राजा द्रुपद के मन में यह लालसा थी कि मेरी पुत्री का विवाह किसी न किसी प्रकार अर्जुन के साथ हो जाए, परंतु उन्होंने यह विचार किसी से प्रकट नहीं किया। अर्जुन को पहचानने के लिए उन्होंने एक ऐसा धनुष बनवाया, जो किसी दूसरे से झुक न सके। इसके अतिरिक्त आकाश में एक ऐसा कृत्रिम यंत्र टंगवा दिया, जो चक्कर काटता रहता था। उसी के ऊपर वेधने का लक्ष्य रखवाकर यह घोषणा करा दी कि जो वीर इस धनुष पर डोरी चढ़ाकर इस घूमने वाले यंत्र के छिद्र के भीतर से लक्ष्यवेध करेगा, वही मेरी पुत्री द्रौपदी को प्राप्त कर सकेगा। सब ओर चारदीवारी थी, उसके भीतर रंगमंडप के चारों तरफ ऊंचे और श्वेत रंग के गगनचुम्बी महल बने हुए थे। विचित्र चंदोवे से उस सभा भवन को सब ओर से सजाया गया था। फर्श तथा दीवारों पर मणि एवं रत्न जड़े थे।
आराम से चढ़ने के लिए सीढ़ियां लगी थीं। बड़े-बड़े आसन तथा बिछावन आदि बिछाए गए थे। बहुमूल्य अगर-धूप की सुगंध चारों ओर फैल रही थी। उत्सव के सोलहवें दिन ऋषि-मुनि, देश-देश के राजा, राजकुमार, ब्राह्मण तथा प्रजाजनों से सभा मंडप खचाखच भर गया। कौरवों के षड्यंत्र के कारण पांडव भी ब्राह्मणवेष में ब्राह्मण मंडली में जा बैठे। द्रुपद कुमारी कृष्णा अपनी कुछ प्रमुख सखियों सहित सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सज-धजकर हाथों में सोने की वरमाला लिए मंद गति से रंग मंडप में आकर खड़ी हो गई। इसी बीच द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न अपनी बहन के पास खड़े होकर मधुर एवं प्रिय वाणी से यह कह कर जाकर अपने स्थान पर बैठ गया कि जो इस धनुष बाण से लक्ष्य का भेदन करेगा उसे द्रौपदी वरमाला पहनाएगी।’’
सभा मंडप में बैठे वीरों में उत्साह बढ़ गया। हर कोई अपने को बलवान, रूपवान तथा लक्ष्यवेध करने में समर्थ समझने लगा। किन्तु आश्चर्य और भय का वातावरण तब उपस्थित हो गया जब बहुत से लोग धनुष उठाने के प्रयास में ही गिर गए, कुछ से धनुष उठा तो, पर डोरी खींचते समय ही गिरकर घायल हो गए। इस तरह जगह-जगह से पधारे वीरों का उत्साह धीरे-धीरे भंग होता गया और नतमस्तक होकर सभी बैठते गए। सबको निराश और उदास देखकर कर्ण ने आकर धनुष पर डोरी चढ़ाकर ज्यों ही लक्ष्यवेध करना चाहा, त्यों ही द्रौपदी जोर से बोल उठी, ‘‘मैं सूतपुत्र को नहीं वरूंगी।’’
कर्ण ने यह सुनकर ईर्ष्या भरी हंसी के साथ सूर्य को देखकर धनुष नीचे रख दिया। इस प्रकार बड़े-बड़े प्रभावशाली वीर लक्ष्यवेध न कर सके, सारा समाज सहम गया, लक्ष्यवेध की बातचीत तक बंद हो गई। उसी समय ब्राह्मणों के समाज में अर्जुन खड़े हो गए। अब तो सभी आश्चर्य तथा विस्मय से अर्जुन को देखने लगे। कोई सोचने लगा कि जिस धनुष को बड़े-बड़े राजा न उठा सके, भला उसे यह ब्राह्मण कैसे उठाएगा? कहीं यह ब्राह्मणों की हंसी तो नहीं कराएगा? कहीं इसके कारण राजा लोग ब्राह्मणों से द्वेष न करने लगें।
जिस समय ब्राह्मणों में नाना प्रकार की बातें हो रही थीं, उसी समय अर्जुन धनुष के पास पहुंच गए। अभी लोगों की आंखें अर्जुन पर पूरी तरह जम भी नहीं पाई थीं कि उन्होंने बड़ी आसानी से धनुष पर डोरी चढ़ा दी तथा बाण से लक्ष्य को वेध कर जमीन पर गिरा दिया। लक्ष्यवेध होते ही सभा मंडप में महान आनंद-कोलाहल छा गया। अर्जुन के सिर पर दिव्य पुष्पों की वर्षा होने लगी, ब्राह्मण (हर्ष में भरकर) अपने दुपट्टे हिलाने लगे। द्रौपदी ने प्रसन्नतापूर्वक अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी। फिर ब्राह्मणों ने अर्जुन का स्वागत किया और द्रौपदी के साथ रंगभूमि से बाहर प्रस्थान किया। उपस्थित राजाओं ने बंदर घुड़की दे-देकर युद्ध आरंभ कर दिया, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण के समझाने-बुझाने तथा भीम सेन के पराक्रम से विस्मित सब लोग युद्ध बंद करके अपने-अपने घर को लौट गए।