
नवरात्र की अष्टमी पर महागौरी के पूजन का विधान है। नवरात्र की अष्टमी तिथि को देवी महागौरी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। देवी महागौरी की उपासना करने से मन पवित्र हो जाता है और भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्र की अष्टमी तिथि पर देवी महागौरी का विधि अनुसार षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी दुर्गा के भक्तों को अष्टमी के दिन पूजा, नवमी के दिन बलि-होम और दशमी को देवी का विसर्जन करना चाहिए। अष्टमी के दिन कंजक और ब्राह्मणों को अपने घर बुलाकर भोजन करवाना चाहिए।
देवी को सबसे ज्यादा प्रसन्नता कुमारियों को सम्मान देने से होती है। स्कंदपुराण में कुमारियों का विभाजन किया गया है। कुमारी पूजन में केवल 9 वर्ष तक की कन्या को ही शामिल किया जाना चाहिए। इससे बड़ी उम्र की कन्या को कुमारी पूजन के लिए वर्जित माना गया है। अलग-अलग आयु की कन्याओं का अलग-अलग स्वरूप माना जाता है। इसमें 2 वर्ष की कन्या कुमारी, 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्तिनी, 4 वर्ष की कल्याणी, 5 वर्ष की रोहिणी, 6 वर्ष वाली कल्याणी, 7 वर्ष वाली चंडिका, 8 वर्ष वाली शाम्भवी, 9 वर्ष वाली दुर्गा स्वरूपा मानी जाती हैं।
देवी महागौरी की आराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में देवी महागौरी को चतुर्भुजी कहकर संबोधित किया गया है। देवी महागौरी की ऊपर वाली दाईं भुजा अभय मुद्रा में हैं तथा नीचे वाली दाईं भुजा में त्रिशूल शोभा बढाता है। इनकी ऊपर वाली बाईं भुजा में डमरू हैं जो सम्पूर्ण जगत का निर्वाहन करा रहा है और नीचे वाली भुजा से देवी गौरी भक्तों की प्रार्थना सुनकर वरदान दे रही हैं। देवी महागौरी ने श्वेताम्बर परिधान धारण किए हुए हैं। इनकी सवारी श्वेत रंग का “वृष” है तथा ये सैदेव शुभंकरी है।
IndianZ Xpress NZ's first and only Hindi news website