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क्‍यों घबराएं हुए हैं जो बाइडेन, तुर्की और भारत की करीबी से आखिर अमेरिका को क्‍यों हो रही है जलन

भारत के विदेश मंत्री एस सुब्रहमण्‍यम ने हाल ही में तुर्की के अपने समकक्ष मेव्लुट कावुसोग्लू से मुलाकात की। यह मुलाकात 21 सितंबर को न्‍यूयॉर्क में चल रहे यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली (UNGA) से इतर हुई थी। दोनों के बीच साइप्रस पर भी चर्चा हुई और खुद जयशंकर ने इस बात की जानकारी ट्वीट के जरिए दी। जयशंकर ने तुर्की के विदेश मंत्री के साथ मुलाकात के बाद साइप्रस का जिक्र किया। साइप्रस और तुर्की के बीच रिश्‍तों को अक्‍सर भारत और पाकिस्‍तान के समकक्ष रखा जाता है। वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर अमेरिका की नजरें गड़ी हुई हैं। राजनयकि सूत्रों की मानें तो अमेरिका को भारत और तुर्की के बीच बेहतर होते रिश्‍ते रास नहीं आ रहे हैं।
तुर्की और साइप्रस का बंटवारा भी भारत और पाकिस्‍तान की ही तरह एतिहासिक है। सन् 1923 में हुई लॉजेन की संधि के तहत जिसने ओटोमन साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया। लॉजेन की संधि को तुर्की ने ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और ग्रीस के साथ 100 सालों के लिए साइन किया था। 24 जुलाई 2023 को यह संधि खत्‍म हो जाएगी। इसके बाद तुर्की की आधुनिक सीमाओं का भी विलय हो जाएगा। जो संधि हुई थी उसके तहत गुप्‍त कानूनों को ब्रिटेन और तुर्की ने साइन किया था।
इस संधि के खत्‍म होने के बाद कई एतिहासिक घटनाएं भी होने वाली हैं जैसे कि ब्रिटिश सैनिक फिर से उन किलों पर कब्‍जा कर लेंगे जो बोस्फोरस के सामने हैं। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रिआर्क, इस्तांबुल की शहर की दीवारों के अंदर एक बीजान्टिन छोटा देश फिर से तैयार करेगा। इसके साथ ही तुर्की पूर्वी भूमध्य सागर के विशाल ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग करने में सक्षम हो सकेगा। सिर्फ इतना ही नहीं शायद तुर्की पश्चिमी थ्रेस जो ग्रीस का एक प्रांत है उस फिर से हासिल कर ले।
ऐसे में इस समय साइप्रसे सारे ड्रामे का केंद्र बना हुआ है। तुर्की के सत्‍ताधारी मानते हैं कि उनके देश को सन् 1920 में सेवर की संधि और फिर 1923 में लॉजेन की संधि पर साइन करने के लिए मजबूर किया गया था। खुद राष्‍ट्रपति एर्दोगन भी इतिहास को खारिज कर देते हैं। तुर्की लॉजेन संधि के 100 साल का जश्‍न मनाने की तैयारी कर चुका है। ऐसे में अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय की नजरें अब उस पर लगी हुई हैं।