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‘श्राद्ध’ का सीधा संबंध धर्म और विज्ञान से

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ज्योतिष-आचार्य आशीष ममगाई

 

 

 

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श्रद्धावान लभते ज्ञानमप्श्रद्धावान व्यक्तियों को ज्ञान प्राप्त होता है, ऐसा शास्त्र कहता है और जिसे ज्ञान प्राप्त होता है, उसे लाभ भी जरूर मिलता हैप् तो पहले वाक्य में बात हुई धर्म की और दूसरे में विज्ञान कीप् क्योंकि यह विज्ञान ही है जो ज्ञान की कसौटी पर सारी चीजें मापता-तोलता है, धर्म-शास्त्र को एक तरह रखकरप् लेख के माध्यम से श्राद्ध जैसे गंभीर एवं अनछुझ विषय का संबंध धर्म और विज्ञान दोनों से जोडने का प्रयास किया गया हैप्
पहले बात धर्म कीप्धर्म क्या र्हैघ् धर्म यानी धारण किया हुआ, जिसे हम मानते एवं अपनाते हैं वह हुआ धर्मप् कुल मिलाकर श्रद्धा और विश्वास धर्म के आधार हुएप् अब बात श्राद्ध कीप् श्रद्धा से किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता हैप्जैसे शिव शक्ति के बिना अधूरे हैं, वैसे ही श्राद्ध, श्रद्धा के बिनाप् अब रूख करते हैं विज्ञान परप्दिवंगत आत्मा का पित्रों के रूप में आना, खाना, आशीर्वाद देनाघ्जी हांॅ, अक्षरशः सत्य है, वह भी वैज्ञानिक तर्क के साथप्विज्ञान कहता है प्रार्थना एक तरह का आकर्षण का सिद्धांत (लाॅ आफ अटेªक्शन) हैप्प्रार्थना चाहे जिस जीव के लिए की गई हो, उसके वाइब्रेशन या ऊर्जा उस तक पहुंच ही जाती हैप् ठीक उसकी प्रकार श्राद्ध में श्रद्धा से किया गया कर्म संबंधित दिवंगत आत्मा रूपी पित्रों को तक पहुंच ही जाता हैप्चाहे पित्र किसी भी योनी में गए होंप् शास्त्र कहता है इस कार्य में देवता मदद करते हैंप् कौन से देवघ् प्रत्यक्ष देव सूर्यदेवप् और विज्ञान कहता है सूर्य ग्रह सबसे बडी ऊर्जा को स्त्रोत हैंप् तो धर्म और विज्ञान दोनों की बात आकर पूर्ण हो जाती है ऊर्जा परप्
शास्त्र कहता है हमें तीन ऋण चुकाने होंगे प्क्रमशः देवऋण, पित्रऋण एवं ऋृषिऋणप्हम सुनते आ रहे हैं कि हर जीव में परमात्मा का अंश हैप् आइए अब इसे विज्ञान की भाषा में समझेंप् सूर्यदेव अपने ताप से नदी-तालाबों का जल अवशोषित करते हैं, यह जल वाष्प बनकर बादल का रूप लेकर बरस जाता हैप् बरसे हुए जल से पौधों को नया जीवन मिलता हैप् फिर विज्ञान की ही प्रकाश संशलेषण क्रिया के द्वारा सूर्य के प्रकाश से पेड-पौधे (फसल) अपना भोजन बनाते हैं यानी परिपक्व होते हैंप्तैयार फल एवं फसल को जीव और मनुष्य खाते हैंप् इससे मांस, मज्जा, रक्त और वीर्य बनता हैप्यही वीर्य संतान की उत्पत्ति का कारण बनता हैप् माध्यम बनते हैं माता-पिताप् सूर्यदेव की कृपा से निर्मित हुए वीर्य के कारण हम ऋृणि हुए देवऋण के प्माध्यम बने माता-पिता अतः पित्रऋण एवं शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की ऋृषियों से अतः हम ऋृणि हुए ऋृषिऋण से भी प्
शास्त्रों में एक श्लोक आता है पित्रदेवो भवः मातृदेवो भवःप् अर्थात संतान के लिए माता-पिता देव हैं प् यहां गौर करने वाली बात है माता-पिता को देव बोला गया है, ना की देवता-तुल्य प् दिवंगत होने के उपरांत यह पित्रसत्ता का रूप ले लेते हैं प्पित्र श्राद्ध के दौरान आसक्तिवश अपने परिवार से मिलने एवं उनके हाथों से तर्पण-अर्पण ग्रहण करने खिंचे चले आते हैं प्श्राद्धपक्ष के दौरान ईश्वर पित्रों को विशेष अधिकार दे देते हैं गतजन्मों के नातेदारों से मिलने कीप् यह सत्ता लालायित रहती है अपनी संतान को आशीष देने एवं उन्हें कुशलक्षेम जानने के लिए प् ऐसे में जो श्रद्धारूपी श्राद्ध करता है उससे उनके पित्र प्रसन्न होकर आशीष देते हैं प् तथा जो उन्हें श्राद्ध नहीं देता, उससे वे रूष्ट हो जाते हैं प्

इस बार श्राद्ध-
इस बार श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से 30 सितंबर 2016 तक हैं प्

