
मिस्र की बहुचर्चित महिला ममी तकाबुती की बेहद रहस्यमय मौत का 2600 साल बाद खुलासा हो गया है। ताजा शोध में कहा गया है कि तकाबुती की मौत पीठ में कुल्हाड़ी मारे जाने से हुई थी। इससे पहले ऐसा माना जाता था कि तकाबुती की मौत चाकू मारने से हुई थी। माना जाता है कि करीब 2600 साल पहले तकाबुती एक संभ्रांत महिला थी जो उस समय थेबेस शहर (आज का लक्सर) में रहती थी।
यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के प्रफेसर रोजली डेविड और क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट के प्रफेसर इलिन मर्फी ने इस रहस्यमय मौत के बारे में ताजा शोध को पूरा किया है। तकाबुती की मौत दुनियाभर में पिछले कई दशक से रहस्य बनी हुई थी। इस बेहद खास ममी को वर्ष 1834 में आयरलैंड लाया गया था और कई सौ साल बाद उसे पहली बार खोला गया था।
तकाबुती को मारने के लिए सैन्य कुल्हाड़ी का इस्तेमाल : इस ताजा को शोध को तकनीक, डीएनए, एक्सरे, सीटी स्कैन के जरिए अंजाम दिया गया है। इस दौरान ममी के बाल और उसे ममी बनाने वाले सामानों की भी जांच की गई थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि तकाबुती को मारने के लिए सैन्य कुल्हाड़ी का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि तकाबुती अपने हमलावर से बचने का प्रयास कर रही थी और इसी दौरान पीछे से हमला किया गया।
प्राचीन मिस्र में शव पर लेप को लगाने को एक बेहद पवित्र कला माना जाता था और इसकी जानकारी केवल कुछ ही लोगों तक सीमित थी। इस कला के बारे में ज्यादातर गुप्त बातें केवल कुछ ही लोगों तक सीमित थी। यह कला एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को ज्यादातर जुबानी तरीके से सिखाई जाती थी। मिस्र मामले के विशेषज्ञों का मानना है कि शव पर लेप लगाए जाने के बारे में लिखित में साक्ष्य अतिदुर्लभ है। अब तक केवल दो ऐसी किताबें मिली हैं जिनमें मिस्र में शवों को लेप लगाकर ममी बनाने के बारे में जानकारी देने वाला माना जाता है। अब पुरातत्वविदों को भोजपत्र की शक्ल में मौजूद एक ऐसी मेडिकल बुक को पढ़ने में सफलता मिली है जिसमें ममी बनाने की पूरी प्रक्रिया को समझाया गया है। इस किताब में हर्बल मेडिसिन और त्वचा के सूजन के बारे में जानकारी दी गई है। इस किताब को हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन में मिस्र मामलों की विशेषज्ञ सोफी चिओड्ट ने संपादित किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन ने एक बयान जारी करके कहा कि इस भोजपत्र में सबसे पहले इस्तेमाल किए जाने वाले हर्बल इलाज के बारे में जानकारी है।
मिस्र मामलों की विशेषज्ञ सोफी ने कहा कि इस किताब को पढ़ने वाले के लिए यह जरूरी है कि वह विशेषज्ञ हो ताकि उसे इस प्रक्रिया का पूरा विवरण याद रह सके। इसमें मलहम का इस्तेमाल और विभिन्न तरह की पट्टियों को किस तरह से लगाना है, यह शामिल है। सोफी ने अभी अपनी पूरी स्क्रिप्ट को जारी नहीं किया है और इसे अगले साल जारी किया जाएगा। किताब में शव के ऊपर कैसे लेप लगाना है, इसकी पूरी जानकारी दी गई है। प्राचीन मिस्र के लोग मृतक व्यक्ति के सिर के ऊपर एक लाल कपड़ा लगाते थे। इस कपड़े पर कुछ प्लांट आधारित सॉल्यूशन लगा रहता था। इस सॉल्यूशन में सुगंधित पदार्थ और बाइंडर भी लगे रहते थे। इसका इस्तेमाल बैक्टीरिया और कीड़ों को मारने के लिए किया जाता था। इस किताब में एक और प्रक्रिया के बारे में बताया गया है जिसको पूरा करने में कुल 70 दिन लगते थे। शव के ऊपर लेप लगाए जाने का काम हर चार दिन पर किया जाता था। इस दौरान लाश को सुखाने और उसे बैक्टीरिया रोधी तरल पदार्थ में डाला जाता था।