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सूनी गोद भर देती हैं मां कूष्माण्डा जानें, कैसे होगा यह चमत्का

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श्लोक: या देवी सर्वभू‍तेषु कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अवतार वर्णन: शास्त्रों के अनुसार देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप में नवरात्र पर्व पर मां कूष्माण्डा की आराधना का विधान है, आदिशक्ति दुर्गा का कूष्माण्डा के रूप में चौथा स्वरूप भक्तों को संतति सुख प्रदान करने वाला है। इनकी आराधना से भक्तों को तेज, ज्ञान, प्रेम, उर्जा, वर्चस्व, आयु, यश, बल, आरोग्य और संतान का सुख प्राप्त होता है। शब्द कूष्माण्डा का संधिविच्छेद कुछ इस प्रकार है की कुसुम का अर्थ है फूलों के समान हसीं (मुस्कान) और आण्ड कर का अर्थ है युग्मनज या ब्रह्मांड अर्र्थात वो देवी जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया हैं वही है मां कूष्माण्डा। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है की जब जगत अस्तित्व विहीन था, तब मां कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड की संरचना की थी। अतः कूष्माण्डा ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।
स्वरुप वर्णन: मां कूष्माण्डा के स्वरूप को “प्रज्वलित प्रभाकर” कहा गया है अर्थात चमकते हुए सूर्य जैसे शास्त्रों में मां कूष्माण्डा का निवास सूर्यमंडल के मध्य लोक में कहा गया है। इनके देह की कांति और प्रभा भी सूरज के समान ही दैदीप्यमान हैं। इनका तेज इतना प्रकाशमय है जैसे दसों दिशाएं प्रज्वलित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। शास्त्रों में इनका अष्टभुजा देवी (आठ भुजाएं) के नाम से व्याख्यान आता है। इनके हाथों में कमल, कमंडल, अमृतपूर्ण कलश, धनुष, बाण, चक्र, गदा और कमलगट्टे की जापमाला (कमल के फूल का बीज) है । मां कूष्माण्डा सर्व जगत को सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली अधिष्टात्री देवी हैं। सुवर्ण से सुशोभित माता वीर मुद्रा में सिंह पर सवार है।
साधना वर्णन: नवरात्र की चतुर्थी को मां कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनकी शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। इनकी पूजा का सबसे अच्छा समय है सूर्योदय; सुबह को 6 बजे से 7 बजे के बीच, इनकी पूजा लाल रंग के फूलों से करनी चाहिए । इन्हें सूजी से बने हलवे का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें रत्क्त चंदन (लाल चंदन) अर्पित करना शुभ रहता है । इनका ध्यान इस प्रकार है

कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा ॥

योगिक दृष्टिकोण: कूष्माण्डा साधना के लिए साधक अपने मन को “अनाहत’ चक्र” में स्थित करते हैं, इनको साधने से भक्तों के सभी प्रकार के रोग, शोक, पीड़ा, व्याधि समाप्त होती हैं तथा हृदय में शुद्ध रक्त का संचार होता है। इनकी उपासना से शारीरिक कष्ट समाप्त होता है तथा जो लोग ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) अथवा हृदयरोग से पीड़ित हैं उनके लिए श्रेष्ठ है मां कूष्माण्डा की साधना ।

ज्योतिष दृष्टिकोण: मां कूष्माण्डा की साधना का संबंध सूर्य से है । कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में सूर्य का संबंध लग्न पंचम और नवम घर से होता है अतः मां कूष्माण्डा की साधना का संबंध व्यक्ति की सेहत, मानसिकता, व्यक्तित्व, रूप, विद्या, प्रेम, उद्दर, भाग्य, गर्भाशय, अंडकोष तथा प्रजनन तंत्र से है। जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में सूर्य नीच अथवा राहू से ग्रसित हो रहा है अथवा तुला राशि में आकार नीच एवं पीड़ित है उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां कूष्माण्डा की साधना। मां कूष्माण्डा कि साधना से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है । स्वास्थ्य में सुधार आता है। जिस व्यक्ति की आजीविका का संबंध प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन), उच्च सरकारी पदासीन आधकारी, राजनीति इतियादी क्षेत्र से हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां कूष्माण्डा की साधना ।

वास्तु दृष्टिकोण: मां कूष्माण्डा कि साधना का संबंध वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार सूर्य से है , इनकी दिशा पूर्व है, निवास में बने वो स्थान जहां पर देव कक्ष अथवा अथिति कक्ष हो । जिन व्यक्तियों का पूर्व मुखी हो अथवा जिनके घर का पूर्वी कोण पर वास्तु संबंधित दुष्प्रभाव आ रहे हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां कूष्माण्डा की आराधना ।

उपाय: संतति सुख के लिए मां कूष्माण्डा पर लाल-गुडहल के फूल (चाइना रोज) चढ़ाएं

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