यान देना चाहिए। युद्ध में चाहे अर्जुन को किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उनका मन एक पल के लिए भी विचलित नहीं हुआ।