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म्यांमार: तख्तापलट के खिलाफ आक्रोश, प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार, पोप फ्रांसिस ने जताई नेताओं की रिहाई की उम्मीद


म्यांमार की राजधानी में तख्तापलट करने वाली सेना के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर हैं। इनकी मांग है कि सत्ता को फिर से चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में सौंपा जाए। इन लोगों पर पुलिस ने सोमवार को पानी की बौछार छोड़ी। वहीं, अब पोप फ्रैंसिस ने भी अपील की है कि हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा किया जाए। इससे पहले उन्होंने म्यांमार के लोगों के साथ खड़े होने की बात कही थी।
पिछले हफ्ते हुए तख्तापलट के विरोध में देश के अन्य हिस्सों में भी प्रदर्शन तेज होता दिख रहा है। नेपीता में बीते कुछ दिनों से प्रदर्शन जारी है और यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां कई नौकरशाह और उनके परिवार के लोग रहते हैं और शहर में प्रदर्शनों की कोई परंपरा नहीं रही है। यहां आम दिनों में भी काफी सैन्य जमावड़ा होता है।
देश के हर कोने में प्रदर्शन : देश के सबसे बड़े शहर यंगून के प्रमुख चौराहों पर भी प्रदर्शनकारी काफी संख्या में जुटे। यंगून में सुबह प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए, और प्रतिरोध की प्रतीक तीन उंगलियों से सलामी दी। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने ‘सैन्य तख्तापलट का बहिष्कार’ और ‘म्यांमार के लिए न्याय’ लिखी हुई तख्तियां दिखाते हुए विरोध व्यक्त किया।
उत्तर में स्थित कचिन राज्य, दक्षिण पूर्व में मोन राज्य, पूर्वी राज्य शान के सीमावर्ती शहर ताचिलेक, नेपीता और मंडाले में सोमवार को विरोध प्रदर्शन के नए मामले सामने आए हैं। यहां लोगों ने तख्ता पलट के विरोध मार्च और बाइक रैली निकाली। यंगून में एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘हम सैन्य जुंटा नहीं चाहते। हम कभी भी यह जुंटा नहीं चाहते थे। कोई इसे नहीं चाहता। सभी लोग उनसे लड़ने के लिए तैयार हैं।’
म्यांमार के लिए झटका : सरकारी मीडिया ने सोमवार को पहली बार प्रदर्शनों का जिक्र किया और उनके देश की स्थिरता के लिए खतरा होने का दावा किया। सरकारी टीवी स्टेशन एमआरटीवी पर पढ़े गए सूचना मंत्रालय के बयान के मुताबिक, ‘अगर कोई अनुशासन नहीं होगा तो लोकतंत्र बर्बाद हो सकता है।’ इसमें कहा गया, ‘देश की स्थिरता, लोक सुरक्षा और कानून का उल्लंघन करने वाले कृत्यों को रोकने के लिए हमें विधिक कार्रवाई करनी होगी।’
इस तख्तापलट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार के लिए स्तब्धकारी झटके के तौर पर देखा गया जो पांच दशकों के सैन्य शासन के बाद हाल के वर्षों में लोकतंत्र की दिशा में प्रगति कर रहा था। यह तख्तापलट ऐसे समय हुआ है जब नवंबर में हुए चुनावों के बाद नए सांसदों को संसद में अपनी सीट लेनी थी। सेना के जनरलों का आरोप है कि चुनावों में धांधली हुई है। हालांकि, देश के निर्वाचन आयोग ने इन दावों को खारिज किया है।
बढ़ते विरोध प्रदर्शनों ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश में लोकतंत्र के लिए लंबे और खूनी संघर्ष की यादें ताजा कर दीं। रविवार को हजारों प्रदर्शनकारी शहर के सुले पैगोडा में जुटे जो 1988 के विद्रोह और उसके बाद 2007 में बौद्ध भिक्षुओं के नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान सैन्य शासन के खिलाफ प्रदर्शन का प्रमुख केंद्र रहा था। दोनों ही विद्रोह को कुचलने के लिए सेना ने बेहद सख्त तरीके अपनाए थे।
तेज हो रहे प्रदर्शन : कुछ अधिकारियों को छोड़कर बीते हफ्ते सैनिक सड़कों पर नजर नहीं आए। नेपीता से सोमवार को आई गतिरोध की तस्वीरों में प्रदर्शनकारी बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों और पुलिस के वाहनों से घिरे दिखे। अधिकारियों ने आंग सान की विशाल प्रतिमा के आगे जुटे प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर पानी की बौछार छोड़ी।आंग सान ने 1940 के दशक में ब्रिटेश से देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और वह आंग सान सू ची के पिता हैं। सू ची फिलहाल अपने घर में नजरबंद हैं।
म्यांमार की थाईलैंड से लगने वाली पूर्वी सीमा पर स्थिय मयावडी में रविवार को इस तरह के विरोध प्रदर्शन के दौरान संघर्ष के जोखिम सामने आए थे जब भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने हवा में गोलियां चलाई थीं। एक स्वतंत्र निगरानीकर्ता समूह ‘द असिस्टेंस असोसिएशन ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स’ ने कहा कि एक महिला को गोली लगी थी हालांकि उसने उसकी स्थिति के बारे में कोई विवरण नहीं दिया। इस बात के फिलहाल कोई संकेत नहीं है कि प्रदर्शनकारी या सेना में कोई भी इस लड़ाई में पीछे हटेगा कि देश में वैध सरकार किसकी है।
सेना के स्वामित्व वाले ‘मयावाडी टीवी’ ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। प्रस्तोता ने कहा कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को ‘संभावित तख्तापलट की व्यवस्था’ करार दिया था। संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इनकार किया गया है।
