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जन्म कुंडली से जान सकते हैं पारिवारिक सदस्यों के स्वभाव की गुप्त बातें

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भारत में सब हिन्दू परिवारों में जातक की जन्म कुंडली बनवाने का रिवाज है। जन्म कुंडली के 12 भावों के प्रत्येक भाव से जातक के किसी न किसी संबंधी का विचार किया जाता है। ज्योतिषी जन्म कुंडली का अध्ययन करके जातक के अन्य संबंधियों के साथ भावी संबंध की भविष्यवाणी करते हैं। जातक की जन्म कुंडली के नवम् भाव से पिता का विचार किया जाता है। जिस प्रकार स्त्री की कुंडली के सप्तम् भाव से पति का विचार किया जाता है, उसी प्रकार मातृ भाव अर्थात चतुर्थ भाव से सप्तम् घर अर्थात कुंडली के दशम भाव से ही पिता का विचार किया जाना चाहिए।

तृतीय भाव से सातवें घर अर्थात कुंडली के नवम घर से छोटे भाई की पत्नी और छोटी बहन के पति का विचार किया जा सकता है। पंचम भाव से सप्तम घर अर्थात ग्यारहवें भाव से पुत्रवधू का विचार किया जा सकता है।

मातृ भाव अर्थात तीसरे घर से मामा और मौसी का विचार किया जा सकता है। मातृ भाव से चतुर्थ अर्थात कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री के अलावा माता की माता अर्थात नानी का विचार किया जाता है। नाना के विचार के लिए मातृ भाव से दशम भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव से विचार किया जा सकता है। जातक के चाचा एवं बुआ का विचार पितृ भाव अर्थात दशम भाव से तीसरे गृह अर्थात कुंडली के द्वादश भाव से करना चाहिए। जातक के दादा का विचार दशम भाव से दसवें गृह अर्थात कुंडली के सातवें गृह से करना चाहिए। दादी के लिए कुंडली के प्रथम भाव से विचार करें।

जातक के ताऊ के विचार के लिए पितृ भाव से ग्यारहवें गृह अर्थात कुंडली के अष्टम भाव से विचार करना चाहिए। ताई के लिए अष्टम भाव से सप्तम भाव अर्थात कुंडली के द्वितीय भाव से विचार करना चाहिए। चाचा और बुआ का विचार बारहवें भाव से किया जाता है इसलिए चाची और फूफा का विचार कुंडली के षष्ठ भाव से करना चाहिए। मामी और मौसा का विचार छठे भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के बारहवें भाव से करना चाहिए।

सास के लिए स्त्री के घर से चौथे घर अर्थात दसवें घर से विचार करना चाहिए। ससुर के लिए स्त्री भाव से दशम घर अर्थात कुंडली के चौथे भाव से विचार करना चाहिए। छोटे साले और सालियों के लिए सप्तम भाव से तृतीय गृह अर्थात कुंडली के चतुर्थ भाव से विचार किया जाता है। बड़े साले व सालियों के लिए सप्तम भाव से ग्यारहवां घर अर्थात कुंडली के पांचवें भाव पर विचार करना चाहिए।

बड़े भाई एवं बहनों का विचार एकादश भाव से किया जाता है। पुत्र, बड़ी भाभी और बड़े जीजा का विचार एकादश भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के पंचम भाव से करना चाहिए। स्त्री जातक के जेठ और जेठानी का विचार करते समय पंचम भाव से जेठ का तथा एकादश भाव से जेठानी का विचार करना चाहिए। तृतीय भाव से देवरानी तथा नवम भाव से देवर का विचार करना चाहिए।

इस प्रकार जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव से किसी न किसी संबंधी का विचार किया जा सकता है। यदि जातक के अपनी माता से मधुर संबंध हैं तो उसका ससुर से संबंध मधुर ही रहेगा। यदि पति के साथ अच्छे संबंध हैं तो सास के साथ भी संबंध ठीक रहेंगे। नानी के सफल गृहिणी होने की स्थिति में पत्नी भी सफल गृहिणी होगी। यदि स्वभाव अपने नाना और अपनी दादी के समान है तो पत्नी का स्वभाव दादा और नानी जैसा तथा पुत्र का स्वभाव बड़े साले या बड़े जीजा के स्वभाव के समान होगा।

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