पित्रों को कैसे मिलता है तर्पण-अर्पण-
आत्मा को कर्मों के अनुसार योनी अथवा लोक प्राप्ति का उल्लेख आता है प् यदि पित्र मनुष्य योनी में गए हो तो उन्हें श्राद्धकर्म (मुख्य रूप से तर्पण-अर्पण) उन्हें अन्न के रूप में प्राप्त होगा प् यदि वे देवयोनी में गए हों, तो उन्हें अमृत के रूप में, गंधर्व योनी में भोग्य रूप में, पशु योनी में घास के रूप में, सर्प योनी में हवा के रूप में, यक्ष योनी में पेय के रूप में, प्रेत योनी में रक्त के रूप में, दानव योनी में माॅंस के रूप में यह उन्हें प्राप्त होता है प्

यह है विशेष दान-
भूमि, तिल, घी, गुड, सोना-चांदी, वस्त्र, गाय, नमक, धान एवं तुलसी प्

क्या न करें
पूरे श्राद्ध पक्ष में एवं विशेष तौर पर तिथि वाले दिन स्वच्छता, सात्विक्कता का ध्यान रखें प् गुस्सा एवं अहंकार बिलकुल न करें प्जो भी भोजन आप बनायें उसे नमक-मिर्च चखने के नाम पर जूठा न करें प्
क्या करें-
यथा विधि तर्पण-अर्पण करें प्नियमित गाय, कौआ एवं कुत्ते के निमित्त भोजन सुबह-शाम निकालें एवं उसी दिन इन्हें खिला दें प्दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर जल अर्पण करें तथा पित्रों का ध्यान कर उनसे अपनी गलतियों के लिए माफी मांगे तथा परमात्मा से अपने पित्रों सहित सभी के पित्रों की सदगति के लिए प्रार्थना करें प्पित्रों की फोटो को पूजा स्थान से अलग, दक्षिण दिशा की दीवार पर ऊंचा स्थान दें प्संकल्प लेकर पित्रों की शांति के निमित्त गीता पाठ, गुरू अथवा गायत्री मंत्र पढेंप्

असमर्थ व्यक्ति यह करें-
पित्र आपकी असमर्थता जानते है प् अतःयदि कोई व्यक्ति इतना गरीब है कि वे श्राद्धकर्म नहीं कर पा रहा है, तो वह मात्र दक्षिण दिशा की तरह मुख कर एवं हाथ जोडकर दो आंसू भी पित्रों के निमित्त बहा दे, तो पित्र इतने मात्र से संतुष्ट हो जाते हैं प् उल्लेखनीय है कि दक्षिण दिशा पित्रों की दिशा है प्

तृप्ति ही आशीर्वाद-
आपने महसूस किया होगा वर्ष में एकाध बार ऐसा होता है कि हमारा खानपान हमें परम तृप्ति दिला देता है, जबकि भूख एवं भोजन वही है प् एवं तृप्ति पाकर हमारे मुख से निकल जाता है आज तो भोजन आत्मा तक पहुंच गया प्जबकि भोजन पेट में ही गया होगा है प् क्योंघ् संभवतः यह वही श्राद्ध कर्म का प्रभाव हो, जो हमारे निमित्त हुआ हो प्भोजन के पश्चात जो सुख या तृप्ति हमें मिली, वही हमारी पूर्वजन्म की संतान को आशीर्वाद के स्वरूप मिल जाता है प्

बडी अमावश्या, बडा लाभ-
पित्रमोक्ष अमावस्या पित्रदोष से पीडित जातकों के लिए वरदान समान है प् इस दिन पित्रों के निमित्त दिया गया दान, ध्यान, आव्हान, प्रमाण पित्रदोष की शांति का निमित्त बनता है तथा संबंधित जातक के घर में रूके हुए मांगलिक कामों के योग बनने लगते हैं प्

स्वयं पहचाने पित्रदोष-
परिवार सदस्यों के मध्य लगातार क्लह होना प् इसके अलावा बीमारी, दुर्घटना, बरकत्त न होना, कर्ज बने रहना प् मांगलिक कार्य जैसे संतान प्राप्ति एवं विवाह में विलंब पित्रदोष के लक्षण माने जाते हैं प्

ऊर्जा बनाम आशीर्वाद-
शास्त्र कहता है माता-पिता का आशीर्वाद कई जन्मों तक हमारे साथ चलता है प् विज्ञान भी दूसरी भाषा में यही कहता है कि ऊर्जा का कभी क्षय नहीं होता, अपितु यह परिवर्तित जरूर होती है प्इसका मतलब हमारे अगले जन्म तक आशीर्वाद रूपी यह सकारात्मकऊर्जा हमारे साथ चलेगी प्हमारी रक्षा करेगी प् वहीं, अधर्म के पथ पर चलकर हमने जीवित माता-पिता, गुरू का दिल दुखाया, तो यह ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा में बदल जाएगीप्दरअसल यही नकारात्मक ऊर्जा अगले जन्म में पित्रदोष का निर्माण करती है प्इसलिए कोशिश करें अपने जीवित माता-पिता, गुरू की पूरी श्रद्धा से सेवा करें क्योंकि यही धर्म भी कहता है और विज्ञान भी सिखा रहा है प्

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