प्रत्येक युग में कार्तिक मास का अत्यधिक महत्व माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं की,‘पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के निकट है।’
धर्मशास्त्रों में कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला माना गया है। तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। इस मास में दीपदान, तुलसी पूजा, भूमि पर सोना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और कुछ द्विदलनों का निषेध करने से जीवन में वास्तविक प्रगति पाई जा सकती है।
1 दीपदान- पदमपुराण में वर्णित है कार्तिक माह में शुद्ध घी, तिलों के तेल अथवा सरसों के तेल से दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है। इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है। व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है।
2 तुलसी पूजा- कार्तिक माह में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख शान्ति का निवास रहे उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। जिस घर में शुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी हरी-भरी रहती है एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहती।
3 भूमि पर सोना- भूमि पर सोने से मनुष्य के जीवन से विलासिता दूर होती है और सात्विकता के भाव आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के साथ- साथ शारीरिक व मानसिक विकार भी खत्म होते हैं।
4 ब्रह्मचर्य- कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए काम-विकार न करें। ब्रह्म में लीन होना ब्रह्मचर्य है। जो व्यक्ति आत्मा में रमन करता है वही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है।
5 द्विदलन निषेध- कार्तिक मास में द्विदलन अर्थात उड़द, मसूर, करेला, बैंगन और हरी सब्जियां आदि भारी चीजों का त्याग करना चाहिए।
आंवले के फल व तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगा स्नान के समान पुण्यलाभ होता हैं। कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी ही आसानी से हो जाता है।