पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत की सुपर ह्यूमन कही जाने वाली आर्चर शीतल देवी ने कंपाउंड ओपनर आर्चरी में राकेश कुमार के साथ मिलकर कमाल कर दिया। ब्रॉन्ज मेडल के मैच में शीतल ने राकेश के साथ अचूक निशाना लगाते हुए भारत का परचम लहराया है। ऐसे में आइए जानते हैं कौन हैं शीतल देवी।
भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने राकेश कुमार के साथ मिक्स्ड टीम कंपाउंड ओपन आर्चरी में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। पेरिस पैरालंपिक में शीतल और राकेश की जोड़ी ने मातेओ बोनासिना और एलेओनोरा सारती को 156-155 से हराया। भारत को जीत तब मिली जब 17 साल की शीतल का शॉट रिविजन के बाद अपग्रेड कर दिया गया। चार तीर बाकी रहते भारतीय जोड़ी एक अंक से पिछड़ रही थी लेकिन आखिर में संयम के साथ खेलते हुए उन्होंने जीत दर्ज की। शीतल का जन्म 2007 में फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार के साथ हुआ था जिसके कारण उसके अंग अविकसित रह जाते हैं। इस बीमारी के कारण उसके हाथ पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए। ऐसे में आइए जानते हैं कौन भारत की शान शीतल देवी।
कौन हैं महिला आर्चर शीतल देवी – शीतल देवी का जन्म जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में एक साधारण परिवार में हुआ। शीतल बिना हाथों के जन्मी। यही कारण है कि उन्हे शुरुआती जीवन में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। साल 2019 से पहले शीतल देवी का जीवन काफी मुश्किलों में बीता लेकिन, इसके जब एक सैन्य शिविर में भारतीय सेना द्वारा उनकी प्रतिभा पहचना तब उन्होंने पूरी दुनिया को दिखाया कि वह बिना हाथ के भी बुलंदियों को छू सकती हैं। भारतीय सेना के द्वारा ना सिर्फ आर्चरी की ट्रेनिंग दी गई बल्कि उनकी पढ़ाई और चिकित्सा का भी खर्चा उठाया। इसके बाद शीतल को पैरालंपिक तीरंदाजी कोच कुलदीप वेदवान ने ट्रेनिंग दी। शीतल ने अपनी अद्भुत प्रतिभा से कई उपलब्धियां हासिल की उसी में से एक 2023 विश्व तीरंदाजी पैरा चैंपियनशिप में जीता गया सिल्वर मेडल भी है।
बता दें कि शीतल का सफर खेल से कहीं आगे की है। शीतल पूरी दुनिया के लिए साहस और दृढ़ता का प्रतीक हैं। उनकी कहानी दुनिया भर में अनगिनत लोगों को प्रेरित करती है। शीतल ने पूरी दुनिया को यह दिखाया कि दृढ़ता और समर्थन के साथ किसी भी बाधा को दूर किया जा सकता है। उनकी विरासत तीरंदाजी रेंज से आगे तक फैली है, जो एक पीढ़ी को चुनौतियों को स्वीकार करने और अपने सपनों का दृढ़ता से पीछा करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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