कुछ विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि सेना अपनी शक्तिशाली यथास्थिति को क्यों पलटेगी लेकिन कुछ अन्य ने सीनियर जनरल मीन आउंग हलैंग की निकट भविष्य में सेवानिवृत्ति को इसका कारण बताया जो 2011 से सशस्त्र बलों के कमांडर हैं। म्यामांर के नागरिक और सैन्य संबंधों पर शोध करने वाले किम जोलीफे ने कहा, ‘इसकी वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है जो काफी अपारदर्शी है। यह उन समीकरणों की वजह से हो सकता है और हो सकता है कि यह अंदरूनी तख्तापलट हो और सेना के अंदर अपना प्रभुत्व कायम रखने का तरीका हो।’ सेना ने उपराष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं।
सू ची की पार्टी ने नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिणाम की पुष्टि की है। लेकिन चुनाव होने के कुछ समय बाद ही सेना ने दावा किया कि 314 शहरों में मतदाता सूची में लाखों गड़बड़ियां थीं जिससे मतदाताओं ने शायद कई बार मतदान किया या अन्य ‘चुनावी फर्जीवाड़े’ किए। जोलीफे ने कहा, ‘लेकिन उन्होंने उसका कोई सबूत नहीं दिखाया।’ चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते दावों से इंकार किया और कहा कि इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है। चुनाव के बाद नई संसद के पहले ही दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। सू ची और अन्य सांसदों को पद की शपथ लेनी थी लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। ‘मयावाडी टीवी’ पर बाद में घोषणा की गई कि सेना एक वर्ष का आपातकाल समाप्त होने के बाद जीतने वाले को सत्ता सौंप देगी।
देश में सुबह और दोपहर तक संचार सेवाएं ठप हो गईं। राजधानी में इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं। देश के कई अन्य स्थानों पर भी इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। देश के सबसे बड़े शहर यांगून में कंटीले तार लगाकर सड़कों को जाम कर दिया गया और सिटी हिल जैसे सरकारी भवनों के बाहर सेना तैनात है। काफी संख्या में लोग एटीएम और खाद्य वेंडरों के पास पहुंचे और कुछ दुकानों एवं घरों से सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के निशान हटा दिए गए।
विश्व भर की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि म्यामां में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वाच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, ‘लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यामां के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विश्व मंच पर इसकी साख को बट्टा लग गया है।’ मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्रवाई संभव है। अमेरिका के कई सीनेटरों और पूर्व राजनयिकों ने सेना की आलोचना करते हुए लोकतांत्रिक नेताओं को रिहा करने की मांग की है और जो बाइडन सरकार और दुनिया के अन्य देशों से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
म्यांमार में जारी राजनीतिक उठापटक पर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत की भी निगाहें टिकी हैं। खास इसलिए क्योंकि म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है। वहां की राजनीतिक स्थिरता का असर दोनों देशों के संबंधों और सीमावर्ती क्षेत्रों की शांति पर पड़ सकता है। यही नहीं, म्यांमार की सीमा चीन से भी सटी है। इसलिए भी भारत के लिए म्यांमार की सरकार ज्यादा अहम हो जाती है। पहले से ही उत्तरपूर्व में म्यांमार से होकर उग्रवादी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं जिनका संबंध चीन से होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। यह भी कहा जाता है कि चीन और म्यांमार की सेनाओं के बीच संबंध अच्छे हैं। ऐसे में तत्पदौ के हाथ में देश की बागडोर होना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। खासकर तब जब लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक न सिर्फ दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात हैं, बल्कि सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं।
हिरासत में लिए गए 150 से ज्यादा लोग : हाल में हुए चुनावों में सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी को भारी बहुमत हासिल हुआ था लेकिन फिलहाल सत्ता पर जुंटा का कब्जा है। सू ची की पार्टी ने लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिये जाने का अनुरोध किया है। यंगून में रविवार को विभिन्न कार्यकर्ता समूहों द्वारा आम हड़ताल का आह्वान किया गया था लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये आह्वान व्यापक जनसमर्थन हासिल कर पाया या फिर अनौपचारिक रूप से आयोजित सविनय अवज्ञा का रूप ले पाएगा।
‘द असिस्टेंस असोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स’ ने कहा कि देश में एक फरवरी को हुए तख्तापलट के बाद से 165 लोगों को हिरासत में लिया गया जिनमें से अधिकतर राजनेता हैं। उसके मुताबिक इनमें से सिर्फ 13 को रिहा किया गया। एक विदेशी नागरिक को भी अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिए जाने की पुष्टि हुई है। आंग सान सू ची सरकार के ऑस्ट्रेलियाई सलाहकार सॉन टर्नेल को अस्पष्ट परिस्थितियों में शनिवार को हिरासत में लिया गया।
विदेश मंत्री मरीस पायने के दफ्तर से सोमवार को जारी एक बयान में कहा गया, ‘हमने ऑस्ट्रेलियाई नागरिक प्रफसर सॉन टर्नेल को तुरंत रिहा करने की मांग की है।’ विदेश मंत्री पायने ने कहा कि म्यांमार में ऑस्ट्रेलियाई दूतावास ‘इस मुश्किल वक्त में टर्नेल को हर संभव मदद कर रहा है।’