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Coronavirus Bioweapon: 6 साल से Coronavirus को जैव हथियार बना रहे थे चीनी वैज्ञानिक? लीक दस्तावेज में विश्व युद्ध की तैयारी का दावा

कोरोना वायरस की महामारी करीब डेढ़ साल बाद भी विकराल होती जा रही है और अभी तक इसकी उत्पत्ति को लेकर ठोस सबूत नहीं मिल सके हैं। सबसे पहले इसका शिकार बने चीन ने उन आरोपों का खंडन किया है जिनमें वुहान के बाजार या लैब से इसके फैलने की बात कही गई थी। हालांकि, 6 साल पुराने एक दस्तावेज के मुताबिक चीनी वैज्ञानिक कोरोना वायरस की मदद से जैव हथियार तैयार करने पर काम कर रहे थे जिससे तीसरा विश्व युद्ध लड़ा जा सके। अमेरिकी अधिकारियों को मिले इस दस्तावेज में 6 साल से जैव और जेनेटिक हथियार तैयार करने की बात कही गई है।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर हमला : अमेरिकी विदेश मंत्रालय को मिले दस्तावेज में दावा किया गया है कि ऐसे युद्ध में जीत के लिए जैव हथियार अहम होंगे। इसमें इनके इस्तेमाल का सही समय भी बताया गया है और ‘दुश्मन के मेडिकल सिस्टम’ पर असर की चर्चा भी की गई है। दि ऑस्ट्रेलियन की रिपोर्ट में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के डोजियर पर बात की गई है और हथियार बनाने के लिए बीमारियों के इस्तेमाल की बात कही गई है। विश्वेषकों के मुताबिक कम से कम 18 वैज्ञानिक हाई-रिस्क लैब में इस पर काम कर रहे थे।
तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी? : इस दस्तावेज के लेखकों के मुताबिक तीसरा विश्व युद्ध ‘जैव’ होगा। पहले विश्व युद्ध को केमिकल और दूसरे को परमाणु कहा जाता है। इसमें कहा गया है कि जैसे दूसरे विश्व में जीत परमाणु बम ने दिलाई थी और जापान ने हमले के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था, वैसे ही तीसरे विश्व युद्ध में जैव हथियार जीत दिलाएंगे। अमेरिकी एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह रिपोर्ट सामने आने से इस बात को लेकर सवाल और चिंता खड़ी हो गई है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी आखिर किस मकसद से काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि बहुत ज्यादा नियंत्रण के बावजूद ऐसे हथियार घातक साबित हो सकते हैं।
कब करना है इस्तेमाल : New Species of Man-Made Viruses as Genetic Bioweapons नाम के दस्तावेज में हथियार के सही समय पर इस्तेमाल से ज्यादा से ज्यादा नुकसान पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि ऐसे हमले दिन के वक्त साफ मौसम में नहीं करने चाहिए। इन पर सूरज, पानी और बर्फ का असर हो सकता है। इन्हें तड़के सुबह, शाम या बदली के दौरान इस्तेमाल करना चाहिए। रिसर्च में कहा गया है कि इस हमले से दुश्मन की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रटीजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर पीटर जेनिंग्स के मुताबिक यह हथियार भले ही आत्मरक्षा के लिए तैयार किए गए हों, लेकिन इनके इस्तेमाल का फैसला वैज्ञानिकों के हाथ में नहीं होगा।