मां दुर्गा को आदि शक्ति, भवानी और अन्य कई नामों से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां का जन्म दैत्यों के विनाश के लिए हुआ था। वैसे तो सारा साल ही माता की पूजा की जाती है लेकिन नवरात्रों के दौरान इनके विशेष पूजन व उपाय किए जाते हैं। कहा जाता है कि नवरात्रों के समय नौ दिन माता रानी पृथ्वी पर आकर भक्तों के बीच रहती हैं। इसलिए मां को खुश करने के लिए भक्त विधि-विधान पूर्वक आरती, पूजा एवं दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि मां दुर्गा की उत्पति कैसे हुई।
एक बार सभी देवगण असुरों के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि दैत्यराज को ये वर मिला है कि उसकी मौत कुंवारी कन्या के हाथ से होगी। तभी सभी देवों को एक तरकीब सुझी। उन्होंने मिलकर अपनी-अपनी शक्तियों से एक देवी को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए तेज से ही देवी के अलग-अलग अंग बने।
भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक और बाल, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पैरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने। फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मी जी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनाग ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्मा ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए शेर प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकर उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं। मां के इस तेज को देखकर दैत्यराज बहुत डर गया था लेकिन देवी ने अपने शेर और शस्त्रों से मार उसे डाला। तभी से माता को मां दुर्गा के नाम से पुकारा जाने लगा।