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शाम को पूजा करते वक्त बरतें सावधानी


सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ अधिकतर घरों में पूजा-पाठ आरंभ हो जाता है। धूप-दीप की सुगंध से वातावरण महक उठता है, शंख और घंटी की मधुर ध्वनी घर में सकारात्मकता का संचार करती है। दिन का आरंभ यदि देवी-देवताओं कि आराधना के साथ किया जाए तो सारा दिन सुख-शांति से व्यतित होता है। विद्वान कहते हैं कि सुबह के समय दैवीय शक्तियां बलवान होती हैं और शाम के समय आसुरी। भगवान को प्रसन्न करने के लिए सुबह पाठ-पूजा अवश्य करना चाहिएं। आसुरी शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए सूर्य ढलने के बाद देव उपासना करनी चाहिए। अत: सुबह और शाम दोनों समय की गई प्रार्थना का अपना-अपना महत्व है।

बदलते परिवेश के साथ लोगों को सुबह काम पर जाने की शीघ्रता के चलते इबादत करने का समय नहीं मिलता। ऐसे में वो शाम को पूजा करते हैं लेकिन इस दौरान बरतें सावधानी

तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी बासी नहीं होते। इसके अतिरिक्त किसी भी बासी सामग्री को उपयोग न करें।

सूर्यास्त के उपरांत देवी-देवता विश्राम के लिए चले जाते हैं, शंख और घंटियां न बजाएं।

सूर्य ढलने के बाद वनस्पति से छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। अत: पूजा के लिए जो भी फल-फूल और पत्ते चाहिए हों वह दिन के समय ही तोड़ कर रख लें।

श्री हरि विष्णु और उनके किसी भी अवतार को तुलसी पत्र अर्पित किए बिना भोग नहीं लगता। भगवान उसे ग्रहण नहीं करते।

भोर फटते ही सूर्य देवता अपना प्रकाश चारों ओर बिना किसी भेद-भाव के फैलाते हैं। दिन के समय इनकी पूजा करें रात को नहीं।

रात को सोने से पहले मंदिर के आगे पर्दा करें ताकि भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न न हो। मंदिर के कपाट एक बार बंद कर दें तो सुबह भोर फटते ही खोलें।