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन ने बताया कि भोजपत्र में घरों के इस्तेमाल, एक दैवीय पौधे के धार्मिक महत्व और उसके बीजों के बारे में जानकारी है। किताब के एक बड़े हिस्से में त्वचा के सूजन के इलाज को लेकर जानकारी दी गई है। प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना है कि त्वचा की इस बीमारी को चंद्रमा देवता खोंसू ने दिया है। सोफी ने कहा कि इस किताब से पहले से मौजूद दो अन्य किताबों के तुलना का बेहतरीन मौका मिला है। उन्होंने कहा कि ममी बनाने की इस सबसे पुरानी प्रथा में से कई बातों को बाद में आई किताबों में जगह नहीं दी गई है। उन्होंने बताया कि ममी बनाने की प्रक्रिया को बहुत विस्तृत तरीके से समझाया गया है। इस किताब से पता चला है कि प्राचीन मिस्र के लोगों के लिए 4 नंबर बेहद अहम था। शव पर लेप लगाने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कब्र के पास एक वर्कशाप बनाया जाता था। इस दौरान 70 दिन की अवधि को दो भागों में बांटा जाता था। इसमें 35 दिनों तक शव को सुखाया जाता था और 35 दिन तक उसे लपेटा जाता था।
शव को लेप लगाए जाने के 4 दिन बाद उसके अंदर से शरीर के अंगों और दिमाग को निकाला जाता था। इसके बाद आंख भी नष्ट हो जाती थी। 70 दिन की पूरी प्रक्रिया में 68वें दिन ममी बनकर तैयार हो जाती थी और उसे ताबूत के अंदर रख दिया जाता था ताकि वह मरने के बाद अपनी जिंदगी को जी सके। सोफी ने बताया कि 70 दिनों के दौरान ममी के लिए एक यात्रा निकाली जाती थी और मरने वाले के शरीर के शुद्धता का जश्न मनाया जाता था। शव पर लेप लगाए जाने के दौरान कुल 17 बार जुलूस निकाला जाता था। हर 4 दिन के अंतराल पर शव को कपड़े से ढंका जाता था और सुगंधित पदार्थ के साथ तिनका डाला जाता था ताकि कीड़े और मुर्दाखोर दूर रहें। करीब 3500 साल पुराने इस भोजपत्र को Louvre-Carlsberg Papyrus कहा जाता है। यह प्राचीन मिस्र के समय बचाई गई दूसरी सबसे लंबी किताब है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह किताब कम से कम 6 मीटर लंबी है और यह करीब 1450 ईसापूर्व की है। इस किताब में ज्यादातर जानकारी हर्बल उपचार और त्वचा की बीमारी के बारे में है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह हमलावर असीरियन या खुद तकाबुती के अपने लोगों में शामिल व्यक्ति हो सकता है। इससे पहले ममी के स्कैन में पता चला था कि तकाबुती के कमर के ऊपरी हिस्से में चाकू से हमला किया गया। चाकू मारने की वजह से ही तकाबुती की मौत हो गई थी। ताजा शोध में अब कहा गया है कि तकाबुती को मारने के लिए कुल्हाड़ी का इस्तेमाल किया गया था। इस कुल्हाड़ी का इस्तेमाल उस समय मिस्र और असीरियन सैनिक धडल्ले से करते थे। शोधकर्ताओं ने कहा कि तकाबुती संभवत: खुद अपने ही लोगों के हमले का शिकार हो गई।
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